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Rajasthan Assembly Election 2023 : संगठन से राज्य की सक्रिय सियासत में ऐसे हुई सतीश पूनिया की एंट्री...यात्राओं का बनाया रिकॉर्ड

संगठन से राज्य की सक्रिय सियासत में एंट्री करने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. सतीश पूनिया को पहले दो विधानसभा चुनावों में पराजय का मुंह देखना पड़ा था, बावजूद इसके उन्होंने धैर्य से काम किया. पूनिया को उनके संघर्षशील व्यक्तित्व व संगठन क्षमताओं के लिए जाना जाता है. वहीं, संघ पृष्ठभूमि से होने के कारण उनका पार्टी के आलानेताओं से रिश्ता हमेशा ही मधुर रहा, जिसका उन्हें समय-दर-समय लाभ भी मिलता रहा.

Rajasthan Assembly Election 2023
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 10, 2023, 6:45 PM IST

जयपुर. डॉ. सतीश पूनिया भाजपा के उन नेताओं में शामिल हैं, जिन्हें उनके संगठनात्मक कौशल के लिए जाना जाता है. पूनिया ने प्रदेश में पार्टी की जमीन को मजबूत करने के लिए दिन-रात काम किया है. साथ ही वो राजस्थान भाजपा के बड़े जाट नेताओं में गिने जाते हैं. इसके इतर संगठन में विरोधियों से खुले तौर पर लोहा लेने के लिए भी पूनिया विख्यात हैं. मौजूदा विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. संघ पृष्ठभूमि से होने के चलते केंद्रीय नेताओं से भी उनके रिश्ते काफी मधुर रहे हैं. वहीं, उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रतिद्वंदी के रूप में भी देखा जाता है.

छात्र राजनीति से हुआ आगाज - 20 दिसंबर, 1964 को चूरू के एक छोटे से गांव राजगढ़ में एक किसान परिवार के घर जन्मे डॉ. सतीश पूनिया ने शुरुआती सियासी ज्ञान अपने घर से हासिल किया. उनके पिता स्व. सुभाष चंद्र पूनिया राजगढ़ पंचायत समिति के प्रधान थे. डॉ. पूनिया की प्रारंभिक शिक्षा राजगढ़ से हुई और फिर आगे की पढ़ाई उन्होंने चूरू से पूरी की. उन्होंने साल 1989 में महाराजा कॉलेज से ग्रेजुएशन किया. इसके बाद उन्होंने राजस्थान यूनिवर्सिटी से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की. पूनिया ने लॉ कॉलेज से श्रम कानून, अपराध विज्ञान और भारतीय इतिहास व संस्कृति में डिप्लोमा भी प्राप्त किया. उसके बाद उन्होंने भूगोल में एम.एससी करने के उपरांत राजस्थान विश्वविद्यालय से भूगोल में पीएचडी की.

इसे भी पढ़ें - Rajasthan Assembly Election 2023 : राजस्थान की सियासत में वसुंधरा ने बनाया खास मुकाम, दबंग अंदाज में अपनी शर्तों पर किया काम

आंदोलन के लिए जाना पड़ा जेल - पूनिया के परिवार में स्वतंत्रता सेनानी भी रहे. लिहाजा आरएसएस की राष्ट्रवादी विचारधारा से बचपन से ही वो प्रभावित रहे और 1982 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को ज्वाइन किया. अपने कुशल नेतृत्व के बदौलत पूनिया एबीवीपी में महानगर सह मंत्री, प्रदेश सह मंत्री, महानगर सचिव के रूप में काम किया. इसके बाद वो जयपुर में महाराजा कॉलेज में इकाई अध्यक्ष बने और 1988 से 1989 तक राजस्थान विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. वहीं, 1989 में वो राजस्थान विश्वविद्यालय में छात्र संघ के महासचिव बने और उसी दौरान उन्होंने बोफोर्स घोटाले के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया था, जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था.

