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Rajasthan Integration Day: इस तरह राजपूताना बना आज का राजस्थान, उद्घाटन के 7 वर्ष बाद पूर्ण हुई थी पटकथा - राजस्थान एकीकरण दिवस

राजस्थान को कभी राजपूताना नाम से जाना जाता था. राजस्थान 30 मार्च 1949 को भारत (Rajasthan Integration Day) का एक ऐसा प्रांत बना जिसमें तत्कालीन राजपूताना की ताकतवर रियासतें विलीन हुईं. भले ही राजस्थान दिवस 30 मार्च को मनाया जाता हो, लेकिन इसका पूर्ण एकीकरण 1 नवंबर 1956 को हुआ था. ये एकीकरण 7 चरणों में पूरा हुआ. पढ़िए कैसे राजपूताना बना आज का राजस्थान...

History of Rajasthan
राजस्थान का इतिहास
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Published : Oct 30, 2022, 9:12 PM IST

जयपुर. राजस्थान का इतिहास समृद्ध और गौरवशाली रहा है. ब्रिटिशकाल में राजस्थान 'राजपूताना' नाम से जाना जाता था. आजादी के बाद 7 चरणों में राजपूताना का एकीकरण हुआ. इनमें कई रियासतों का विलय हुआ और इस नए राज्य को नाम दिया गया राजस्थान. 30 मार्च 1949 को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने राजस्थान का उद्घाटन किया. इसीलिए हर साल 30 मार्च को राजस्थान दिवस के रूप में मनाया जाता है, लेकिन इसकी असल पटकथा (Rajasthan Integration Day) पूरी हुई थी 1 नवंबर 1956 को.

राजस्थान के कुछ भू-भागों को स्थानीय और भौगोलिक विशेषताओं के आधार पर पुकारा जाता रहा है. ज्यादातर तत्कालीन क्षेत्रों के नाम वहां बोली जाने वाली प्रमुख बोलियों पर ही रखे गए थे, जैसे ढ़ूंढ़ाडी बोली के इलाकों को ढ़ूंढ़ाड़ (जयपुर), मेवाती बोली वाले निकटवर्ती भू-भाग मेवात (अलवर), उदयपुर क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली मेवाड़ी के कारण मेवाड़ (उदयपुर), ब्रजभाषा बाहुल्य क्षेत्र को ब्रज (भरतपुर), मारवाड़ी बोली के कारण मारवाड़ (बीकानेर-जोधपुर) और बागड़ी बोली पर ही बागड़ (डूंगरपुर-बांसवाड़ा) कहा जाता रहा.

राजपूताना से राजस्थान बनने का इतिहास

ऐसे हुआ राजस्थान का एकीकरण : राजस्थान 30 मार्च 1949 को भारत का एक ऐसा प्रांत बना, जिसमें तत्कालीन राजपूताना की ताकतवर रियासतें विलीन हुईं. भरतपुर के जाट शासक ने भी अपनी रियासत का विलय राजस्थान में किया था. ये राजपूत राजाओं से रक्षित भूमि थी, इस वजह से इसे राजस्थान कहा गया. भारत के संवैधानिक-इतिहास में राजस्थान का निर्माण एक खास उपलब्धि थी. आजादी की घोषणा के साथ ही राजपूताना के देशी रियासतों के मुखियाओं में स्वतंत्र राज्य में भी अपनी सत्ता बरकरार रखने की होड़ सी मच गई थी. उस समय वर्तमान राजस्थान की भौगोलिक स्थिति के नजरिए से देखें तो राजपूताना के इस भू-भाग में 19 बड़ी और 3 छोटी रियासतें थीं. इन रियासतों के एकीकरण की प्रक्रिया सात चरणों में एक नवंबर 1956 को पूरी हुई. इसमें भारत सरकार के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की अहम भूमिका थी.

पढ़ें. Rajasthan Day Celebration: ...तो पाकिस्तान का हिस्सा होता जोधपुर, कोरे कागज पर हस्ताक्षर करने को तैयार थे जिन्ना...जानें पूरा मामला

राजपूताना बना राजस्थान: इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत के अनुसार जार्ज थॉमस ने सन् 1800 में 'राजपूताना' नाम (Journey of Rajasthan From Rajputana) दिया था. कर्नल जेम्स टॉड ने 1829 ईसा में अपनी पुस्तक 'द एनाल्स एंड एक्टीविटीज ऑफ राजस्थान' में इसका जिक्र किया है. कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी किताब में राजस्थान को दी सेन्ट्रल वेस्टर्न राजपूत स्टेट्स ऑफ इंडिया कहा है. आजादी से पहले राजस्थान को राजपूताना के नाम से ही जाना जाता है. राजपूताना में 22 छोटी-बड़ी रियासतें, एक सरदारी, एक जागीर और अजमेर-मेरवाड़ा का ब्रिटिश जिला शामिल थे.

