जयपुर. लोकतंत्र की स्थापना के 6 दशक बाद भी देश के सियासी मैदान में राजस्थान के पूर्व राजघरानों को मतदाताओं का प्यार मिलता आ रहा है. यही वजह है कि अपने भाषणों में सामंतवाद पर निशाना साधने वाली तमाम पार्टियां भी राज परिवारों को लोकसभा में पूरा प्रतिनिधित्व देती आई हैं. इस बार भी राजस्थान के पूर्व राजघराने पार्टियों के टिकट से चुनावी मैदान में हैं.
अक्सर भाजपा और कांग्रेस पार्टियों के नेता सामंतशाही की बात कर बयान बाजी करते हैं और वोट मांगते हैं लेकिन जनता के बीच पैठ के चलते मजबूरी में ही सही लेकिन लोकतंत्र के महापर्व में पूर्व राज परिवारों के सदस्यों को खुले दिल से टिकट भी देते हैं. चाहे भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही पार्टियां राज परिवारों की जनता में पकड़ को देखते हुए उन्हें टिकट देती रही हैं.
प्रदेश के विधानसभा चुनाव की बात करें तो लिस्ट लंबी हो जाती है लेकिन अगर हम केवल लोकसभा चुनाव की बात करें तो भी राजस्थान से सांसद का चुनाव जीतने वाले पूर्व राज परिवारों के सदस्यों की कोई कमी नहीं है. लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो इस बार भी तीन राज परिवार के सदस्यों को भाजपा और कांग्रेस ने टिकट दिया है.
इनमें जयपुर राजपरिवार की दिया कुमारी को राजसमंद लोकसभा से, धौलपुर राजपरिवार के दुष्यंत सिंह को झालावाड़ लोकसभा से तो अलवर राज परिवार के भंवर जितेंद्र सिंह को अलवर लोकसभा से टिकट दिया गया है. इसमें भी खास बात यह है कि इस बार भी जनता का समर्थन इन राज परिवार के सदस्यों को मिल रहा है और ये सभी स्थापित नेता भी हैं.
यह है इस बार के तीनों राज परिवार के सदस्य
1. जयपुर राजपरिवार
जयपुर के पूर्व राज परिवार की सदस्य दीया कुमारी को भाजपा ने राजसमंद लोकसभा सीट से टिकट दिया है. दीया कुमारी से पहले उनकी दादी जयपुर की पूर्व राजमाता गायत्री देवी भी जयपुर शहर से तीन बार सांसद रह चुकी हैं. गायत्री देवी ना केवल जयपुर बल्कि राजस्थान की भी पहली महिला सांसद थीं. लोकसभा का टिकट पाने वाली दीया कुमारी पिछली वसुंधरा सरकार में पहली बार सवाई माधोपुर से विधायक बनकर राजनीति में आई. इस बार उन्हें ऊादुा ने राजसमंद से टिकट दिया है.
2. धौलपुर राज परिवार से दुष्यंत सिंह
धौलपुर के पूर्व राजघराने के सदस्य दुष्यंत सिंह वर्तमान में झालावाड़ लोकसभा से भाजपा प्रत्याशी हैं. दुष्यंत सिंह लगातार तीन बार से इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. उन्हें चौथी बार भाजपा का टिकट मिला है. इससे पहले इस सीट पर उनकी मां और पूर्व महारानी वसुंधरा राजे पांच बार सांसद रह चुकी हैं और वे राजस्थान की एकमात्र ऐसी महिला हैं जो 5 बार जीत दर्ज कर सकी हैं.
3. अलवर लोकसभा सीट से भंवर जितेंद्र
अलवर लोकसभा सीट से कांग्रेस ने अलवर राज परिवार के सदस्य भंवर जितेंद्र सिंह को टिकट दिया है. भंवर जितेंद्र सिंह साल 2009 में भी अलवर के सांसद रह चुके हैं. इसी सीट से वे विधायक भी रह चुके हैं. अलवर लोकसभा सीट पर भंवर जितेन्द्र सिंह की मां महेन्द्र कुमारी भी जीत चुकी हैं.
लोकसभा चुनाव 2019 में तीन सीटों पर पूर्व राज परिवारों के सदस्य अपना भाग्य आजमा रहे हैं जो जीत के मजबूत दावेदार भी माने जा रहे हैं लेकिन लोकसभा में जीत का इतिहास राजस्थान के राज परिवारों का पुराना है. राजस्थान में 18 बड़े पूर्व राजघराने हैं जिनमें आधे से ज्यादा राजनीति में सक्रिय रहे हैं. हम यहां आपको अभी केवल लोकसभा चुनाव में प्रतिनिधित्व करने वाले पूर्व राज परिवारों के बारे में बता रहे हैं.
