जयपुर. विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी को मजबूत करने के लिए भाजपा ने अब उन नेताओं की घर वापसी करानी शुरू कर दी है, जो पिछले विधानसभा चुनाव में किन्हीं कारणों से पार्टी (Rebels return to BJP before elections) से नाराज होकर चले गए थे. इसी कड़ी में अब आज पूर्व मंत्री राजकुमार रिणवा की (Rajkumar Rinwa will join BJP) घर वापसी होगी. रिणवा के आने से बीजेपी को सरदारशहर के उप चुनाव में फायदा मिलेगा. हालांकि अभी भी देवी सिंह भाटी सहित कई पूर्व विधायक और पार्टी के नेता हैं जिनकी वापसी के लिए कमेटी ने हरी झंडी नहीं दी है.
रिणवां की घर वापसी के सियासी मायने
दरअसल पूर्व मंत्री राजकुमार रिणवा आज चूरू में फिर से बीजेपी का दामन थामने जा रहे हैं. रिणवा की 4 साल बाद भाजपा में फिर से वापसी हो रही है. रिणवा की वापसी ऐसे वक्त में हो रही जब बीजेपी सरदारशहर के उपचुनाव के लिए चुनावी मैदान में है. रिणवा की घर वापसी से बीजेपी को सरदारशहर उप चुनाव में फायदा होगा, क्योंकि पुनर्गठन में रतनगढ़ से कई ग्राम पंचायतों को सरदारशहर विधानसभा में शामिल कर लिया गया था. रतनगढ़ विधानसभा क्षेत्र में राजकुमार रिणवा की अच्छी पकड़ मानी जाती है.
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उनकी मौजूदगी में होगी घर वापसी
राजकुमार रिणवा 2018 विधानसभा चुनाव में पार्टी से बगावत के चलते निष्कासित किए गए थे. रिणवा पिछले चुनाव में रतनगढ़ से टिकट नहीं मिलने पर बागी हुए थे. सूत्रों की माने तो आज यानी शनिवार को बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया, उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, केन्द्रीय मंत्री और घर वापसी कमेटी के संयोजक अर्जुन मेघवाल, सांसद राहुल कस्वां की मौजूदगी में रिणवा फिर से बीजेपी ज्वाइन करेंगे.
घर वापसी की बनी थी कमेटी
प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में पार्टी से बागी हुए नेताओं की घर वापसी को लेकर कमेटी बनाई थी. कमेटी केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और पूर्व मंत्री और वर्तमान में वरिष्ठ विधायक वासुदेव देवनानी को शामिल किया गया है. भाजपा में आने की इच्छा जाहिर करने वाले नेताओं पर यह कमेटी पार्टी के पक्ष में गुणा भाग, फायदा नुकसान और स्थानीय समीकरणों के आधार पर भाजपा ज्वाइन करने वाले नेताओं का फैसला लेने की जिम्मेदारी दी गई थी. घर वापसी वाले नेताओं को कमेटी के समक्ष अपना आवेदन करना होगा. कमेटी बनने के बाद पहली ज्वाइनिंग पूर्व मंत्री राजकुमार रिणवा की होने जा रही है. रिणवा सरदार शहर उपचुनाव में पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं. ब्राह्मण वोट बैंक पर भी रिणवा की पकड़ मजबूत है.
भाटी की वापसी में मेघवाल रोड़ा
ऐसा नही है कि बागी राजकुमार रिणवा ही पार्टी में शामिल होना चाह रहे हैं. हाल ही में भारतीय जनता पार्टी में बीकानेर से कद्दावर नेता रहे देवी सिंह भाटी ने भी पार्टी में वापसी की घोषणा की थी. इसके अलावा पूर्व सांसद सुभाष महरिया, वसुंधरा सरकार में मंत्री रहे सुरेंद्र गोयल और पूर्व विधायक विजय बंसल की भी भाजपा में वापसी की अटकलें लगाई जा रही हैं. हालांकि अभी तक भाजपा और इन नेताओं की ओर से पार्टी ज्वाइन करने की मंशा को लेकर स्थिति साफ नहीं है. देवी सिंह भाटी ने ही पिछले दिनों 8 अक्टूबर को बीकानेर में ही पार्टी ज्वाइन करने की सामरिक रूप से घोषणा की थी, लेकिन देवी सिंह भाटी की भाजपा में वापसी के बीच सबसे बड़े रोड़ा कमेटी के संयोजक और केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल बने हैं. मेघवाल ज्वाइनिंग कमेटी में है. ऐसे में साफ है कि बिना मेघवाल और देवनानी की सहमति के उनकी वापसी संभव नहीं है. जबकि अर्जुन राम मेघवाल और देवी सिंह भाटी की आदावत किसी से छिपी नहीं है.
वसुंधरा के करीबी भाटी
मेघवाल की कट्टर विरोधी माने जाने वाले भाटी का भाजपा में आना फिलहाल आसान नहीं होगा. पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के खास और कट्टर समर्थक में देवी सिंह भाटी का नाम आता है. हाल ही में उनकी बीकानेर यात्रा की सभी तैयारियां उन्होंने ही की थी. ऐसे में बताया जा रहा है कि वसुंधरा राजे उनकी भाजपा में वापसी के लिए हर सम्भव प्रयास करेंगी. हालांकि वह पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बीकानेर संभाग की यात्रा के दौरान ही भाजपा ज्वाइन करना चाहते थे, लेकिन भाजपा संगठन की ओर से उन्हें हरी झंडी नहीं मिली थी. इसका कारण यह भी बताया जा रहा है कि पार्टी में वापसी के लिए भाटी ने कोई संवाद नहीं किया था.
भाटी और मेघवाल में अदावत क्यों?
सूत्रों की मानें तो केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल बीकानेर संभाग में उनके धुर विरोधी गुट के माने जाते हैं. वह भी उनका पार्टी में वापसी का विरोध कर रहे हैं. अब क्योंकि भाजपा की प्रदेश स्तरीय जॉइनिंग समिति में देवनानी के साथ मेघवाल को जिम्मा दिया गया है. दरअसल भाजपा केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के पिछले 2019 के चुनाव में बीकानेर से लोकसभा का प्रत्याशी बनाए जाने पर देवी सिंह भाटी ने उनका पुरजोर विरोध करते हुए भाजपा से बगावत की थी और पार्टी से अलग होकर मेघवाल को हराने का बीड़ा उठाया था. इसके बाद भाजपा ने भाटी को भाजपा से निष्कासित कर दिया था. हालांकि वह मेघवाल को चुनाव में पटखनी देने में असफल रहे थे, लेकिन दोनों के बीच स्थानीय स्तर पर वर्चस्व की लड़ाई अभी भी जारी है.