जयपुर. राजस्थान यूनिवर्सिटी में छात्र राजनीति करने वाले युवा नेता अब विधानसभा चुनाव में पार्टियों के समक्ष अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं. यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ में साल 2010 के बाद से छात्रसंघ अध्यक्ष और महासचिव बनने वाले सभी छात्रनेताओं की विधायक बनने की ख्वाहिश है. इन नए नेताओं ने प्रदेश के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में अपनी सियासी जमीन तलाशकर उमरदराज नेताओं की मुश्किलें भी बढ़ाई हैं.
इनका संघर्ष अभी भी जारी : राजस्थान यूनिवर्सिटी ने राजस्थान के मुख्य धारा की राजनीति को कई दिग्गज नेता दिए हैं. हालांकि, साल 2010 से अब तक छात्रसंघ में कई युवा नेताओं ने अपनी तकदीर आजमाई, लेकिन अधिकतर को टिकट नहीं मिला. उन्हें जनरेट टिकट तो मिला, लेकिन इनमें सफल होने वालों का आंकड़ा बहुत कम है. जब बात विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनावों में अध्यक्ष और महासचिव के पदों पर रहने के बाद पूर्व छात्रनेताओं की हो तो एक भी चेहरा विधानसभा में दाखिल नहीं हो पाया. उनका संघर्ष अभी भी जारी है और इस बार भी विधानसभा चुनाव के लिए अपनी तैयारी में जुटे हुए हैं. कुछ अपने पैतृक क्षेत्र से उम्मीदवारी जता रहे हैं तो कुछ कर्म स्थली के मुद्दों पर जनता की आवाज बनना चाहते हैं. लिहाजा, अब चुनाव समर में उतरने के लिए राजनीतिक दलों के सामने टिकट के लिए दावेदारी जता रहे हैं.
छात्रसंघ चुनावों का इतिहास विधानसभा चुनाव में दोहराएंगे : अपने क्षेत्रों में सालों से तैयारी कर रहे इन युवा नेताओं को अब उम्मीद है कि उन्हें इस विधानसभा चुनाव में भी पार्टी जरूर संबल देगी. युवा नेताओं की मानें तो राजस्थान विश्वविद्यालय में छात्रों के बीच काम करने का लम्बा अनुभव रहा है. वो युवाओं की समस्याओं से भी वाकिफ रहते हैं और क्षेत्र में भी धरातल पर काम किया है. ऐसे में यदि उन्हें अपने विधानसभा चुनाव में मौका मिलता है, तो वो अपनी पार्टी को निराश नहीं करेंगे और छात्रसंघ चुनावों का इतिहास विधानसभा चुनाव में भी दोहराएंगे.
इनपर दाव खेला, लेकिन निराश रहे : वैसे तो 2010 के बाद आरयू का कोई छात्रसंघ पदाधिकारी विधानसभा तक नहीं पहुंच पाया, लेकिन इस चुनाव में उम्मीद की जा रही है कि सियासत की पहली सीढ़ी पार करने वाले छात्र नेताओं को अब मुख्यधारा की राजनीति में जगह मिल पाएगी. हालांकि, पिछली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मनीष यादव पर दाव खेला था, लेकिन उन्होंने निराश किया. वहीं, छात्र राजनीति में सक्रिय रहे मुकेश भाकर रामनिवास गावड़िया छात्र संगठन में भले ही पदाधिकारी नहीं रहे, लेकिन अपनी राजनीतिक समझ से विधानसभा तक जरूर पहुंचे.
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बहरहाल, प्रदेश में मचे चुनावी घमासान के बीच दोनों राजनीतिक दल जिताऊ उम्मीदवारों की तलाश में है. सोमवार को बीजेपी ने 41 प्रत्याशियों की पहली लिस्ट भी जारी कर दी. अन्य सीटों पर अभी भी समीकरण बैठाते हुए प्रत्याशियों पर विचार विमर्श जारी है. ऐसे में प्रदेश के सबसे बड़े विश्वविद्यालय में राजनीति का पाठ पढ़ने के बाद युवा नेता भी उनके सामने बतौर विकल्प मौजूद हैं.