जयपुर. प्रदेश के 13 हजार सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में अनिवार्य विषय हिन्दी और इंग्लिश के 26 हजार पद लंबे समय से रिक्त हैं. नतीजन जिन छात्रों को पढ़ाने की जिम्मेदारी व्याख्याताओं की थी, उन्हें वरिष्ठ अध्यापक पढ़ा रहे हैं. ये वो स्कूल हैं, जिन्हें समय-समय पर क्रमोन्नत किया गया था. लेकिन सरकार ने अब तक इन स्कूलों को डीपीसी के जरिए नहीं भरा है. ऐसे में राजस्थान वरिष्ठ शिक्षक संघ ने हिन्दी और अंग्रेजी के व्याख्याता पदों का सृजन कर 2021-22, 2022-23 और 2023-24 की डीपीसी करवाने की मांग को लेकर राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
वहीं, प्रदेश के वरिष्ठ शिक्षक आगामी 17 अप्रैल को राज्य सरकार के खिलाफ जयपुर कूच करेंगे. राजस्थान वरिष्ठ शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष भैरू राम चौधरी ने बताया कि 2013 के बाद क्रमोन्नत उच्च माध्यमिक विद्यालयों में अनिवार्य विषय हिन्दी और अंग्रेजी के व्याख्याता पदों का सृजन नहीं किया गया है. जबकि विद्यालय क्रमोन्नति के तीसरे वर्ष से अनिवार्य विषयों पर व्याख्याता पद सृजित करने का नियम बना हुआ है. इसका खामियाजा प्रदेश के हजारों छात्रों को भुगतना पड़ रहा है.
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इसके साथ ही उन्होंने बताया कि नए सेवा नियम लागू होने से पहले डिग्री प्राप्त कर चुके वरिष्ठ शिक्षकों की डीपीसी पिछले तीन सत्रों से बकाया चल रही है. ऐसे में ये डीपीसी अविलंब पूरी होनी चाहिए. साथ ही क्रमोन्नत विद्यालयों में स्टाफिंग पैटर्न की समीक्षा, अनिवार्य विषयों के व्याख्याता पदों के सृजन और वरिष्ठ अध्यापकों के अंतर मंडल तबादले जैसी मांग को लेकर प्रदेशभर के वरिष्ठ शिक्षक अब जयपुर में जुटेंगे. यहां शहीद स्मारक पर महाधरना देते हुए सरकार का ध्यानाकर्षण किया जाएगा और यदि इसके बावजूद भी सरकार उनकी नहीं सुनती है तो वो बड़े आंदोलन की ओर बढ़ेंगे.
इधर, वरिष्ठ शिक्षकों ने बताया कि शिक्षा विभाग में विभिन्न सवर्गों के तहत हर साल 50 फीसदी पदों को डीपीसी से भरे जाने का प्रावधान है. माध्यमिक शिक्षा विभाग में वरिष्ठ अध्यापक से व्याख्याता पदोन्नति को छोड़कर दूसरे वर्गों की डीपीसी हो चुकी है. लेकिन वरिष्ठ अध्यापकों से बकाया चल रही है. बीते वर्ष मार्च 2022 में 4000 विद्यालयों को माध्यमिक से उच्च माध्यमिक में और एक हजार स्कूलों को उच्च प्राथमिक से उच्च माध्यमिक में क्रमोन्नत किया गया था. हालांकि, एक सत्र बीत जाने के बावजूद भी इनमें व्याख्याताओं के पदों की अभी तक वित्तीय स्वीकृति जारी नहीं हुई है. वहीं, 2015 में लागू स्टाफिंग पैटर्न की 8 साल बाद भी समीक्षा नहीं की गई. जिससे शिक्षकों में खासा रोष है.