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दीयाें की 'राेशनी' से छंट जाएगा काेराेना का अंधेरा, मिट्टी के इन कलाकारों को अच्छी कमाई की उम्मीद - Potters expect good sales of Diyas

राजधानी जयपुर के कुम्हार करवां चौथ और दीवाली की तैयारी में जुट गए हैं. दीपक बनाने से लेकर करवां और मिट्टी के कलात्मक चीजें बनाई जा रही हैं. हालांकि इस बार काेराेना के चलते मांग कम होने से चेहरे पर थोड़ी मायूसी का आलम है. लेकिन चाइनीज सामान के बहिष्कार के बाद अब अच्छी कमाई की उम्मीद है

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दीयाें की राेशनी से छंट जाएगा काेराेना का अंधियारा
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Published : Oct 28, 2020, 9:44 AM IST

रेनवाल (जयपुर): भारत देश त्योहार और मेलों का देश है. पूरे विश्व की तुलना में भारत में सबसे ज्यादा त्योहार मनाए जाते हैं. दीवाली का त्योहार सबसे अहम माना जाता है. यह पर्व रौशनी का पर्व है. कोरोना महामारी के दौर में लगे लॉकडाउन की वजह से 6 महीने तक फूटी कौड़ी भी नहीं कमा पाए कुम्हार परिवार को इस त्योहार से काफी उम्मीदे हैं.

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दीपक बनाता कुम्हार

इसी आस में कुम्हार करवां चौथ और दीवाली की तैयारी में जुट गए हैं. दीपक बनाने से लेकर करवां और मिट्टी के कलात्मक चीजें बनाई जा रही हैं. हालांकि इस बार काेराेना के चलते मांग कम होने से चेहरे पर थोड़ी मायूसी का आलम है. लेकिन चाइनीज सामान के बहिष्कार के बाद अब अच्छी कमाई की उम्मीद है. कुम्हाराें का कहना है कि यह दिवाली उमंग भरी होगी.

चाइनीज सामान से फीकी कर दी थी दीवाली

आधुनिकता का असर दीवाली जैसे पर्वों पर भी पड़ा है. यही वजह है कि आज मिट्टी के दीपों की जगह बिजली के बल्बों और मोमबत्तियों ने ली है. इसीलिए इस सत्य को स्वीकार करना चाहिए कि हमारी माटी की महक पर चाइनीज सामान भारी पड़ गए हैं. यानी दीपावली शब्द ही जिस दीप से बना है, उसके अस्तित्व पर आज खतरा मंडरा रहा है. या यूं कहे कि मिट्टी के दीए की कहानी आखिरी चरण पर है.

कभी उत्सवों की शान समझे जाने वाले दीपों का व्यवसाय आज संकट के दौर से गुजर रहा है. अब रही कसर काेराेना ने पूरी कर दी है. जिसका सीधा असर दीयों को रंगों से चमकाने वाले कुम्हारों की जिंदगी पर भी पड़ रहा है.

यह भी पढ़ें: जैसलमेर में बिना पटाखों के मनाई जाएगी दिवाली...खरीदने-बेचने वालों पर होगी कार्रवाई

कुम्हार रामदेव प्रजापत ने बताते हैं कि वे 40-50 किलाेमीटर दूर से मिट्टी लेकर आते हैं. इसके बाद पसीना बहाकर चाक पर मिट्टी को आकार देते हैं. यह हमारा पुस्तैनी काम है. लेकिन पहले चाइनीज सामानों ने दीयों की चमक फीकी कर दी और अब रही कसर कोरोना ने पूरी कर दी है. लेकिन फिर भी उम्मीद है कि अब चाइनीज सामानों पर बैन लगने से अच्छी बिक्री होगी.