1. जोधपुर राजपरिवार
महाराजा हनुवंत सिंह जोधपुर राजपरिवार के पहले सदस्य थे जिन्होंने लोकसभा चुनाव जीता. एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई जिसके बाद लंबे समय तक जोधपुर राजपरिवार राजनीति से दूर रहा. फिर साल 1971 में महाराजा हनुवंत सिंह की पत्नी पूर्व जोधपुर राजमाता कृष्णा कुमारी ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. महाराजा हनुवंत सिंह के बेटे पूर्व महाराजा गज सिंह सक्रिय तौर पर राजनीति में तो नहीं आए लेकिन वह साल 1990 और साल 1992 में राज्यसभा सदस्य रहे.
गजसिंह की बड़ी बहन चंद्रेश कुमारी जिनका विवाह हिमाचल के कटोच राज परिवार में हुआ. चंद्रेश कुमारी कांग्रेस पार्टी से जुड़ी रहीं और उन्होंने साल 1984 में हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा से लोकसभा सीट पर चुनाव जीता इसके बाद उनकी एंट्री जोधपुर में हुई. लोकसभा चुनाव 2009 में कांग्रेस के टिकट पर चंद्रेश कुमारी ने चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. इसके बाद वे पूर्ववर्ति यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहीं. हालांकि 2014 में वे चुनाव हार गई.
2. जयपुर राजपरिवार
जयपुर राजपरिवार का राजनीति से गहरा ताल्लुक रहा है. पूर्व राजमाता गायत्री देवी 1962 का चुनाव जीतकर पहली बार लोकसभा पहुंची. गायत्री देवी को राजस्थान की पहली महिला सांसद की रहने का गौरव प्राप्त है. गायत्री देवी ने लगातार 1962, 1967 और 1971 के तीन चुनाव जीते और जयपुर लोकसभा सीट पर एकछत्र भाजपा का राज कायम किया. इसके बाद उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा. हालांकि उनके सौतेले बेटे भवानी सिंह जो कि जयपुर राज परिवार के अंतिम पूर्व महाराज कहलाते थे, ने राजीव गांधी के कहने पर 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन भाजपा के गिरधारी लाल भार्गव से वे चुनाव हार गए. इसके बाद भवानी सिंह ने सक्रिय राजनीति से संयास ले लिया लेकिन अब उन्हीं की बेटी पूर्व राजकुमारी दीया कुमारी ने सियासी विरासत को आगे बढ़ाया है. साल 2014 में भाजपा का दामन थामा और सवाई माधोपुर से विधायक का चुनाव जीता. इसके बाद अब उन्हें राजसमंद से लोकसभा का टिकट दिया गया है.
3. जैसलमेर राजपरिवार
जैसलमेर के महारावल रघुनाथ सिंह बहादुर ने 1950 में गद्दी संभाली थी. वह 1957 में बाड़मेर से लोकसभा के लिए चुने गए और सांसद बने. जैसलमेर राजपरिवार के किसी सदस्य ने लंबे समय बाद किसी चुनाव में बिगुल बजाया. परिवार की बहू रासेश्वरी राज्यलक्ष्मी ने विधानसभा चुनाव लड़ने का सार्वजनिक एलान किया था लेकिन कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने के चलते उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा वहीं अब लोकसभा चुनाव से उन्होंने दूरी बना रखी है.
4. धौलपुर राज परिवार
ग्वालियर राजपरिवार की बेटी वसुंधरा राजे का विवाह धौलपुर राज परिवार में हुआ. राजे ने 1984 में राजनीति में प्रवेश किया और साल 1985 में वह धौलपुर से राजस्थान विधानसभा की सदस्य बनीं. इसके बाद लगातार पांच बार झालावाड़ लोकसभा सीट से सांसद बनीं जो राजस्थान की किसी भी महिला का सबसे ज्यादा बार सांसद बनने का एक रिकॉर्ड है. साल 2003 में जब वे राजस्थान की मुख्यमंत्री बनीं तो उनकी परंपरागत सीट झालावाड़ उनके बेटे दुष्यंत सिंह की झोली में गई. दष्यंत सिंह लगातार तीन बार से इस सीट पर जीत दर्ज करते आ रहे हैं. इस बार भी भाजपा ने चौथी बार दुष्यंत सिंह को अपना लोकसभा प्रत्याशी बनाया है.
