जयपुर. साहित्य के महाकुंभ के चौथे दिन विचारों के आदान-प्रदान के बीच पं. हरिप्रसाद चौरसिया ने अपने जिन्दगी के पन्ने भी खोले. एक सत्र में विश्वभर के म्यूजियम के संरक्षण के लिए सरकारी मदद की दरकार बताई है. जेएलएफ में लेखिका चित्रा बनर्जी ने आजादी की कीमत समझाते हुए इसे याद रखने की बात कही.
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के चौथे दिन फ्रंट लॉन में अपनी बुक 'इंडिपेंडेंस' पर चर्चा करते हुए चित्रा बनर्जी ने कहा कि उन्हें लगता है कि इस पर लिखना जरूरी है. यह याद रखना जरुरी है कि उस समय लोगों ने क्या कुछ फील किया था, जिसे शायद हम भूलते जा रहे हैं. हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि इस इंडिपेंडेंस के लिए कितनी कुर्बानियां दी गई हैं. उन्होंने बताया कि ये किताब दो स्तर पर लिखी गई है. एक उस समय देश में क्या चल रहा था औऱ दूसरा आमजन क्या कुछ महसूस कर रहे थे.
इस किताब में तीन बहनों की कहानी है. इसमें उनके सपनों के बारे में बताया गया है. चित्रा ने कहा कि देश आजाद हो गया लेकिन महिलाओं को आजादी नहीं मिली है. जब चित्रा से पूछा गया कि आपकी सभी किताबें विमन ओरिएंटेड होती हैं, तो उनका कहना था कि पार्टीशन के समय जो कुछ हुआ वो सब जानते हैं, लेकिन महिलाओं ने क्या कुछ अनुभव किया इस बारे में बात नहीं होती. इसलिए उन्होंने ये बुक लिखने के बारे में सोचा.
उनका मानना है कि हर औरत अपने आप में एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी होती है. वो अपनी जिंदगी में प्यार, रिश्ते अपनापन सब कुछ चाहती है, लेकिन सभी को ये नहीं मिलता. उसकी आजादी पर रोक लगाई जाती है. चित्रा ने कहा कि अगर हमें राष्ट्र निर्माण की कहानी ही याद नहीं रहेगी तो हम आज़ादी के माएने कैसे समझ पाएंगे. ये दुखद है कि अब हम इस बारे में नहीं पढ़ते.
ब्रेथ ऑफ गोल्ड सेशन में पं. हरिप्रसाद चौरसिया
जेएलएफ में ब्रेथ ऑफ गोल्ड सेशन में पं. हरिप्रसाद चौरसिया ने अपने जिन्दगी के पन्ने खोले. जेएलएफ प्रोड्यूसर संजॉय रॉय के सवाल पर उन्होंने कहा कि पिताजी पहलवान थे और उनकी इच्छा थी कि वो भी पहलवान बन जाएं लेकिन ये कवेल नेचर से होता है. जो जिस पेशे में होता वो वही चाहता है, लेकिन ये बहुत मुश्किल होता है. बताया कि उन्हें पढ़ाई लिखाई भी अच्छी नहीं लगती थी. 2 प्लस 2 लेकर क्या फायदा. बिजनेस मैन थोड़ी बनना था. स स ग ग रे रे... समझ लिया बहुत हो गया. उन पर जब किताब लिखी गई तब उनके घर में लोग उन्हें प्यार करने लगे. पहले वे सोचते थे ये तो टेलीविजन, मोबाइल भी नहीं खरीद सकता. बांसुरी से क्या होगा?
उन्होंने पं. शिव कुमार शर्मा के साथ अपने रिश्ते को साझा करते हुए बताया कि उनके शरीर का एक हिस्सा उनसे छूट गया है और अब सिर्फ दूसरा हिस्सा ही बचा है. शिव कुमार का जाना उनके जीवन का सबसे खराब पल है. उन्होंने कहा कि वह हमेशा स्टूडेंट बनकर रहना चाहता है. इससे हमेशा नया सीखने को मिलता है, जब भी उनके सामने कोई नया और अच्छा बजाता है तो उससे भी सीखता हूं. म्यूजिक सीखना एक तपस्या की तरह है और वो ये तपस्या हमेशा करते रहना चाहते हैं.
