अजमेर: विश्व विख्यात सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में बसंत पेश करने की अनूठी परंपरा है. यह परंपरा 750 से अधिक वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी चल रही है. इस दौरान शाही कव्वालों की ओर से अमीर खुसरो के बसंत पर लिखे कलाम पेश किए जाते हैं. सरसों के फूलों के साथ मौसमी फूलों से बना गुलदस्ता ख्वाजा गरीब नवाज की मजार पर पेश किया जाता है. यहां 750 से अधिक वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी बसंत पेश किया जाता रहा है. इस बार दरगाह में बसंत मंगलवार को पेश किया जाएगा.
ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह देश दुनिया में सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल है. दरगाह में कई तरह की परंपराएं और रस्में निभाई जाती है. इनमें बसंत पेश करने की परंपरा भी अनूठी है. हिंदू धर्म में बसंत पंचमी को विशेष धार्मिक महत्व का दिन माना जाता है. इस दिन दरगाह में बसंत पर कलाम पेश किए जाते हैं. दरगाह में शाही कव्वाल सद्दाम हुसैन ने बताया कि अमीर खुसरो ने अपने पीर निजामुद्दीन औलिया को खुश करने के लिए सरसों और अन्य मौसमी फलों का गुलदस्ता पेश किया था. साथ ही बसंत पर कलाम लिखकर हजरत निजामुद्दीन औलिया को सुनाए थे. तब से अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में बसंत पेश करने की परंपरा शुरू हुई. 750 वर्षों से भी अधिक समय से यह परंपरा अजमेर दरगाह में भी पीढ़ी दर पीढ़ी निभाई जा रही है.
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गुरु की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं शाही कव्वाल: खादिम सैयद कुतुबुद्दीन हसन चिश्ती ने बताया कि अमीर खुसरो शायर व संगीतगार थे. शाही कव्वाल अमीर खुसरो को अपना गुरु मानते हैं. यही वजह है कि सदियों से शाही कव्वाल अपने गुरु की शुरू की गई परंपरा को पीढ़ी दर पीढ़ी निभा रहे हैं. देश में निजामुद्दीन औलिया और ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के अलावा कई सूफी दरगाह में भी बसंत पेश किए जाते हैं.
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यूं पेश होती है दरगाह में बसंत: मंगलवार को अजमेर दरगाह में बसंत पेश होगी. इस दौरान दरगाह दीवान और खादिमों के अलावा जायरीनों की मौजूदगी भी रहेगी. दरगाह के मुख्य द्वार निज़ाम गेट से शाही कव्वाल अमीर खुसरो के लिखे कलाम गाते हुए आस्ताने की ओर बढ़ते हैं. साथ ही सरसों के फूल और मौसमी फलों का गुलदस्ता भी अपने साथ रखते हैं. यह गुलदस्ता आस्ताने पहुंचकर खादिमों की मौजूदगी में ख्वाजा गरीब नवाज की मजार पर पेश किया जाता है. उसके बाद सभी मिलकर मुल्क में अमन चैन, भाईचारा और खुशहाली की दुआएं करते हैं.