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जयपुर में गुमनाम होती जा रही हवामहल की चमक...देखिए खास रिपोर्ट

जयपुर में स्थित हवामहल राजस्थान में एक अलग पहचान रखता है. लेकिन प्रशासन की अनदेखी के चलते यह अपनी पहचना खोता जा रहा है.

हवामहल और आमजन की राय
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Published : Apr 18, 2019, 11:17 PM IST

जयपुर. जयपुर की आन-बान-शान हवामहल की पहचान न केवल राजस्थान बल्कि विश्वभर में प्रसिद्ध है. इस हवामहल को देखने के लिए दूरदराज से देसी-विदेशी सैलानी आते हैं और यहां की संस्कृति से रूबरू होते हैं. लेकिन आज वही हवामहल अपनी रंगत खोता जा रहा है. विश्व धरोहर दिवस के मौके पर देखिए ये खास रिपोर्ट...

जयपुर में गुमनाम होती जा रही हवामहल की चमक

हवा महल का निर्माण साल 1799 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने करवाया था. महाराजा भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे और उन्होंने यह महल अपने इष्टदेव के मस्तक को सुभोभित करने वाले मुकुट के समान बनवाया था. पांच मंजिला हवामहल में 365 खिड़कियां हैं और प्रत्येक मंजिला को अलग-अलग नाम दिया गया है. वहीं हवामहल के मुख्य द्वार को हिरमिची रंग से रंगा गया था. लेकिन आज हवामहल का वह हिरमिची रंग अपनी पहचान खो चुका है.

दरअसल, हम यह बात इसलिए दावा करके बोल रहे हैं. क्योंकि हवामहल के अंदर दो ताले में बंद भंडारे में गुलाबी रंग का नमूना यानि कि जयपुर पिंक खमीरा टाइल रखी हुई है जो धूल चाट रही है, जिसके आधार पर हवामहल के रंग को रंगा गया था. यह रंग की अनुमति 1973 में विभाग को मिली थी. लेकिन धूल, आंधी, तूफान, बारिश और पक्षियों के जमावड़े ने उसकी रंगत बदल दी है. विभाग ये दावा जरूर करता है कि हवामहल को समय-समय पर रंग किया जाता है लेकिन हकीकत कुछ ओर ही है.

हवामहल बाजार में मौजूद बरसों पुराने व्यापारियों का कहना है कि हवामहल का रंग लगातार बदलता जा रहा है. पक्षियों का जमावड़ा, धूल मिट्टी, बारिश की वजह से हवामहल की पहचान बदलती जा रही. बल्कि सरकार को तो इस पर ध्यान देना चाहिए. क्योंकि यहां पर रोजाना हजारों की संख्या में पावणे हवामहल को निहारने आते हैं. हवामहल में पहले विभाग द्वारा 5 सालों में रंग करवाया जाता था. लेकिन पिछले 10 से 15 सालों में रंग ही नहीं हुआ है.

इतिहासकार आनंद शर्मा का कहना है की हवामहल की रंगत भ्रस्टाचार में उलझ कर रह गयी है. हवामहल पर कई बार रंग भी हुए. लेकिन सस्ते रंग और पैसों की लूट की वजह से हवामहल गुमनाम होता जा रहा है. हवामहल का रंग बरसात होते ही रंग हवा हो जाता है. हवामहल का समय रहते सरकार ने कोई समाधान नहीं निकाला. तो एक ओर भारत की शान कहे जाने वाले हवामहल को खो देंगे.

जयपुर. जयपुर की आन-बान-शान हवामहल की पहचान न केवल राजस्थान बल्कि विश्वभर में प्रसिद्ध है. इस हवामहल को देखने के लिए दूरदराज से देसी-विदेशी सैलानी आते हैं और यहां की संस्कृति से रूबरू होते हैं. लेकिन आज वही हवामहल अपनी रंगत खोता जा रहा है. विश्व धरोहर दिवस के मौके पर देखिए ये खास रिपोर्ट...

जयपुर में गुमनाम होती जा रही हवामहल की चमक

हवा महल का निर्माण साल 1799 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने करवाया था. महाराजा भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे और उन्होंने यह महल अपने इष्टदेव के मस्तक को सुभोभित करने वाले मुकुट के समान बनवाया था. पांच मंजिला हवामहल में 365 खिड़कियां हैं और प्रत्येक मंजिला को अलग-अलग नाम दिया गया है. वहीं हवामहल के मुख्य द्वार को हिरमिची रंग से रंगा गया था. लेकिन आज हवामहल का वह हिरमिची रंग अपनी पहचान खो चुका है.