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सतीश पूनिया का सियासी सफरनामा

पद यात्रा का रिकॉर्ड - छात्र राजनीति के बाद 1990 में डॉ. सतीश पूनिया प्रदेश भाजपा में सक्रिय रूप से शामिल हुए. 1992 में वे भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश महासचिव बने. इसी दौरान कोटा में ऐतिहासिक युवा सम्मेलन का सफल आयोजन भी किए और 1998 में उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा राजस्थान का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. पूनिया राजनीति पद यात्राओं के लिए जाने जाते रहे हैं. प्रदेश में 1998 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार के बाद पूनिया ने 550 किलोमीटर की पदयात्रा निकाली. कहा जाता है कि राजस्थान के राजनीतिक इतिहास में यह पहली ऐसी यात्रा थी. इस यात्रा का आज भी रिकॉर्ड कायम है.

पूनिया ने इस राजनीतिक पदयात्रा में 34 विधानसभा क्षेत्रों, 9 लोकसभा क्षेत्रों, 225 गांवों को कवर करते हुए प्रदेश में पार्टी को मजबूत करने का काम किया किया. संघ पृष्ठभूमि से आने वाले पूनिया ने 2004 से 2006 तक भारतीय जनता पार्टी, राजस्थान में प्रदेश महासचिव और 2006 से 2007 तक प्रदेश मोर्चा प्रभारी के रूप में काम किया. वो 2004 से 2014 तक चार बार विभिन्न संगठनात्मक कार्यों के साथ भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश महासचिव रहे.

इसे भी पढ़ें - कांग्रेस के 'पायलट' : एक चमकता सितारा जो खुद की 'रोशनी' के लिए लड़ता रहा, क्या अब परिणाम से बदलेगा पोजिशन ?

दो बार हारे विधानसभा चुनाव - डॉ. पूनिया की संगठन में अच्छी पकड़ मानी जाती है. साल 2004 से 2006 तक प्रदेश महामंत्री और 2006 से 2007 तक प्रदेश मोर्चा प्रभारी के रूप में कार्य किया. इसके बाद 2004 से 2014 तक चार बार भारतीय जनता पार्टी में प्रदेश महामंत्री रहे. 2011 में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की जन चेतना यात्रा के संयोजक बनाए गए. साथ ही 2010 और 2015 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी, हालांकि, साल 2000 में सादुलपुर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में वो बतौर प्रत्याशी मैदान में उतरे, लेकिन उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा.

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राजस्थान विधानसभा के उपनेता प्रतिपक्ष

उसके बाद 2013 में आमेर विधानसभा क्षेत्र से खड़े हुए, लेकिन एक बार फिर वो चुनाव हार गए. पूनिया के सामने इस चुनाव में नेशनल पीपल्स पार्टी से नवीन पिलानिया और कांग्रेस से गंगा सहाय शर्मा मैदान में थे. मुकाबला त्रिकोणीय रहा, जिसमें पूनिया को 329 वोट से हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने पूनिया पर भरोसा जाता और एक बार फिर उन्हें चुनावी मैदान में उतारा गया. इस बार उन्होंने कांग्रेस के प्रशांत शर्मा और बीएसपी के नवीन पिलानिया को पछाड़ते हुए 13276 वोटों से जीत दर्ज की. साथ ही पहली बार विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे. इसके बाद 2023 में पार्टी ने उन्हें विधानसभा का उपनेता प्रतिपक्ष बनाया.

इसे भी पढ़ें - Rajasthan Assembly Election 2023 : शौक से मिली ख्याति और फिर देखते ही देखते सियासी नजीर बन गए अशोक गहलोत