7 चरणों में राजस्थान का गठन :

Integration Of Rajasthan
7 चरणों में राजस्थान का गठन

30 मार्च 1949 को बन गया था राजस्थान : 30 मार्च 1949 को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने राजस्थान का उद्घाटन (Integration Of Rajasthan) किया. जयपुर महाराजा सवाई मानसिंह को राज प्रमुख, उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह को महाराज प्रमुख, कोटा के भीम सिंह और जोधपुर के हनुवंत सिंह को वरिष्ठ राजप्रमुख का पद सौंपा गया. हीरालाल शास्त्री को राज्य का प्रधानमंत्री बनाते हुए उनके नेतृत्व में मंत्रिमंडल बनाया गया (उस समय मुख्यमंत्री को राज्य प्रधानमंत्री कहा जाता था). मार्च, 1952 में राजस्थान विधानसभा अस्तित्व में आई, लेकिन राजस्थान की जनता ने रियासत काल में ही संसदीय लोकतंत्र का अनुभव कर लिया. 26 जनवरी 1950 को भारत सरकार की ओर से राजस्थान को राज्य की मान्यता दी गई और भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर राजधानी जयपुर को बनाया गया.

पढ़ें. राजस्थान एकीकरण दिवस: राज्य के 30 जिलों में मेडिकल कॉलेज, 10 में से 9 व्यक्ति हेल्थ इंश्योरेंस से कवर

एकीकरण के बाद ऐसे हुआ विभागों का विभाजन :

Integration Of Rajasthan
एकीकरण के बाद अलग-अलग शहरों में बांटे गए प्रमुख विभाग

एकीकरण में ये रहे प्रमुख विवाद : राजस्थान की बाउंड्री इंटरनेशनल बॉर्डर से भी जुड़ी थी. इसके अलावा कई दूसरे राज्यों के साथ भी जुड़ी थी. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि झालावाड़ का सिरोंज क्षेत्र राजस्थान और मध्य प्रदेश में से किसके पास रहे इसे लेकर विवाद था. इसी तरह माउंट आबू एक बड़ा प्रकरण था जो राजस्थान के लिए नाक का प्रश्न बन गया था. सरदार पटेल ने माउंट आबू को स्पष्ट तौर पर गुजरात का हिस्सा घोषित किया था, लेकिन कांग्रेस लीडर गोकुलभाई भट्ट जो खुद सिरोही के रहने वाले थे, उन्होंने माउंट आबू को राजस्थान का हिस्सा होने की वकालत की थी.

सरदार पटेल की वजह से उस वक्त माउंट आबू को गुजरात में देना पड़ा, लेकिन जब राज्य पुनर्गठन आयोग बना, तो उसने राजस्थान और दूसरे राज्यों में जो बाउंड्री के प्रकरण थे, उनके निस्तारण का कार्य किया. आखिर में राजस्थान संघ, अजमेर- मेरवाड़ा, आबू-देलवाड़ा, सुनेल टप्पा और सिरोंज क्षेत्र राजस्थान का हिस्सा बने. आज राजस्थान के राजपूताना से बदलकर स्वरूप में आने के कई साल गुजर चुके हैं. 19 बड़ी रियासतें और 3 छोटी रियासतें मिलकर आज क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है.

जयपुर. राजस्थान का इतिहास समृद्ध और गौरवशाली रहा है. ब्रिटिशकाल में राजस्थान 'राजपूताना' नाम से जाना जाता था. आजादी के बाद 7 चरणों में राजपूताना का एकीकरण हुआ. इनमें कई रियासतों का विलय हुआ और इस नए राज्य को नाम दिया गया राजस्थान. 30 मार्च 1949 को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने राजस्थान का उद्घाटन किया. इसीलिए हर साल 30 मार्च को राजस्थान दिवस के रूप में मनाया जाता है, लेकिन इसकी असल पटकथा (Rajasthan Integration Day) पूरी हुई थी 1 नवंबर 1956 को.

राजस्थान के कुछ भू-भागों को स्थानीय और भौगोलिक विशेषताओं के आधार पर पुकारा जाता रहा है. ज्यादातर तत्कालीन क्षेत्रों के नाम वहां बोली जाने वाली प्रमुख बोलियों पर ही रखे गए थे, जैसे ढ़ूंढ़ाडी बोली के इलाकों को ढ़ूंढ़ाड़ (जयपुर), मेवाती बोली वाले निकटवर्ती भू-भाग मेवात (अलवर), उदयपुर क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली मेवाड़ी के कारण मेवाड़ (उदयपुर), ब्रजभाषा बाहुल्य क्षेत्र को ब्रज (भरतपुर), मारवाड़ी बोली के कारण मारवाड़ (बीकानेर-जोधपुर) और बागड़ी बोली पर ही बागड़ (डूंगरपुर-बांसवाड़ा) कहा जाता रहा.

