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Rajasthan Assembly Session : सत्रावसान को लेकर बहस तेज, राज्यपाल के समर्थन में उतरे कटारिया

गहलोत सरकार की ओर से विधानसभा का सत्रावसान की फाइल नहीं भेजने का मामला एल बार फिर सुर्खियों में है. राज्यपाल ने सत्रावसान को लेकर सवाल उठाया तो उनके समर्थन में नेता प्रतिपक्ष कटारिया भी उतर आए.

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Published : Jan 13, 2023, 10:00 PM IST

नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया
नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया
राज्यपाल के समर्थन में उतरे गुलाबचंद कटारिया

जयपुर. राजस्थान में विधानसभा का सत्रावसान नहीं होने को लेकर बहस तेज हो गई है. राज्यपाल कलराज मिश्र ने सरकार की ओर से सदन का सत्रावसान नहीं करने को संविधान की भावना के खिलाफ बताया. राज्यपाल के इस बयान के समर्थन में अब नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया भी उतर आए हैं. कटारिया ने शुक्रवार को जयपुर में अपने आवास पर मीडिया से बात करते हुए कहा कि जो काम गवर्नर का है, उसे सरकार की मंशा पर स्पीकर कर रहे हैं. इससे विधायकों के प्रश्न पूछने की शक्ति प्रभावित हुई है. सत्रावसान नहीं करना संविधान की भावना के खिलाफ है.

राज्यपाल की शक्तियों को किया कम : कटारिया ने कहा कि सत्रावसान नहीं करना राज्यपाल की शक्तियों को कम करना है. सत्रावसान होने से विधायक को विशेष प्रकार का अधिकार प्राप्त होता है. जिसके तहत वह हर सप्ताह एक अतारांकित प्रश्न पूछ सकता है. उन्होंने कहा कि सत्र बुलाने का अधिकार राज्यपाल का है, जो एक तरह से सरकार और उसके माध्यम से स्पीकर के पास पहुंच गया है. कटारिया ने कहा कि देश का ये पहला मामला होगा जब राज्यपाल को नजरअंदाज किया गया हो. गहलोत सरकार ने राज्यपाल की शक्तियों को कम करने का काम किया है.

पढ़ें : Assembly Session without Prorogue: सत्रावसान नहीं कर सीधे सत्र बुलाने की परिपाटी लोकतंत्र के लिए घातक- राज्यपाल

संविधान की भावना के खिलाफ हुआ : बता दें कि विधानसभा में अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन के समापन समारोह में राज्यपाल कलराज मिश्र ने विधानसभा का सत्रावसान नहीं करने के मामले में सरकार को घेरा था. उन्होंने कहा था कि सरकार की सिफारिश पर विधानसभा सत्र बुलाने का अधिकार राज्यपाल का है, लेकिन सत्रावसान नहीं कर सीधे सत्र बुलाने की जो परिपाटी बन रही है, वह लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के लिए घातक है. इस परिपाटी से विधायकों को तय संख्या में सवाल पूछने के अलावा अवसर नहीं मिलते हैं.

इसलिए कहनी पड़ी बात : दरअसल, राजस्थान में पिछले तीन बार से नई परिपाटी चल रही है. इसके तहत विधानसभा सत्र को कंटीन्यू ही रखा जा रहा है. बजट सत्र से कुछ दिन पहले ही सत्रावसान करवाकर उसके तुरंत बाद बजट सत्र बुलाने की तारीख तय कर ली जाती है. इसीलिए राज्यपाल ने एक ही सत्र को साल भर जारी रखने पर आपत्ति जताई है. भाजपा ने भी इस पर सरकार को घेरा था. भाजपा नेताओं का कहना था कि इससे विधायक प्रश्न ही नहीं पूछ पा रहे हैं.

सत्र को कंटीन्यू रखने की परम्परा 2020 में सियासी बगावत के बाद चली है, तभी से कभी भी सियासी संकट की स्थिति पैदा होने पर फ्लोर टेस्ट के लिए या सत्र बुलाने के लिए राज्यपाल से समय की मांग करने से सरकार बच रही है. आरोप ये भी थे कि गहलोत सरकार बहुत ही कमजोर रही है, कभी भी विधायक सरकार की खिलाफत कर सकते थे. कांग्रेस की आंतरिक कलह के बीच सीएम गहलोत ने राजनीति के लिहाज से सदन का सत्रावसान नहीं कर बड़ा राजनीतिक दांव खेला था.

