जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि कोर्ट ऐसी कोई कमेटी गठित या गाइडलाइन जारी नहीं कर सकता, जिससे यह तय किया जा सके कि कौनसा कृत्य न्यायालय की अवमानना की श्रेणी में आता है. वहीं अदालत ने यह भी कहा कि वह किसी को माफीनामा पेश करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते.
इसके साथ ही जस्टिस एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस प्रवीर भटनागर ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया है. अदालत ने कहा कि समान बिंदु पर एक अन्य याचिका पहले से ही अदालत में लंबित चल रही है. जनहित याचिका मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से न्यायपालिका पर बयानबाजी को लेकर दायर की गई थी. कुणाल शर्मा की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया था कि सीएम गहलोत ने न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और वकीलों के लिए बयानबाजी कर पूरी न्यायपालिका की प्रक्रिया व उसकी गरिमा को अपमानित किया है.
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जबकि संविधान के प्रावधान सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार देते हैं, लेकिन सीएम के इस बयान से न्यायपालिका की प्रणाली पर चोट पहुंची है. याचिकाकर्ता भी आहत हुआ है. इसलिए अदालत सीएम से बिना कोई शर्त माफी मंगवाए और बयानबाजी की जांच के लिए संभव हो तो किसी रिटायर जज की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई जाए. वहीं ऐसी बयानबाजी पर अंकुश रखने के लिए अदालत गाइडलाइन जारी करे. जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने जनहित याचिका को खारिज कर दिया है.