दरअसल, हम यह बात इसलिए दावा करके बोल रहे हैं. क्योंकि हवामहल के अंदर दो ताले में बंद भंडारे में गुलाबी रंग का नमूना यानि कि जयपुर पिंक खमीरा टाइल रखी हुई है जो धूल चाट रही है, जिसके आधार पर हवामहल के रंग को रंगा गया था. यह रंग की अनुमति 1973 में विभाग को मिली थी. लेकिन धूल, आंधी, तूफान, बारिश और पक्षियों के जमावड़े ने उसकी रंगत बदल दी है. विभाग ये दावा जरूर करता है कि हवामहल को समय-समय पर रंग किया जाता है लेकिन हकीकत कुछ ओर ही है.

हवामहल बाजार में मौजूद बरसों पुराने व्यापारियों का कहना है कि हवामहल का रंग लगातार बदलता जा रहा है. पक्षियों का जमावड़ा, धूल मिट्टी, बारिश की वजह से हवामहल की पहचान बदलती जा रही. बल्कि सरकार को तो इस पर ध्यान देना चाहिए. क्योंकि यहां पर रोजाना हजारों की संख्या में पावणे हवामहल को निहारने आते हैं. हवामहल में पहले विभाग द्वारा 5 सालों में रंग करवाया जाता था. लेकिन पिछले 10 से 15 सालों में रंग ही नहीं हुआ है.

इतिहासकार आनंद शर्मा का कहना है की हवामहल की रंगत भ्रस्टाचार में उलझ कर रह गयी है. हवामहल पर कई बार रंग भी हुए. लेकिन सस्ते रंग और पैसों की लूट की वजह से हवामहल गुमनाम होता जा रहा है. हवामहल का रंग बरसात होते ही रंग हवा हो जाता है. हवामहल का समय रहते सरकार ने कोई समाधान नहीं निकाला. तो एक ओर भारत की शान कहे जाने वाले हवामहल को खो देंगे.

Intro:जयपुर- जयपुर की आन बान शान हवामहल की पहचान ना केवल राजस्थान बल्कि विश्वभर में प्रसिद्ध है। हवामहल को देखने के लिए दूरदराज से देशी विदेशी सैलानी आते है और हमारी संस्कृति से रूबरू होते है। लेकिन आज वही हवामहल अपनी रंगत खोता जा रहा है। विश्व धरोहर दिवस के मौके पर देखिए ये खास रिपोर्ट।




Body:विओ- ये हवा महल है, इसका निर्माण वर्ष 1799 में महाराजा सवाई प्रतापसिंह ने किया था। महाराजा भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे और उन्होंने यह महल अपने इष्टदेव के मस्तक को सुभोभित करने वाले मुकुट के समान बनवाया था। पांच मंजिला हवामहल में 365 खिड़कियां है और प्रत्येक मंजिला को अलग अलग नाम दिया गया है। वही हवामहल के मुख्य द्वार को हिरमिची रंग से रंगा गया था लेकिन आज हवामहल का वह हिरमिची रंग अपनी पहचान खो चुका है।

दरअसल, हम यह बात इसलिए दावा करके बोल रहे है क्योंकि हवामहल के अंदर दो ताले में बंद भंडारे में गुलाबी रंग का नमूना यानी कि जयपुर पिंक खमीरा टाइल रखी हुई है जो धूल चाट रही है जिसके आधार पर हवामहल के रंग को रंगा गया था। यह रंग की अनुमति 1973 में विभाग को मिली थी। लेकिन धूल, आंधी, तूफान, बारिश और पक्षियों के जमावड़े ने उसकी रंगत बदल दी है। विभाग ये दावा जरूर करता है कि हवामहल को समय समय पर रंग किया जाता है लेकिन हकीकत कुछ ओर ही है।

हवामहल बाजार में मौजूद बरसो पुराने व्यापारियों का कहना है कि हवामहल का रंग लगातार बदलता जा रहा है। पक्षियों का जमावड़ा, धूल मिट्टी, बारिश की वजह से हवामहल की पहचान बदलती जा रही। बल्कि सरकार को तो इस पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि यहाँ पर रोजाना हजारों की संख्या में पावणे हवामहल को निहारने आते है। हवामहल में पहले विभाग द्वारा 5 सालों में रंग करवाया जाता था लेकिन पिछले 10 से 15 सालों में रंग ही नहीं हुआ है।

बरसात होते ही रंग हो जाता है हवा
इतिहासकार आनंद शर्मा का कहना है की हवामहल की रंगत भ्रस्टाचार में उलझ कर रह गयी है। हवामहल पर कई बार रंग भी हुए लेकिन सस्ते रंग और पैसों की लूट की वजह से हवामहल गुमनाम होता जा रहा है। हवामहल का रंग बरसात होते ही रंग हवा हो जाता है।




Conclusion:हवामहल का समय रहते सरकार ने कोई समाधान नहीं निकाला तो हम एक ओर भारत की शान कहे जाने वाले हवामहल को खो देंगे।

ईटीवी भारत के लिए महिमा मंत्री की रिपोर्ट

बाईट- व्यापारियों की बाईट
बाईट- आनंद शर्मा, इतिहासकार
बाईट- कृष्ण कांता शर्मा, डिप्टी डायरेक्टर, पुरातत्व विभाग
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