5. भरतपुर राज परिवार
भरतपुर राज परिवार आजादी के बाद से ही राजनीति में सक्रिय रहा है. पहले लोकसभा चुनाव में भरतपुर के राजा गिरिराज शरण बच्चों सिंह पहली बार लोकसभा में जीतकर पहुंचे थे. उनके बाद राजा बृजेंद्र सिंह 1967 में भरतपुर के सांसद बने. विजेंद्र सिंह के पुत्र राजा विश्वेंद्र सिंह ने 1989 में राजनीति में प्रवेश किया और इसी साल लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज कर सांसद बने. साल 1991 में भरतपुर राज परिवार की कृष्णेंद्र कौर दीपा भाजपा की टिकट पर सांसद बनीं. इसके बाद साल 1996 के लोकसभा चुनाव में भरतपुर की पूर्व महारानी दिव्या सिंह सांसद बनीं. साल 1998 के उपचुनाव में भरतपुर राज परिवार ने भाग नहीं लिया इसके बाद 1999 और 2004 में भरतपुर लोकसभा सीट से भरतपुर के पूर्व महाराज विश्वेंद्र सिंह ने भाजपा की टिकट पर चुनाव जीता. परिसीमन के बाद यह सीट एससी के लिए रिजर्व हो गई. वर्तमान में विश्वेंद्र सिंह कांग्रेस के टिकट पर लगातार दो बार से डीग-कुम्हेर विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं.
6. बीकानेर राजपरिवार
बीकानेर के अंतिम राजा महाराज करणी सिंह ने 1952 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनावी राजनीति में कदम रखा और बीकानेर लोकसभा सीट से करणी सिंह 1952 से 1971 तक हुए 5 चुनाव में लगातार जीत दर्ज करते रहे. उनके बाद उनकी पोती सिद्धि कुमारी वर्तमान में भाजपा से जुड़ी हैं. सिद्धी कुमारी और साल 2008 से लगातार 3 चुनाव में वह बीकानेर से विधानसभा चुनाव जीत रही हैं. बीकानेर की सीट भी परिसीमन के बाद एससी के लिए रिजर्व हो गई थी.
7. कोटा राजपरिवार
कोटा के पूर्व राज परिवार के पूर्व महाराज बृजराज सिंह साल 1962 से 1971 तक हुए 3 लोकसभा चुनाव में जीत कर संसद पहुंचे. इसके बाद वह साल 1977 और साल 1980 के लोकसभा चुनाव में हार गए. साल 2009 में बृजराज सिंह के बेटे इज्यराज सिंह ने कांग्रेस की टिकट पर कोटा से लोकसभा चुनाव लड़ा और सांसद बनें. साल 2014 में इज्यराज सिंह कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा चुनाव हार गए. वर्तमान में इज्यराज सिंह की पत्नी कल्पना देवी लाडपुरा सीट से भाजपा की विधायक हैं.
8. अलवर राज परिवार
अलवर राज परिवार के पूर्व महाराजा तेज सिंह कभी आरएसएस विचारधारा के साथ जुड़े थे. उनकी बहू स्वर्गीय महेंद्र कुमारी साल 1991 में भाजपा की टिकट पर चुनाल लड़ा और जीत दर्ज की. बाद में उन्होंने भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया हालांकि वह चुनाव नहीं जीत सकीं लेकिन उनके बेटे भंवर जितेंद्र सिंह साल 2009 में अलवर लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर सांसद बनें. लेकिन वह साल 2014 में लोकसभा का चुनाव हार गए. अब एक बार फिर भंवर जितेंद्र सिंह को कांग्रेस ने अलवर से लोकसभा का टिकट दिया है. भंवर जितेंद्र सिंह यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं और अलवर विधानसभा से विधायक भी.
9. डूंगरपुर राजपरिवार
डूंगरपुर के अंतिम राजा रहे लक्ष्मण सिंह ने राज्यसभा में एक सांसद के रूप में काम किया. पूर्व महाराजा लक्ष्मण सिंह 1977 और 1985 में चित्तौड़गढ़ से विधायक भी बने और साल 1977 से 1989 तक राजस्थान विधानसभा में अध्यक्ष भी रहे. इसके बाद डूंगरपुर परिवार राजनीति से दूर रहा और उनके पोते डूंगरपुर के युवराज हर्षवर्धन सिंह वर्तमान में साल 2016 से भाजपा के राज्यसभा सदस्य हैं.