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rajasthan high court order: पूर्व विधायकों को मिल रही पेंशन मामले में याचिकाकर्ता से मांगी ये जानकारी, अगली सुनवाई 30 को होगी - ईटीवी भारत राजस्थान न्यूज

राजस्थान हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका के जरिए (Challenging the pension of former MLAs in court) पूर्व विधायकों को दी जा रही पेंशन को चुनौती दी गई है.

rajasthan high court order , rajasthan high court sought information
राजस्थान हाईकोर्ट.
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Published : Jan 27, 2023, 6:42 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रदेश के 508 पूर्व विधायकों को हर माह पेंशन देने के मामले में महाधिवक्ता को याचिका की कॉपी देने के आदेश देते हुए मामले की सुनवाई तीस जनवरी को तय की है. सीजे पंकज मित्थल और जस्टिस शुभा मेहता की खंडपीठ ने यह आदेश मिलाप चंद डांडिया की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.

सुनवाई के दौरान अदालत ने याचिकाकर्ता से यह बताने को कहा है कि विधायक के तौर पर शपथ लेने से पूर्व उसकी मौत होने पर भी क्या पेंशन देने का प्रावधान है?. इसके अलावा यदि कोई विधायक अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले किसी कारण से पद छोड़ता है तो क्या उसे भी पेंशन दी जा रही है?. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता विमल चौधरी और अधिवक्ता योगेश टेलर ने अदालत को बताया कि आरटीआई में मिली सूचना के तहत प्रदेश में 508 पूर्व विधायकों को करीब 26 करोड़ रुपए सालाना पेंशन के तौर पर दिए जा रहे हैं.

इनमें से कई विधायक वर्तमान में भी एमएलए हैं. वहीं करीब आधा दर्जन से अधिक पूर्व विधायकों को एक लाख रुपए मासिक से ज्यादा पेंशन राशि दी जा रही है. इसमें करीब 100 से अधिक पूर्व विधायक ऐसे हैं, जिन्हें मासिक पचास हजार रुपए से अधिक की पेंशन दी जाती है. याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार राजस्थान विधानसभा अधिकारियों और सदस्यों की परिलब्धियां एवं पेंशन अधिनियम 1956 व राजस्थान विधानसभा सदस्य पेंशन नियम, 1977 बनाकर पूर्व विधायकों को पेंशन का लाभ दे रही है.

पढ़ेंः 508 पूर्व विधायकों को हर साल 26 करोड़ पेंशन, पेंशन देने के खिलाफ जनहित याचिका पेश

जबकि संविधान के अनुच्छेद 195 और राज्य सूची की 38वीं एन्ट्री में पूर्व विधायकों को पेंशन देने का प्रावधान नहीं है. याचिका में कहा गया कि पेंशन उस व्यक्ति को दी जाती है, जो एक तय आयु के बाद सेवानिवृत्त होता है. जबकि विधायक सेवानिवृत्त नहीं होते हैं, बल्कि ये जनप्रतिनिधि अधिनियम के तहत चुने जाते हैं और उनका तय पांच साल का कार्यकाल होता है. इसके अलावा जनप्रतिनिधि को राज्य का सेवक भी नहीं माना जा सकता.

वहीं यदि इन्हें राज्य सेवक माना जाता है तो पंचायत समिति और निगम के जनप्रतिनिधियों को इस श्रेणी में क्यों नहीं माना जाता?. याचिका में यह भी कहा गया है कि पूर्व विधायकों की पेंशन आम जन पर भार है और ऐसे में इन पूर्व विधायकों पर पैसा नहीं लुटाया जा सकता. इसलिए वर्ष 1956 के अधिनियम और वर्ष 1977 के नियम को अवैध घोषित कर रद्द किया जाए तथा पूर्व विधायकों से दी गई राशि की रिकवरी की जाए.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रदेश के 508 पूर्व विधायकों को हर माह पेंशन देने के मामले में महाधिवक्ता को याचिका की कॉपी देने के आदेश देते हुए मामले की सुनवाई तीस जनवरी को तय की है. सीजे पंकज मित्थल और जस्टिस शुभा मेहता की खंडपीठ ने यह आदेश मिलाप चंद डांडिया की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.

सुनवाई के दौरान अदालत ने याचिकाकर्ता से यह बताने को कहा है कि विधायक के तौर पर शपथ लेने से पूर्व उसकी मौत होने पर भी क्या पेंशन देने का प्रावधान है?. इसके अलावा यदि कोई विधायक अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले किसी कारण से पद छोड़ता है तो क्या उसे भी पेंशन दी जा रही है?. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता विमल चौधरी और अधिवक्ता योगेश टेलर ने अदालत को बताया कि आरटीआई में मिली सूचना के तहत प्रदेश में 508 पूर्व विधायकों को करीब 26 करोड़ रुपए सालाना पेंशन के तौर पर दिए जा रहे हैं.

इनमें से कई विधायक वर्तमान में भी एमएलए हैं. वहीं करीब आधा दर्जन से अधिक पूर्व विधायकों को एक लाख रुपए मासिक से ज्यादा पेंशन राशि दी जा रही है. इसमें करीब 100 से अधिक पूर्व विधायक ऐसे हैं, जिन्हें मासिक पचास हजार रुपए से अधिक की पेंशन दी जाती है. याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार राजस्थान विधानसभा अधिकारियों और सदस्यों की परिलब्धियां एवं पेंशन अधिनियम 1956 व राजस्थान विधानसभा सदस्य पेंशन नियम, 1977 बनाकर पूर्व विधायकों को पेंशन का लाभ दे रही है.

पढ़ेंः 508 पूर्व विधायकों को हर साल 26 करोड़ पेंशन, पेंशन देने के खिलाफ जनहित याचिका पेश

जबकि संविधान के अनुच्छेद 195 और राज्य सूची की 38वीं एन्ट्री में पूर्व विधायकों को पेंशन देने का प्रावधान नहीं है. याचिका में कहा गया कि पेंशन उस व्यक्ति को दी जाती है, जो एक तय आयु के बाद सेवानिवृत्त होता है. जबकि विधायक सेवानिवृत्त नहीं होते हैं, बल्कि ये जनप्रतिनिधि अधिनियम के तहत चुने जाते हैं और उनका तय पांच साल का कार्यकाल होता है. इसके अलावा जनप्रतिनिधि को राज्य का सेवक भी नहीं माना जा सकता.

वहीं यदि इन्हें राज्य सेवक माना जाता है तो पंचायत समिति और निगम के जनप्रतिनिधियों को इस श्रेणी में क्यों नहीं माना जाता?. याचिका में यह भी कहा गया है कि पूर्व विधायकों की पेंशन आम जन पर भार है और ऐसे में इन पूर्व विधायकों पर पैसा नहीं लुटाया जा सकता. इसलिए वर्ष 1956 के अधिनियम और वर्ष 1977 के नियम को अवैध घोषित कर रद्द किया जाए तथा पूर्व विधायकों से दी गई राशि की रिकवरी की जाए.

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