राज्यपाल के समर्थन में उतरे गुलाबचंद कटारिया

जयपुर. राजस्थान में विधानसभा का सत्रावसान नहीं होने को लेकर बहस तेज हो गई है. राज्यपाल कलराज मिश्र ने सरकार की ओर से सदन का सत्रावसान नहीं करने को संविधान की भावना के खिलाफ बताया. राज्यपाल के इस बयान के समर्थन में अब नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया भी उतर आए हैं. कटारिया ने शुक्रवार को जयपुर में अपने आवास पर मीडिया से बात करते हुए कहा कि जो काम गवर्नर का है, उसे सरकार की मंशा पर स्पीकर कर रहे हैं. इससे विधायकों के प्रश्न पूछने की शक्ति प्रभावित हुई है. सत्रावसान नहीं करना संविधान की भावना के खिलाफ है.

राज्यपाल की शक्तियों को किया कम : कटारिया ने कहा कि सत्रावसान नहीं करना राज्यपाल की शक्तियों को कम करना है. सत्रावसान होने से विधायक को विशेष प्रकार का अधिकार प्राप्त होता है. जिसके तहत वह हर सप्ताह एक अतारांकित प्रश्न पूछ सकता है. उन्होंने कहा कि सत्र बुलाने का अधिकार राज्यपाल का है, जो एक तरह से सरकार और उसके माध्यम से स्पीकर के पास पहुंच गया है. कटारिया ने कहा कि देश का ये पहला मामला होगा जब राज्यपाल को नजरअंदाज किया गया हो. गहलोत सरकार ने राज्यपाल की शक्तियों को कम करने का काम किया है.

पढ़ें : Assembly Session without Prorogue: सत्रावसान नहीं कर सीधे सत्र बुलाने की परिपाटी लोकतंत्र के लिए घातक- राज्यपाल

संविधान की भावना के खिलाफ हुआ : बता दें कि विधानसभा में अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन के समापन समारोह में राज्यपाल कलराज मिश्र ने विधानसभा का सत्रावसान नहीं करने के मामले में सरकार को घेरा था. उन्होंने कहा था कि सरकार की सिफारिश पर विधानसभा सत्र बुलाने का अधिकार राज्यपाल का है, लेकिन सत्रावसान नहीं कर सीधे सत्र बुलाने की जो परिपाटी बन रही है, वह लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के लिए घातक है. इस परिपाटी से विधायकों को तय संख्या में सवाल पूछने के अलावा अवसर नहीं मिलते हैं.

इसलिए कहनी पड़ी बात : दरअसल, राजस्थान में पिछले तीन बार से नई परिपाटी चल रही है. इसके तहत विधानसभा सत्र को कंटीन्यू ही रखा जा रहा है. बजट सत्र से कुछ दिन पहले ही सत्रावसान करवाकर उसके तुरंत बाद बजट सत्र बुलाने की तारीख तय कर ली जाती है. इसीलिए राज्यपाल ने एक ही सत्र को साल भर जारी रखने पर आपत्ति जताई है. भाजपा ने भी इस पर सरकार को घेरा था. भाजपा नेताओं का कहना था कि इससे विधायक प्रश्न ही नहीं पूछ पा रहे हैं.

सत्र को कंटीन्यू रखने की परम्परा 2020 में सियासी बगावत के बाद चली है, तभी से कभी भी सियासी संकट की स्थिति पैदा होने पर फ्लोर टेस्ट के लिए या सत्र बुलाने के लिए राज्यपाल से समय की मांग करने से सरकार बच रही है. आरोप ये भी थे कि गहलोत सरकार बहुत ही कमजोर रही है, कभी भी विधायक सरकार की खिलाफत कर सकते थे. कांग्रेस की आंतरिक कलह के बीच सीएम गहलोत ने राजनीति के लिहाज से सदन का सत्रावसान नहीं कर बड़ा राजनीतिक दांव खेला था.

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