राजपूताना से राजस्थान बनने का इतिहास

ऐसे हुआ राजस्थान का एकीकरण : राजस्थान 30 मार्च 1949 को भारत का एक ऐसा प्रांत बना, जिसमें तत्कालीन राजपूताना की ताकतवर रियासतें विलीन हुईं. भरतपुर के जाट शासक ने भी अपनी रियासत का विलय राजस्थान में किया था. ये राजपूत राजाओं से रक्षित भूमि थी, इस वजह से इसे राजस्थान कहा गया. भारत के संवैधानिक-इतिहास में राजस्थान का निर्माण एक खास उपलब्धि थी. आजादी की घोषणा के साथ ही राजपूताना के देशी रियासतों के मुखियाओं में स्वतंत्र राज्य में भी अपनी सत्ता बरकरार रखने की होड़ सी मच गई थी. उस समय वर्तमान राजस्थान की भौगोलिक स्थिति के नजरिए से देखें तो राजपूताना के इस भू-भाग में 19 बड़ी और 3 छोटी रियासतें थीं. इन रियासतों के एकीकरण की प्रक्रिया सात चरणों में एक नवंबर 1956 को पूरी हुई. इसमें भारत सरकार के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की अहम भूमिका थी.

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राजपूताना बना राजस्थान: इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत के अनुसार जार्ज थॉमस ने सन् 1800 में 'राजपूताना' नाम (Journey of Rajasthan From Rajputana) दिया था. कर्नल जेम्स टॉड ने 1829 ईसा में अपनी पुस्तक 'द एनाल्स एंड एक्टीविटीज ऑफ राजस्थान' में इसका जिक्र किया है. कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी किताब में राजस्थान को दी सेन्ट्रल वेस्टर्न राजपूत स्टेट्स ऑफ इंडिया कहा है. आजादी से पहले राजस्थान को राजपूताना के नाम से ही जाना जाता है. राजपूताना में 22 छोटी-बड़ी रियासतें, एक सरदारी, एक जागीर और अजमेर-मेरवाड़ा का ब्रिटिश जिला शामिल थे.

7 चरणों में राजस्थान का गठन :

Integration Of Rajasthan
7 चरणों में राजस्थान का गठन

30 मार्च 1949 को बन गया था राजस्थान : 30 मार्च 1949 को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने राजस्थान का उद्घाटन (Integration Of Rajasthan) किया. जयपुर महाराजा सवाई मानसिंह को राज प्रमुख, उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह को महाराज प्रमुख, कोटा के भीम सिंह और जोधपुर के हनुवंत सिंह को वरिष्ठ राजप्रमुख का पद सौंपा गया. हीरालाल शास्त्री को राज्य का प्रधानमंत्री बनाते हुए उनके नेतृत्व में मंत्रिमंडल बनाया गया (उस समय मुख्यमंत्री को राज्य प्रधानमंत्री कहा जाता था). मार्च, 1952 में राजस्थान विधानसभा अस्तित्व में आई, लेकिन राजस्थान की जनता ने रियासत काल में ही संसदीय लोकतंत्र का अनुभव कर लिया. 26 जनवरी 1950 को भारत सरकार की ओर से राजस्थान को राज्य की मान्यता दी गई और भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर राजधानी जयपुर को बनाया गया.

पढ़ें. राजस्थान एकीकरण दिवस: राज्य के 30 जिलों में मेडिकल कॉलेज, 10 में से 9 व्यक्ति हेल्थ इंश्योरेंस से कवर

एकीकरण के बाद ऐसे हुआ विभागों का विभाजन :

Integration Of Rajasthan
एकीकरण के बाद अलग-अलग शहरों में बांटे गए प्रमुख विभाग

एकीकरण में ये रहे प्रमुख विवाद : राजस्थान की बाउंड्री इंटरनेशनल बॉर्डर से भी जुड़ी थी. इसके अलावा कई दूसरे राज्यों के साथ भी जुड़ी थी. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि झालावाड़ का सिरोंज क्षेत्र राजस्थान और मध्य प्रदेश में से किसके पास रहे इसे लेकर विवाद था. इसी तरह माउंट आबू एक बड़ा प्रकरण था जो राजस्थान के लिए नाक का प्रश्न बन गया था. सरदार पटेल ने माउंट आबू को स्पष्ट तौर पर गुजरात का हिस्सा घोषित किया था, लेकिन कांग्रेस लीडर गोकुलभाई भट्ट जो खुद सिरोही के रहने वाले थे, उन्होंने माउंट आबू को राजस्थान का हिस्सा होने की वकालत की थी.

सरदार पटेल की वजह से उस वक्त माउंट आबू को गुजरात में देना पड़ा, लेकिन जब राज्य पुनर्गठन आयोग बना, तो उसने राजस्थान और दूसरे राज्यों में जो बाउंड्री के प्रकरण थे, उनके निस्तारण का कार्य किया. आखिर में राजस्थान संघ, अजमेर- मेरवाड़ा, आबू-देलवाड़ा, सुनेल टप्पा और सिरोंज क्षेत्र राजस्थान का हिस्सा बने. आज राजस्थान के राजपूताना से बदलकर स्वरूप में आने के कई साल गुजर चुके हैं. 19 बड़ी रियासतें और 3 छोटी रियासतें मिलकर आज क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है.

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