विरोधियों से खुले तौर पर लड़े - 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद पार्टी ने साल 2019 में बड़ी जिम्मेदारी सौंपते हुए उन्हें प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया. अध्यक्ष बनने के साथ ही उन्हें पार्टी के भीतर भी अपने विरोधियों का सामना करना पड़ा, लेकिन वो बिना विचलित हुए सभी से खुले तौर पर लड़े. इतना नहीं उनके अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी मुख्यालय के बाहर लगी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की होर्डिंग हटा दी गई. ये पहली बार था, जब पूनिया और वसुंधरा राजे के बीच की अदावत खुल कर सामने आई थी. पूनिया ने राजे का फोटो हटाने के पीछे तर्क दिया था कि पोस्टर में सिर्फ राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रधानमंत्री के साथ प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष ही दिखेंगे. इस घटना के बाद राजे और उनके समर्थकों ने प्रदेश संगठन से दूरी बना ली थी. पूनिया के लिए कहा जाता है कि वो दोस्ती हो या विरोधियों से अदावत दोनों ही खुले तौर पर निभाते हैं.

जयपुर. डॉ. सतीश पूनिया भाजपा के उन नेताओं में शामिल हैं, जिन्हें उनके संगठनात्मक कौशल के लिए जाना जाता है. पूनिया ने प्रदेश में पार्टी की जमीन को मजबूत करने के लिए दिन-रात काम किया है. साथ ही वो राजस्थान भाजपा के बड़े जाट नेताओं में गिने जाते हैं. इसके इतर संगठन में विरोधियों से खुले तौर पर लोहा लेने के लिए भी पूनिया विख्यात हैं. मौजूदा विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. संघ पृष्ठभूमि से होने के चलते केंद्रीय नेताओं से भी उनके रिश्ते काफी मधुर रहे हैं. वहीं, उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रतिद्वंदी के रूप में भी देखा जाता है.

छात्र राजनीति से हुआ आगाज - 20 दिसंबर, 1964 को चूरू के एक छोटे से गांव राजगढ़ में एक किसान परिवार के घर जन्मे डॉ. सतीश पूनिया ने शुरुआती सियासी ज्ञान अपने घर से हासिल किया. उनके पिता स्व. सुभाष चंद्र पूनिया राजगढ़ पंचायत समिति के प्रधान थे. डॉ. पूनिया की प्रारंभिक शिक्षा राजगढ़ से हुई और फिर आगे की पढ़ाई उन्होंने चूरू से पूरी की. उन्होंने साल 1989 में महाराजा कॉलेज से ग्रेजुएशन किया. इसके बाद उन्होंने राजस्थान यूनिवर्सिटी से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की. पूनिया ने लॉ कॉलेज से श्रम कानून, अपराध विज्ञान और भारतीय इतिहास व संस्कृति में डिप्लोमा भी प्राप्त किया. उसके बाद उन्होंने भूगोल में एम.एससी करने के उपरांत राजस्थान विश्वविद्यालय से भूगोल में पीएचडी की.

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आंदोलन के लिए जाना पड़ा जेल - पूनिया के परिवार में स्वतंत्रता सेनानी भी रहे. लिहाजा आरएसएस की राष्ट्रवादी विचारधारा से बचपन से ही वो प्रभावित रहे और 1982 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को ज्वाइन किया. अपने कुशल नेतृत्व के बदौलत पूनिया एबीवीपी में महानगर सह मंत्री, प्रदेश सह मंत्री, महानगर सचिव के रूप में काम किया. इसके बाद वो जयपुर में महाराजा कॉलेज में इकाई अध्यक्ष बने और 1988 से 1989 तक राजस्थान विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. वहीं, 1989 में वो राजस्थान विश्वविद्यालय में छात्र संघ के महासचिव बने और उसी दौरान उन्होंने बोफोर्स घोटाले के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया था, जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था.

Rajasthan Assembly Election 2023
सतीश पूनिया का सियासी सफरनामा

पद यात्रा का रिकॉर्ड - छात्र राजनीति के बाद 1990 में डॉ. सतीश पूनिया प्रदेश भाजपा में सक्रिय रूप से शामिल हुए. 1992 में वे भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश महासचिव बने. इसी दौरान कोटा में ऐतिहासिक युवा सम्मेलन का सफल आयोजन भी किए और 1998 में उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा राजस्थान का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. पूनिया राजनीति पद यात्राओं के लिए जाने जाते रहे हैं. प्रदेश में 1998 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार के बाद पूनिया ने 550 किलोमीटर की पदयात्रा निकाली. कहा जाता है कि राजस्थान के राजनीतिक इतिहास में यह पहली ऐसी यात्रा थी. इस यात्रा का आज भी रिकॉर्ड कायम है.

