जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रदेश के 508 पूर्व विधायकों को मासिक पेंशन देने के मामले में दायर याचिका में से महाधिवक्ता का नाम बतौर पक्षकार हटाने को कहा है. अदालत ने इसके लिए याचिकाकर्ता को प्रार्थना पत्र पेश करने के निर्देश दिए हैं. एक्टिंग सीजे एमएम श्रीवास्तव और अनिल उपमन की खंडपीठ ने यह आदेश मिलाप चंद डांडिया की जनहित याचिका पर दिए. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता एमएस सिंघवी ने जवाब पेश करने के लिए समय मांगा.
एजी ने कहा कि याचिकाकर्ता में उन्हें भी बेवजह पक्षकार बनाया गया है. इसपर खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को कहा कि वे इस संबंध में अदालत में प्रार्थना पत्र पेश करें. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता विमल चौधरी और अधिवक्ता योगेश टेलर ने अदालत को बताया कि आरटीआई में मिली सूचना के तहत प्रदेश में 508 पूर्व विधायकों को सालाना पेंशन के तौर पर करीब 26 करोड़ रुपए दिए जा रहे हैं. इनमें से कई विधायक वर्तमान में भी विधायक हैं.
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वहीं, करीब 6 से अधिक पूर्व विधायकों को 1 लाख रुपए मासिक से ज्यादा पेंशन दी जा रही है. इसमें करीब 100 से अधिक पूर्व विधायक ऐसे हैं, जिन्हें मासिक 50 हजार रुपए से अधिक की पेंशन दी जाती है. याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार राजस्थान विधानसभा अधिकारियों और सदस्यों की परिलब्धियां एवं पेंशन एक्ट 1956 व राजस्थान विधानसभा सदस्य पेंशन नियम, 1977 बनाकर पूर्व विधायकों को पेंशन का लाभ दे रही है. जबकि संविधान के अनुच्छेद 195 और राज्य सूची की 38वीं एन्ट्री में पूर्व विधायकों को पेंशन देने का नियम नहीं है.
याचिका में कहा गया कि पेंशन उसे दी जाती है, जो एक तय आयु के बाद सेवानिवृत्त होता है. जबकि विधायक सेवानिवृत्त नहीं होते हैं, बल्कि ये जनप्रतिनिधि अधिनियम के तहत चुने जाते हैं और उनका तय 5 साल का कार्यकाल होता है. इसके अलावा जनप्रतिनिधि को राज्य सेवक भी नहीं माना जा सकता. यदि इन्हें राज्य सेवक माना जाता है तो पंचायत समिति और निगम के जनप्रतिनिधियों को इस श्रेणी में क्यों नहीं माना जाता? याचिका में यह भी कहा गया है कि पूर्व विधायकों की पेंशन आम जन पर भार है और ऐसे में इन पूर्व विधायकों पर पैसा नहीं लुटाया जा सकता. इसलिए वर्ष 1956 के अधिनियम और वर्ष 1977 के नियम को अवैध घोषित कर रद्द किया जाए तथा पूर्व विधायकों से दी गई राशि की रिकवरी की जाए.