हैदराबाद: विक्की कौशल और रश्मिका मंदाना की मोस्ट अवेटेड हिस्टोरिकल-पीरियड फिल्म छावा 14 फरवरी को सिनेमाघरों में दस्तक देने के लिए तैयार है. फिल्म में विक्की कौशल ने छत्रपति संभाजीराजे भोसले का किरदार निभाया है वहीं रश्मिका मंदाना ने उनकी पत्नी महारानी येसुबाई भोसले का. महारानी येसुबाई का किरदार निभाकर रश्मिका बहुत गर्व महसूस कर रही हैं. उन्होंने कहा कि यह रोल निभाकर वह खुशी-खुशी रिटायरमेंट ले सकती हैं क्योंकि वे एक महान और बहादुर हस्ती थीं जिनका रोल प्ले करना मेरे लिए गर्व की बात है. तो आइए जानते हैं कौन थीं महारानी येसुबाई जिन्होंने अपने पति की मृत्यु के बाद मुगलों और अंग्रेजों को अपनी कूटनीतिक समझ से पराजित किया.
कौन थी महारानी येसुबाई ?
महारानी येसुबाई साहेब छत्रपति संभाजीराजे भोसले की पत्नी और मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज की बहु थीं. उनका पारिवारिक नाम शिर्के था और उनका पहला नाम राजौ था. येसुबाई शिर्के पिलाजीराव शिर्के की बेटी थीं, जो छत्रपति शिवाजी के अधीन मराठा सरदार थे. छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद महारानी येसुबाई द्वारा दिखाई गई कूटनीति सराहनीय है. महारानी येसुबाई साहेब एक कर्तव्यनिष्ठ और राजनीतिक रूप से कुशल महिला थीं. जिन्होंने 1680 से 1730 तक के कठिन दौर में स्वराज्य में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी कूटनीति के कारण मुगल बादशाह औरंगजेब कभी भी मराठा साम्राज्य को जीतने में सक्षम नहीं हो सका.
शिवाजी महाराज का जीता विश्वास: अपनी कूटनीति समझ और दृढ़ निश्चय से उन्होंने बहुत जल्द ही अपने ससुर शिवाजी महाराज का विश्वास जीत लिया था. उनके पति छत्रपति संभाजीराजे भोसले के शासनकाल (1681-1689) के दौरान मुगल सम्राट औरंगजेब ने 6 लाख से अधिक की सेना के साथ नवजात मराठा साम्राज्य पर आक्रमण किया. वह पूरे दक्षिण भारत पर विजय चाहता था. इस दौरान भी येसुबाई ने छत्रपति संभाजी को शासन चलाने और सैन्य योजनाओं में भी बहुत महत्वपूर्ण सलाह दी.
पति के रहते हुए भी बनीं विधवा: येसुबाई को अपने पति के जीवित रहते हुए भी कुछ दिनों के लिए विधवा होने का नाटक करना पड़ा. आगरा छोड़ने के बाद, शिव छत्रपति ने छोटे संभाजी को छिपा दिया और अफवाह फैला दी कि राजकुमार संभाजी राजे की मृत्यु हो गई है. इसलिए, उन्हें तब तक विधवा के रूप में रहना पड़ा जब तक कि संभाजी सुरक्षित अपने राज्य में वापस नहीं आ गए.
अपने भाई के खिलाफ भी लड़ी लड़ाई: येसुबाई के इतिहास के बारे में एक और दिलचस्प पहलू यह है कि उन्होंने अपने ही भाई गणोजी शिर्के के खिलाफ लड़ाई लड़ी जब वह संभाजी से 'जंगीर' चाहते थे. संभाजी और येसुबाई जीवन भर साथी रहे, उनके दो बच्चे थे भवानी बाई और शाहजी (शाहू). संभाजी की निर्मम हत्या के बाद, येसुबाई ने मराठा साम्राज्य का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी संभाली. उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ कई युद्ध लड़े और जीते भी, पति की मौत के गम को दरकिनार कर उन्होंने अपने कर्तव्य को ऊपर रखा. 1689 में छत्रपति संभाजी महाराज को मुगलों ने कैद कर लिया था. येसुबाई को हर दिन संभाजी महाराज के खिलाफ हो रहे अत्याचारों की खबरें मिलती रहती थीं. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने खुद का ख्याल रखा और स्वराज्य की रक्षा के लिए अपने गम को भी दरकिनार कर दिया. उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि मराठों का मनोबल कमजोर न हो. आखिरकार 11 मार्च 1689 को औरंगजेब ने संभाजी महाराज की निर्मम हत्या कर दी. महाराज की हत्या के बाद महारानी येसुबाई ने हार न मानते हुए अडिग होकर मराठा साम्राज्य को बचाया.
4 जुलाई, शौर्य दिवस: महारानी येसुबाई 4 जुलाई, 1719 को औरंगजेब की कैद से मुक्त होकर सतारा पहुंचीं. येसुबाई के आने की खुशी में इस दिन को शौर्य दिवस के रूप में मनाया जाता है. उन्होंने अपने जीवन के 27 वर्ष मुगलों की कैद में बिताए. इस दौरान उन्हें कई कठिनाइयां झेलनी पड़ीं और साहस के साथ सबका सामना किया. 1719 ई. के आसपास वे दिल्ली से दक्षिण की ओर लौटीं.
वाराणसी की संधि: उन्होंने स्वराज्य को सतारा और कोल्हापुर दो भागों में विभाजित होते देखा और वे पहले ही देख चुकी थीं कि कैसे विदेशी पावर विभाजन का फायदा उठाकर उन पर शासन कर रही थीं. इसलिए, उन्होंने 1730 के आसपास वाराणसी की संधि की. यह संधि संभाजी राजे और शाहू महाराज के बीच हुई थी.
येसुबाई की मृत्यु: रानी येसुबाई की मृत्यु 1730 में हुई. छत्रपति संभाजी की रानी येसुबाई 1669 में अपनी शादी के समय से लेकर 1730 के आसपास अपनी मृत्यु तक मराठा इतिहास के अशांत समय में रही. येसुबाई 1674 में रायगढ़ में शिवाजी राजा के राज्याभिषेक, 1681 से 1707 तक मुगलों के खिलाफ महत्वपूर्ण युद्ध, 1719 में मराठा सेनाओं के दिल्ली तक मार्च और बालाजी विश्वनाथ और बाजीराव के साथ उनके बेटे शाहू के शासन की गवाह बनी. छत्रपति संभाजी राजे की पत्नी महारानी येसुबाई की समाधि के सबूत सतारा शहर के पास माहुली गांव में मिले हैं. इससे पता चला है कि इस स्थान पर पत्थर का वृंदावन और गुंबद था.