यह भी पढ़ें: आत्मनिर्भर भारत : इस दिवाली गाय के गोबर से रोशन होंगे घर-आंगन...दूसरे राज्यों ने भी की डिमांड

आर्थिक संकट से गुजर रहे रेनवाल के रहने वाले बाबूलाल प्रजापत बताते हैं कि कोरोना काल में एक रुपए की भी कमाई नहीं हुई है. दीपावली के लिए छह माह पहले से दीपक और मिट्टी के बर्तन बनाने के कि तैयारियां शुरु हाे जाती हैं, लेकिन अबकि बार काेराेना के चलते जैसे-तैसे घर का गुजारा चलाया. अब त्योहार नजदीक है. कलाकार उम्मीद के साथ दीपक, कलश, करवां और अन्य मिट्टी से बने कलात्कार चीजें बनाने में जुट गए हैं.

रेनवाल (जयपुर): भारत देश त्योहार और मेलों का देश है. पूरे विश्व की तुलना में भारत में सबसे ज्यादा त्योहार मनाए जाते हैं. दीवाली का त्योहार सबसे अहम माना जाता है. यह पर्व रौशनी का पर्व है. कोरोना महामारी के दौर में लगे लॉकडाउन की वजह से 6 महीने तक फूटी कौड़ी भी नहीं कमा पाए कुम्हार परिवार को इस त्योहार से काफी उम्मीदे हैं.

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दीपक बनाता कुम्हार

इसी आस में कुम्हार करवां चौथ और दीवाली की तैयारी में जुट गए हैं. दीपक बनाने से लेकर करवां और मिट्टी के कलात्मक चीजें बनाई जा रही हैं. हालांकि इस बार काेराेना के चलते मांग कम होने से चेहरे पर थोड़ी मायूसी का आलम है. लेकिन चाइनीज सामान के बहिष्कार के बाद अब अच्छी कमाई की उम्मीद है. कुम्हाराें का कहना है कि यह दिवाली उमंग भरी होगी.

चाइनीज सामान से फीकी कर दी थी दीवाली

आधुनिकता का असर दीवाली जैसे पर्वों पर भी पड़ा है. यही वजह है कि आज मिट्टी के दीपों की जगह बिजली के बल्बों और मोमबत्तियों ने ली है. इसीलिए इस सत्य को स्वीकार करना चाहिए कि हमारी माटी की महक पर चाइनीज सामान भारी पड़ गए हैं. यानी दीपावली शब्द ही जिस दीप से बना है, उसके अस्तित्व पर आज खतरा मंडरा रहा है. या यूं कहे कि मिट्टी के दीए की कहानी आखिरी चरण पर है.

कभी उत्सवों की शान समझे जाने वाले दीपों का व्यवसाय आज संकट के दौर से गुजर रहा है. अब रही कसर काेराेना ने पूरी कर दी है. जिसका सीधा असर दीयों को रंगों से चमकाने वाले कुम्हारों की जिंदगी पर भी पड़ रहा है.

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कुम्हार रामदेव प्रजापत ने बताते हैं कि वे 40-50 किलाेमीटर दूर से मिट्टी लेकर आते हैं. इसके बाद पसीना बहाकर चाक पर मिट्टी को आकार देते हैं. यह हमारा पुस्तैनी काम है. लेकिन पहले चाइनीज सामानों ने दीयों की चमक फीकी कर दी और अब रही कसर कोरोना ने पूरी कर दी है. लेकिन फिर भी उम्मीद है कि अब चाइनीज सामानों पर बैन लगने से अच्छी बिक्री होगी.

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आर्थिक संकट से गुजर रहे रेनवाल के रहने वाले बाबूलाल प्रजापत बताते हैं कि कोरोना काल में एक रुपए की भी कमाई नहीं हुई है. दीपावली के लिए छह माह पहले से दीपक और मिट्टी के बर्तन बनाने के कि तैयारियां शुरु हाे जाती हैं, लेकिन अबकि बार काेराेना के चलते जैसे-तैसे घर का गुजारा चलाया. अब त्योहार नजदीक है. कलाकार उम्मीद के साथ दीपक, कलश, करवां और अन्य मिट्टी से बने कलात्कार चीजें बनाने में जुट गए हैं.

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