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RSCDR Commission: सिविल दावा व रेरा में केस पेंडिंग हो, तो भी उपभोक्ता आयोग में दायर कर सकते हैं क्षतिपूर्ति का दावा

खरीदार और बिल्डर के बीच फ्लैट विवाद के एक मामले में राजस्थान राज्य उपभोक्ता आयोग ने अपने फैसले में कहा है कि अगर केस सिविल दावा व रेरा में चल रहा हो, तो भी उपभोक्ता आयोग में क्षतिपूर्ति का दावा किया जा सकता है.

Important decision of RSCDR Commission for home buyers and builders
RSCDR Commission: सिविल दावा व रेरा में केस पेंडिंग हो, तो भी उपभोक्ता आयोग में दायर कर सकते हैं क्षतिपूर्ति का दावा
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Published : May 18, 2023, 9:19 PM IST

जयपुर. राजस्थान राज्य उपभोक्ता आयोग ने खरीदार व बिल्डर के बीच फ्लैट विवाद के मामले में दिए फैसले में कहा है कि परिवादी एक ही समय पर उपभोक्ता अदालत के साथ ही सिविल दावा व रेरा में केस चला सकता है. आयोग ने स्पष्ट किया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 100 के प्रावधान अतिरिक्त हैं और किसी अन्य कानूनी प्रावधानों को खत्म नहीं करते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने भी मैसर्स इंपेरिया स्ट्रक्चर लिमिटेड बनाम अनिल पाटनी के मामले में रेरा एक्ट व उपभोक्ता संरक्षण कानून की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा है कि उपभोक्ता कानून की धारा 100 के प्रावधान रेरा अधिनियम के बाद बनाए हैं, जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत मिलने वाली क्षतिपूर्ति की सुरक्षा के लिए ही हैं. आयोग ने यह आदेश नरेश जैन बनाम मैसर्स एलएस हाउसिंग प्राइवेट लिमिटेड व अन्य में विपक्षी बिल्डर के प्रार्थना पत्रों को खारिज करते हुए दिए. प्रार्थना पत्र में कहा गया था कि परिवादी ने उनके खिलाफ सिविल कोर्ट में एक दावा दायर कर रखा है और इसकी जानकारी परिवाद में नहीं है.

पढ़ेंः रेरा के एग्रीमेंट में बिल्डर मर्जी से नहीं कर सकते बदलाव, लगाया 20 हजार हर्जाना

वहीं परिवादी ने उसके खिलाफ रेरा में भी शिकायत दर्ज कराई है. ऐसे में परिवादी ने एक ही विषय पर सिविल कोर्ट व रेरा सहित उपभोक्ता आयोग में परिवाद दायर कर क्षतिपूर्ति चाही है. इसलिए परिवादी के उपभोक्ता आयोग में दायर परिवाद को अस्वीकार किया जाए. आयोग ने दोनों पक्षों को सुनकर कहा कि परिवादी ने सिविल कोर्ट से उसके खरीदे फ्लैट को किसी अन्य को हस्तांतरित नहीं करने का अनुतोष मांगा है. जबकि उपभोक्ता अदालत से फ्लैट की कीमत ब्याज सहित वापस मांगी है. इसके बाद ही उसने रेरा में 3 जुलाई, 2022 को शिकायत की. इसलिए उपभोक्ता आयोग में दायर परिवाद अलग क्षतिपूर्ति के लिए है. ऐसे में विपक्षी के प्रार्थना पत्रों को खारिज किया जाना उचित होगा.

जयपुर. राजस्थान राज्य उपभोक्ता आयोग ने खरीदार व बिल्डर के बीच फ्लैट विवाद के मामले में दिए फैसले में कहा है कि परिवादी एक ही समय पर उपभोक्ता अदालत के साथ ही सिविल दावा व रेरा में केस चला सकता है. आयोग ने स्पष्ट किया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 100 के प्रावधान अतिरिक्त हैं और किसी अन्य कानूनी प्रावधानों को खत्म नहीं करते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने भी मैसर्स इंपेरिया स्ट्रक्चर लिमिटेड बनाम अनिल पाटनी के मामले में रेरा एक्ट व उपभोक्ता संरक्षण कानून की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा है कि उपभोक्ता कानून की धारा 100 के प्रावधान रेरा अधिनियम के बाद बनाए हैं, जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत मिलने वाली क्षतिपूर्ति की सुरक्षा के लिए ही हैं. आयोग ने यह आदेश नरेश जैन बनाम मैसर्स एलएस हाउसिंग प्राइवेट लिमिटेड व अन्य में विपक्षी बिल्डर के प्रार्थना पत्रों को खारिज करते हुए दिए. प्रार्थना पत्र में कहा गया था कि परिवादी ने उनके खिलाफ सिविल कोर्ट में एक दावा दायर कर रखा है और इसकी जानकारी परिवाद में नहीं है.

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वहीं परिवादी ने उसके खिलाफ रेरा में भी शिकायत दर्ज कराई है. ऐसे में परिवादी ने एक ही विषय पर सिविल कोर्ट व रेरा सहित उपभोक्ता आयोग में परिवाद दायर कर क्षतिपूर्ति चाही है. इसलिए परिवादी के उपभोक्ता आयोग में दायर परिवाद को अस्वीकार किया जाए. आयोग ने दोनों पक्षों को सुनकर कहा कि परिवादी ने सिविल कोर्ट से उसके खरीदे फ्लैट को किसी अन्य को हस्तांतरित नहीं करने का अनुतोष मांगा है. जबकि उपभोक्ता अदालत से फ्लैट की कीमत ब्याज सहित वापस मांगी है. इसके बाद ही उसने रेरा में 3 जुलाई, 2022 को शिकायत की. इसलिए उपभोक्ता आयोग में दायर परिवाद अलग क्षतिपूर्ति के लिए है. ऐसे में विपक्षी के प्रार्थना पत्रों को खारिज किया जाना उचित होगा.

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