पूनिया ने इस राजनीतिक पदयात्रा में 34 विधानसभा क्षेत्रों, 9 लोकसभा क्षेत्रों, 225 गांवों को कवर करते हुए प्रदेश में पार्टी को मजबूत करने का काम किया किया. संघ पृष्ठभूमि से आने वाले पूनिया ने 2004 से 2006 तक भारतीय जनता पार्टी, राजस्थान में प्रदेश महासचिव और 2006 से 2007 तक प्रदेश मोर्चा प्रभारी के रूप में काम किया. वो 2004 से 2014 तक चार बार विभिन्न संगठनात्मक कार्यों के साथ भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश महासचिव रहे.

इसे भी पढ़ें - कांग्रेस के 'पायलट' : एक चमकता सितारा जो खुद की 'रोशनी' के लिए लड़ता रहा, क्या अब परिणाम से बदलेगा पोजिशन ?

दो बार हारे विधानसभा चुनाव - डॉ. पूनिया की संगठन में अच्छी पकड़ मानी जाती है. साल 2004 से 2006 तक प्रदेश महामंत्री और 2006 से 2007 तक प्रदेश मोर्चा प्रभारी के रूप में कार्य किया. इसके बाद 2004 से 2014 तक चार बार भारतीय जनता पार्टी में प्रदेश महामंत्री रहे. 2011 में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की जन चेतना यात्रा के संयोजक बनाए गए. साथ ही 2010 और 2015 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी, हालांकि, साल 2000 में सादुलपुर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में वो बतौर प्रत्याशी मैदान में उतरे, लेकिन उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा.

Rajasthan Assembly Election 2023
राजस्थान विधानसभा के उपनेता प्रतिपक्ष

उसके बाद 2013 में आमेर विधानसभा क्षेत्र से खड़े हुए, लेकिन एक बार फिर वो चुनाव हार गए. पूनिया के सामने इस चुनाव में नेशनल पीपल्स पार्टी से नवीन पिलानिया और कांग्रेस से गंगा सहाय शर्मा मैदान में थे. मुकाबला त्रिकोणीय रहा, जिसमें पूनिया को 329 वोट से हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने पूनिया पर भरोसा जाता और एक बार फिर उन्हें चुनावी मैदान में उतारा गया. इस बार उन्होंने कांग्रेस के प्रशांत शर्मा और बीएसपी के नवीन पिलानिया को पछाड़ते हुए 13276 वोटों से जीत दर्ज की. साथ ही पहली बार विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे. इसके बाद 2023 में पार्टी ने उन्हें विधानसभा का उपनेता प्रतिपक्ष बनाया.

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विरोधियों से खुले तौर पर लड़े - 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद पार्टी ने साल 2019 में बड़ी जिम्मेदारी सौंपते हुए उन्हें प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया. अध्यक्ष बनने के साथ ही उन्हें पार्टी के भीतर भी अपने विरोधियों का सामना करना पड़ा, लेकिन वो बिना विचलित हुए सभी से खुले तौर पर लड़े. इतना नहीं उनके अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी मुख्यालय के बाहर लगी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की होर्डिंग हटा दी गई. ये पहली बार था, जब पूनिया और वसुंधरा राजे के बीच की अदावत खुल कर सामने आई थी. पूनिया ने राजे का फोटो हटाने के पीछे तर्क दिया था कि पोस्टर में सिर्फ राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रधानमंत्री के साथ प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष ही दिखेंगे. इस घटना के बाद राजे और उनके समर्थकों ने प्रदेश संगठन से दूरी बना ली थी. पूनिया के लिए कहा जाता है कि वो दोस्ती हो या विरोधियों से अदावत दोनों ही खुले तौर पर निभाते हैं.

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