जयपुर. राजधानी जयपुर से करीब 90 किमी दूर नमक की सबसे बड़ी सांभर झील के बीच माता शाकंभरी का मंदिर स्थित है. यहां साल भर श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. खासकर चैत्र और अश्विन के नवरात्रि के अवसर पर देशभर से श्रद्धालु माता का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं. मान्यता है कि देवी शाकंभरी पहाड़ से निकली हैं और उन्हीं के आशीर्वाद से नमक की सबसे बड़ी सांभर झील का निर्माण हुआ था.
स्थानीय लोगों के अनुसार छठी शताब्दी में चौहान वंश के राजा वासुदेव की भक्ति से प्रसन्न होकर माता शाकंभरी ने उन्हें मनचाहा वरदान मांगने को कहा था. इस पर उन्होंने माता से धन-धान्य का भंडार मांग लिया. देवी ने उन्हें कहा कि वह जितनी दूर तक अपना घोड़ा दौड़ाएंगे, वहां तक चांदी की खान बन जाएगी. साथ ही देवी ने शर्त रखी कि इस दौरान उन्हें पीछे मुड़कर नहीं देखना है. राजा वासुदेव ने काफी देर तक घोड़ा दौड़ाया तो पूरा इलाका चांदी की खान में बदल गया. जैसे ही उन्होंने पीछे मुड़कर देखा, यह प्रक्रिया रुक गई.
जब राजा वासुदेव की माता को इस बात का पता चला तो उन्होंने राजा को समझाया कि इतनी संपदा के लिए भीषण मारकाट मचेगी और कोई भी सुखी नहीं रह पाएगा. इस पर राजा ने देवी शाकंभरी से फिर से विनती की और माता ने पूरे इलाके को चांदी की बजाए नमक में बदल दिया, इसीलिए नमक को कच्ची चांदी भी कहते हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार देवी के आशीर्वाद से ही इस झील का निर्माण हुआ है. देवी शाकंभरी को वनस्पति और प्रकृति की देवी के रूप में भी पूजा जाता है. माता को हरी सब्जियां और फल का विशेष भोग लगाया जाता है. यहां आने वाले भक्त नारियल, मावे और अन्य मिठाई के साथ हरी सब्जियां और फल भी माता को चढ़ाते हैं.
जहांगीर ने भी माना था माता की शक्ति का लोहा : स्थानीय लोगों के अनुसार एक बार मुगल बादशाह जहांगीर की सेना मंदिर को ध्वस्त करने आई थी, लेकिन मधुमक्खियों के झुंड ने सेना पर हमला कर और उन्हें वापस जाना पड़ा. जब यह खबर जहांगीर तक पहुंची तो उसे भरोसा नहीं हुआ. वह खुद माता के मंदिर पहुंचा. उसने मंदिर में जल रही ज्योत पर लोहे के 7 मोटे तवे रखवा दिए, लेकिन इनको पार करके भी ज्योत जलने लगी. ये देख बादशाह जहांगीर नतमस्तक हो गया. उसने झील के बीच स्थित पहाड़ी पर एक छतरी का निर्माण करवाया, जिसे आज भी जहांगीर की छतरी कहा जाता है.
कांच का गर्भगृह, लगे हैं सीसीटीवी कैमरे : शाकंभरी माता के इस मंदिर का निर्माण के बाद यहां जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण के कार्य होते रहे हैं. स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां जयपुर और जोधपुर के राजपरिवारों ने भी कई निर्माण करवाए, जो आज भी सुरक्षित हैं. श्री शाकंभरी माता मंदिर प्रबंधन न्यास के सचिव अरुण व्यास ने बताया कि मंदिर के गर्भगृह में कांच की आकर्षक कारीगरी की गई है. इसके अलावा मंदिर परिसर में सुरक्षा के मद्देनजर 18 सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं, ताकि मंदिर परिसर और यात्रियों की सुरक्षा पुख्ता की जा सके.
भाद्रपद महीने में भरता है विशाल मेला : अरुण व्यास बताते हैं कि चौहान वंश के राजपूत शाकंभरी माता को कुलदेवी के रूप में पूजते हैं. किसी भी मांगलिक कार्य पर माता का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं. इसके अलावा अलग-अलग समाज के लोग भी देवी की कुलदेवी के रूप में पूजते हैं. यहां भाद्रपद महीने में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को विशाल मेला लगता है. इसके अलावा पौष महीने की पूर्णिमा को माता का जन्मोत्सव मनाया जाता है. इस दिन भी देशभर से माता के भक्त यहां आते हैं.
माता के बाद बाबा भैरवनाथ के दर्शन की परंपरा : देवी शाकंभरी के मंदिर के ठीक सामने स्थित है लाखड़िया भैरव बाबा का मंदिर. ऐसा माना जाता है कि बाबा भैरवनाथ के दर्शन के बिना देवी के दर्शन अधूरे होते हैं, इसलिए माता शाकंभरी के मंदिर में आने वाले भक्त भैरवनाथ के मंदिर में दर्शन कर आशीर्वाद लेते हैं. इस मंदिर का भी पुनर्निर्माण हाल ही में करवाया गया है. माता के मंदिर से यहां तक पहुंचने का रास्त झील में से होकर बनाया गया है.