जयपुर. जवाबदेही और स्वास्थ्य के अधिकार कानून को लेकर एक बार फिर प्रदेश के सामाजिक संगठन आंदोलन की राह पर हैं. वादाखिलाफी से नाराज सामाजिक संगठनों ने बुधवार को राजधानी जयपुर के शहीद स्मारक पर धरना दिया और सरकार पर आरोप लगाया कि इन दोनों कानूनों पर सरकार का पीछे हटने का मतलब है कि वह जनता के साथ धोखाधड़ी कर रही है. इसका जवाब आगामी चुनाव में मिलेगा.
जनता के साथ धोखाधड़ी से कम नहीं: सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने कहा कि सूचना एवं रोजगार अधिकार अभियान की ओर से जवाबदेही की व्यवस्था और उसके लिए जवाबदेही कानून बनाने को लेकर आंदोलन किया जा रहा है. सरकार की ओर से बनाया गया इस कानून का मसौदा बहुत ही कमजोर है. उससे भी बड़ी बात की सरकार अपना आखिर बजट पेश कर रही है, लेकिन पहले दो बजट में किये गए एलान और जन घोषणा पत्र के वादे से पीछे हट रही है. जवाबदेही कानून को लागू नहीं करना मतलब जनता के साथ धोखाधड़ी से कम नहीं है. सरकार जनता को उनके हक नहीं देना चाहती.
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मजदूर पर पेनल्टी लेकिन अफसर पर नहीं: निखिल डे ने कहा कि जवाबदेही कानून नहीं आएगा तो कोई भी योजना ले आओ, उसका लाभ आम जनता को नहीं मिलने वाला. सोशल सिक्योरिटी की बात सरकार बार-बार कर रही है, लेकिन जवाबदेही जब तक तय नहीं होगी, तो उसका भी लाभ कैसे मिलेगा? निखिल डे ने कहा कि सरकार अधिकारी- कर्मचारी अपने बच्चों को बड़े स्कूल में पढ़ाना चाहता है, लेकिन गरीब का बच्चा नहीं पढ़ सकता, क्या इसके लिए जवाबदेही तय नहीं होनी चाहिए. निखिल ने कहा कि मनरेगा के मजदूर पर पेनल्टी लग सकती है, लेकिन अफसर पर नहीं लगनी चाहिए. निखिल ने कहा कि सरकार अफसरशाही के दबाव में इस बिल को लाने से पीछे हट रही है.
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अब सरकार की जवाबदेही का वक्त: निखिल ने कहा कि आज हम सरकार के सामने आखिर बार आए हैं. सरकार का ये आखिरी बजट है, अगर सरकार मजबूत जवाबदेही कानून नहीं लाती है, तो अब जनता भी सरकार की जवाबदेही लेगी. निखिल डे ने कहा कि अब हमारे पास और कोई रास्ता नहीं बचा है, जिस व्यक्ति काम नहीं हो पा रहा है, उसके लिए अब जिम्मेदारी कांग्रेस सरकार की होगी. आम आदमी को उसका हक सरकार की वजह से नहीं मिल रहा और जनता इसका जवाब चुनाव में वोट की चोट से देगी.
स्वास्थ्य का अधिकार कानून में देरी क्यों?: स्वास्थ्य का अधिकार कानून के लिए काम कर रही छाया पचौली ने कहा कि इसी सत्र में सशक्त स्वास्थ्य का अधिकार कानून पास हो. राज्य में स्वास्थ्य का अधिकार बिल जो पिछले विधानसभा सत्र में लाया गया था और उसे विधानसभा ने प्रवर समिति को भेजा था, लेकिन प्रवर समिति का गठन बहुत देरी से किया गया है. इसके बाद बैठक भी समय पर नही हो रही. इससे समझ आ रहा है कि सरकार की मंशा आम जनता को स्वास्थ्य का अधिकार देने की नहीं लग रही है.
निजी हॉस्पिटल का विरोध गलत: छाया ने कहा कि विधेयक का निजी स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोग पुरजोर विरोध कर रहे हैं, जबकि हकीकत ये है कि इस बिल का उनसे बहुत कम लेना-देना है. वास्तव में इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को सुव्यवस्थित करना है, जो की स्वास्थ्य सेवाकर्मियों की एक विशाल सेना और एक विशाल बुनियादी ढांचा होने के बावजूद भी लम्बे समय से आमजन तक गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं पहुचाने में कुछ खास सफलता अर्जित नहीं कर पाई है. छाया ने कहा कि यदि स्वास्थ्य का अधिकार अधिनियम पारित हो जाता है, तो यह सरकार और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए बाध्यकारी हो जाएगा कि वे लोगों को उनके अधिकार के रूप में अनिवार्य सेवाएं दें.