भरतपुर: घना पक्षी अभयारण्य (केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान) के वेटलैंड इकोसिस्टम को संरक्षित रखने के लिए प्रशासन ने एक नई पहल की है. अब स्थानीय समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए 'वेटलैंड मित्र' नियुक्त किए जाएंगे. यह कार्यक्रम न केवल अभयारण्य की जैव विविधता को बचाने में मदद करेगा, बल्कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूकता भी बढ़ाएगा.
क्या है 'वेटलैंड मित्र' योजना ? : निदेशक मानस सिंह ने बताया कि इस योजना के तहत उद्यान प्रशासन स्थानीय निवासियों, युवाओं, एनसीसी कैडेट्स को प्रशिक्षित करेगा, जो वेटलैंड संरक्षण में अहम भूमिका निभाएंगे. ये 'वेटलैंड मित्र' निम्न भूमिका निभाएंगे...
- वेटलैंड क्षेत्र में वन्यजीवों की निगरानी करेंगे और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे.
- अवैध शिकार, जल प्रदूषण और अन्य खतरों की सूचना प्रशासन को देंगे.
- पर्यटकों को वेटलैंड की संवेदनशीलता और संरक्षण के उपायों के प्रति जागरूक करेंगे.
- जल स्रोतों के संरक्षण और वेटलैंड के प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में मदद करेंगे.
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक मानस सिंह ने बताया कि वन विभाग और स्थानीय निकायों के सहयोग से इस योजना को लागू किया जाएगा. घना वेटलैंड को बचाने में समुदाय की सक्रिय भागीदारी बेहद जरूरी है. उन्होंने कहा कि घना केवल एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि हजारों प्रवासी पक्षियों का अस्थायी घर भी है. इस पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने के लिए हमें स्थानीय लोगों की मदद लेनी होगी, ताकि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रह सके.
वेटलैंड मित्रों को विशेष सुविधाएं : निदेशक मानस ने बताया कि इस पहल के तहत वेटलैंड मित्रों को विशेष पहचान के रूप में बैज प्रदान किए जाएंगे, जिससे वे औपचारिक रूप से संरक्षण अभियान का हिस्सा बन सकें. इसके अलावा, उन्हें वर्षभर केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (घना) में निशुल्क प्रवेश की अनुमति दी जाएगी, ताकि वे नियमित रूप से वेटलैंड की निगरानी और संरक्षण गतिविधियों में योगदान दे सकें. निदेशक मानस ने बताया कि यह पहल पहले भी सफल रही है. पिछले वर्ष 125 वेटलैंड मित्र नियुक्त किए गए थे, जिन्होंने वेटलैंड संरक्षण में अहम भूमिका निभाई थी. इस वर्ष इस योजना को और प्रभावी बनाने की योजना है, जिससे अधिक से अधिक लोग इससे जुड़ सकें और जैव विविधता की रक्षा में सहयोग दें.
गौरतलब है कि घना वेटलैंड अंतरराष्ट्रीय रामसर साइट के तहत संरक्षित क्षेत्र है, लेकिन हाल के वर्षों में जल संकट और जलवायु परिवर्तन की वजह से इसकी स्थिति चिंताजनक बनी हुई है. ऐसे में घना की पारिस्थितिकी को बचाने के लिए सिर्फ सरकारी प्रयास ही पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि स्थानीय लोगों को भी इस जिम्मेदारी में भागीदार बनाना होगा. राजस्थान में पानी की कमी पहले से ही एक गंभीर मुद्दा रही है. जल स्रोतों के सूखने, अवैध अतिक्रमण और जलवायु परिवर्तन के कारण प्रवासी पक्षियों की आमद पर असर पड़ा है. ऐसे में वेटलैंड मित्र योजना वेटलैंड की रक्षा में मील का पत्थर साबित हो सकती है.