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उन्होंने कहा कि अक्सर लोगों को ये चिंता होती है कि वाद्य यंत्र बहुत महंगे होते हैं. बच्चे महंगे वाद्य खरीद नहीं पाते हैं लेकिन बांसुरी जैसा वाद्य न तो कभी था, ना है और ना होगा. बांस का एक ऐसा टुकड़ा जो मुफ्त में मिल जाता है जिसमें न तो चमड़ा है, ना तार और ना ही उसे ट्यून करने की आवश्यकता है. यहां तक की एयरपोर्ट पर सिक्योरिटी चेक में कई वाद्यों को खोल दिया जाता है, लेकिन बांसुरी तो गोल और आर-पार दिखने वाली होती है. उसे तो कोई चेक भी नहीं करता है. बस वहां के अधिकारी बांसुरी सुनाने की जिद जरूर कर लेते हैं और वो उन्हें भी सुनाकर आ जाते हैं.
बॉलीवुड में काम करना बताया खुशनसीबी
चौरसिया ने बॉलीवुड में काम करने को लेकर कहा कि वह खुशनसीब हैं कि अच्छे म्यूजिक डायरेक्टर, प्रोड्यूसर्स के साथ काम करने को मिला. उनके साथ एक फिल्म में काम करने वाली, मेरा गाना गाने वाली सिंगर यहां हमारे बीच बैठी हैं, जो आपके जयपुर से ही हैं. उनका नाम ईला अरुण है. इस पर ईला खड़ी हुईं और कहा कि हरि भाई के साथ हमारे पारिवारिक रिश्ते हैं और वो खुशनसीब हैं कि यशराज बैनर की फिल्म लम्हे में हरि भाई के संगीत पर गाने का मौका मिला.
चारबाग में हुए 'दी म्यूजियम दैट मेक अस' सत्र में हर समय म्यूजियम को सलामत रखने के लिए सरकारी मदद की दरकार पर एक मत नजर आए. ट्रिस्ट्राम हंट, एंड्रयू लोगन, रिचर्ड ब्लर्टन और जेमी एंड्रयूज ने जेएलएफ के मंच से एक सुर में कहा कि म्यूजियम एक ऐसा संस्थान है जहां मानवीय समाज के महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत का संग्रह, संरक्षण और रखरखाव किया जाता है ताकि भावी पीढ़ी इन विरासतों से परिचित हो सके. लेकिन अब ये म्यूजियम सरकारी तंत्र की बेरूखी से बदहाली तक पहुंच चुके हैं. उन्होंने कहा कि वर्तमान में दुनिया में जितने भी म्यूजियम हैं उन्हें फंड की जरूरत है जो सरकार उपलब्ध करवाए.
ट्रिस्ट्राम हंट ने कहा कि म्यूजियम में हमारे पूर्वजों की अनमोल यादों को संजोया गया है. संग्रहालय में ऐसी कई चीजें होती हैं जो पहले सुरक्षित थीं और अब रखरखाव के अभाव में खराब हो रही हैं. संग्रहालयों में रखी गई वस्तुएं प्रकृति और सांस्कृतिक धरोहरों को प्रदर्शित करती हैं. आजकल गूगल आर्ट आ गया है. लोग ऑनलाइन ही जानकारियां जुटा रहे हैं, लेकिन उनका मानना है कि जब तक आप किसी को प्रत्यक्ष नहीं देखते, तब तक उस जानकारी को अनुभव नहीं कर सकते. राजनीति और बदलते क्लाइमेट ने दुनियाभर के म्यूजियम को नुकसान पहुंचाया है. इसमें सरकारी मदद के साथ-साथ कई अन्य विकल्पों पर भी काम करने की जरूरत है. म्यूजियम में मेंबरशिप का विकल्प एक बेहतर उपाय हो सकता है.