जयपुर. एक ओर राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के जरिए पार्टी को मजबूत करने में (Rahul Gandhi Bharat Jodo Yatra) लगे हैं, ताकि आगामी चुनावों में पार्टी अपने खोए जनाधार को वापस हासिल कर सके. वहीं दूसरी ओर राजस्थान की सियासी भूचाल ने पार्टी की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं. सूबे के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत किसी भी सूरत में सीएम की कुर्सी छोड़ने को तैयार (Battle of CM chair in Rajasthan) नहीं हैं. जबकि पायलट पूरी तरह से पार्टी आलाकमान की शरण में हैं. ऐसे में अब सूबे की सियासी गलियारों में एक नए समीकरण पर चर्चा शुरू हो गई है. माना जा रहा है कि अगर मल्लिकार्जुन खड़गे निर्विरोध पार्टी के अध्यक्ष चुने जाते हैं तो 8 अक्टूबर से राजस्थान में फैसलों का सिलसिला तेजी से शुरू (political crisis in rajasthan) होगा. वहीं, अगर चुनाव की सूरत बनती है तो भी खड़गे पीसीसी सदस्यों के बहाने विधायकों से दोहरी भूमिका में मुलाकात करेंगे.
दरअसल, बीते 25 सितंबर के वाकया के बाद से ही पार्टी आलाकमान गहलोत समर्थक विधायकों से नाराज (rajasthan political crisis) है. जिसकी बानगी समय-दर-समय देखने को मिलते रही है. हालांकि, विधायकों के अड़ियल रवैए के बीच खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दिल्ली पहुंच पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात कर माफी भी मांग चुके हैं. बावजूद इसके अब भी हालात पूरी तरह से नियंत्रित नहीं हो सका है. वहीं, पार्टी केंद्रीय नेतृत्व ने पूर्व निर्धारित विधायक दल की बैठक के बहिष्कार और पृथक बैठक करने पर सख्त रूख अख्तियार किया था. बीते 27 सितंबर को राजस्थान विधानसभा के मुख्य सचेतक महेश जोशी, संसदीय कार्यमंत्री शांतिलाल धारीवाल और आरटीडीसी के चेयरमैन धर्मेंद्र राठौड़ को कारण बताओ नोटिस जारी किया था. जिसके बाद धारीवाल और धर्मेंद्र राठौड़ ने नोटिस के जवाब में अपना पक्ष तो रखा दिया. लेकिन महेश जोशी को अगले 10 दिन में जवाब देना है.
वहीं, 27 सितंबर के बाद गहलोत खेमा हो या फिर पायलट कैंप दोनों ही गुटों ने चुप्पी साध रखी है. जिसे राजस्थान कांग्रेस में आने वाले उस तूफान से पहले की शांति माना जा रहा है, जो अपनी चपेट में न केवल सरकार, बल्कि संगठन को भी ले सकता है. इधर, राजस्थान कांग्रेस के लिए 8 अक्टूबर का दिन अहम होगा, क्योंकि 8 अक्टूबर को पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव के नामांकन को वापस लेने की अंतिम तिथि है. ऐसे में अगर शशि थरूर अपना नाम वापस ले लेते हैं तो फिर खड़गे निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित होंगे. इस स्थिति में 8 अक्टूबर से ही राजस्थान में सियासी भूचाल की संभावना बढ़ जाएगी.
वहीं, अगर थरूर नाम वापस नहीं लेते हैं तो भी अगले सप्ताह राष्ट्रीय अध्यक्ष के उम्मीदवार मल्लिकार्जुन खड़गे के राजस्थान में वोट मांगने की यात्रा सूबे की सियासत को प्रभावित करेगी. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि खड़गे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के उम्मीदवार होने के साथ ही राजस्थान कांग्रेस के इतिहास की उस विधायक दल की बैठक के भी एक पर्यवेक्षक रहे, जिसे आलाकमान अपने आदेशों की अवहेलना मान रहा है. इधर, अगर 8 अक्टूबर को शशि थरूर राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव से अपना नामांकन वापस लेते हैं तो ऐसी स्थिति में खड़गे का निर्विरोध निर्वाचित होंगे. ऐसे में साफ है कि खड़गे राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद सबसे पहले अपने उस टास्क को पूरा करेंगे, जो उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पहले अंतिम बार पर्यवेक्षक के तौर पर सौंपा गया था.
8 अक्टूबर को अगर खड़गे का निर्विरोध निर्वाचन नहीं होता है तो उस स्थिति में भी आने वाला एक सप्ताह राजस्थान की सियासत के लिए खासा महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि ऐसी स्थिति में खड़गे राजस्थान के वोटर्स यानी 400 पीसीसी सदस्यों से वोट मांगने पहुंचेंगे. भले ही उनकी मुलाकात 25 सितंबर को पर्यवेक्षक के तौर पर विधायकों से नहीं हो सकी हो, लेकिन वोट मांगते समय उनकी मुलाकात जिन पीसीसी सदस्यों से होगी, उनमें 95 प्रतिशत बागी विधायक ही शामिल होंगे, जो पीसीसी सदस्य भी हैं. ऐसे में खड़गे पीसीसी मेंबर बने विधायकों से जब चर्चा करेंगे तो उस समय निश्चित तौर पर उनके दिमाग में विधायकों की वो नाफरमानी भी होगी.
वहीं, विधायकों को जारी नोटिस बताओ नोटिस पर कांग्रेस अनुशासन समिति के सदस्य तारिक अनवर ने कहा कि राजस्थान गए दोनों पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट के आधार पर ही कारण बताओ नोटिस दिए गए हैं. अगर उनके जवाब से अनुशासन समिति संतुष्ट होती है तो उन्हें माफी मिल सकती है.