जयपुर. क्या बीजेपी भी कांग्रेस की तरह दो गुटों में बंटी हुई है ? क्या बीजेपी में भी संगठन और वसुंघरा खेमा अलग-अलग काम कर रहा है ? क्या पार्टी संगठन राजे को नहीं मानती लीडर ? यह सवाल इसलिए खड़े हो रहे हैं, क्योंकि इन दिनों बीजेपी में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है. बीजेपी भले ही लगातार कांग्रेस के ऊपर टुकड़ों में बंटे होने का आरोप लगाती रही हो, लेकिन जिस तरह से बीजेपी में समानांतर अलग-अलग कार्य हो रहे हैं, उससे यह साफ दिख रहा है कि अंदरखाने ही सही, लेकिन बीजेपी में भी गुटबाजी चरम पर है.
एक तरफ पार्टी संगठन अपनी सक्रियता दिखा रहा है तो वहीं दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा का खेमा भी (Factionalism Dominates in BJP) समानांतर अपनी मौजूदगी दिखा रहा है. मंगलवार को विधानसभा अध्यक्ष से मुलाकात करने गए विपक्षी विधायकों में वसुंधरा राजे को शामिल नहीं करना एक बड़ी चर्चा का विषय बना हुआ है, जबकि वसुंधरा राजे सीपी जोशी के सामने वाले बंगले में मौजूद थीं.
जोशी से मुलाकात में भी दूरी : राजे की पार्टी से दूरी पर सवाल इसलिए खड़े हो रहे हैं, क्योंकि हाल ही में पार्टी स्तर पर हुए किसी भी तरह के कार्यक्रम में वसुंधरा राजे शामिल नहीं हुईं. हालांकि, अंदरखाने दबी आवाज में पार्टी के लोग ही यह कहते हैं कि उन्हें आमंत्रित नहीं कर रहे हैं, क्योंकि अब एक धड़ा ऐसा खड़ा हो गया है जो वसुंधरा राजे की प्रदेश में लीडरशिप को स्वीकार नहीं करना चाहता. हाल ही में प्रदेश पार्टी स्तर पर हुए विरोध-प्रदर्शन में भी वसुंधरा राजे शामिल नहीं हुईं.
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वहीं, मंगलवार को विधानसभा अध्यक्ष से मुलाकात के लिए गए विपक्ष के विधायकों में वसुंधरा राजे का नाम नहीं था, जबकि यह ऐसा मौका था जब वसुंधरा ना केवल जयपुर में थीं, बल्कि जिस बंगले में विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी से मुलाकात की गई, उसके ठीक सामने वाले बंगले में ही राजे रहती हैं. लेकिन जो 12 विधायकों का डेलिगेशन (Vasundhara Politics in Rajasthan) स्पीकर सीपी जोशी से मिलने गया था, उसमें ना ही वसुंधरा राजे का नाम था और ना ही उनका कोई समर्थक शामिल किया गया.
पार्टी की राजे से दूरी क्यों ? : राजस्थान में अलगे साल चुनाव होने हैं. दोनों ही प्रमुख दल बीजेपी और कांग्रेस सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रहे हैं. कांग्रेस इस बार दो दशक के मिथक तोड़ते हुए सत्ता वापसी करना चाह रही है तो बीजेपी खोई हुई सत्ता को फिर से हासिल करने की रणनीति में जुटी हुई है. लेकिन दोनों दलों में सत्ता की लालसा के साथ एक बात और है जो कॉमन है और वो है अंदरूनी कलह. बस अंतर है कि कांग्रेस का ये कलह खुले रूप से पिछले दिनों सामने आ चुकी है, जबकि बीजेपी में चुकी आलाकमान सख्त है तो खुले तौर पर नहीं लेकिन अंदरखाने गुटबाजी खूब चल रही है.
बात बीजेपी करें तो इस समय भारतीय जनता पार्टी दो मोर्चों पर लड़ रही है. पहले मोर्चे पर वह विपक्ष के रूप में गहलोत सरकार से लड़ रही है और दूसरे मोर्चे पर अपनी अंदरूनी कलह से. इस वक्त राजस्थान में वसुंधरा राजे पार्टी की किसी भी मीटिंग में रेगुलर भाग नहीं ले रही हैं. राजे इन दिनों देव दर्शन यात्रा के बहाने अपना (Vasundhara Raje Power Politics) शक्ति प्रदर्शन भी कर रही हैं. खास बात यह कि इस यात्रा में सिर्फ और सिर्फ वही चहरे शामिल हो रहे हैं जो वसुंधरा राजे के समर्थक माने जाते हैं. वहीं दूसरी ओर प्रदेश स्तरीय पार्टी भी उन्हें कोई खास तवज्जो नहीं दे रही है. शायद यही वजह है कि पार्टी स्तर के होने वाले कार्यक्रमों में राजे शामिल नहीं हो रही हैं.
पोस्टर से दिखा मनमुटाव : वैसे तो प्रदेश बीजेपी में अध्यक्ष के चुनाव के साथ ही दो धड़ों में बीजेपी बंट गई थी, लेकिन ये समय तब आया जब पिछले साल जयपुर स्थित बीजेपी के मुख्यालय में जो नए पोस्टर लगाए गए, उन पोस्टरों से वसुंधरा राजे की तस्वीर को हटा दिया गया. जबकि इस समय भी वसुंधरा राजे भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं और राजस्थान में बीजेपी का एक बड़ा चेहरा हैं. साल 2014 के बाद बीजेपी पूरी तरह से बदल गई. उसमें जो एक नया गुट बनकर सामने आया, कथित रूप से इसे केंद्रीय नेतृत्व का गुट कहा जाता है. इस गुट का टकराव सीधे-सीधे लालकृष्ण आडवाणी के करीबियों के साथ हो रहा है और वसुंधरा राजे इसी गुट का हिस्सा मानी जाती हैं.
केंद्रीय नेतृत्व तो नाखुश नहीं ? : दरअसल, 2018 के विधानसभा चुनाव में वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी राजस्थान से चुनाव हार गई और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन गई. हार के कारणों पर विश्लेषण कर केंद्रीय नेतृत्व ने राजस्थान बीजेपी में बदलाव करते हुए मदन लाल सैनी की जगह 2019 में सतीश पूनिया को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. कहा जाता है कि सतीश पूनिया पार्टी में वसुंधरा के प्रतिद्वंदी के रूप में देखे जाते हैं. यही वजह थी कि सतीश पूनिया को अध्यक्ष बनाए जाने से वसुंधरा राजे नाखुश थीं. एक ओर जहां वसुंधरा राजे पार्टी की किसी मीटिंग में या आयोजन में हिस्सा नहीं ले रही हैं, वहीं दूसरी ओर राजस्थान बीजेपी का एक धड़ा सामने ना सही, लेकिन दबी जुबान में वसुंधरा राजे पर आरोप लगा रहे हैं कि वह अपनी एक समानांतर व्यवस्था राजस्थान में चलाने की कोशिश कर रही हैं. इसकी वजह ये भी है कि वसुंधरा राजे के समर्थकों ने 'वसुंधरा राजे समर्थन मंच राजस्थान' नाम से एक संगठन शुरू किया हुआ है. वहीं, वसुंधरा राजे प्रदेश में देव दर्शन के नाम पर हर जिले में बड़ी यात्रा निकाल अपना जनसमर्थन दिखा रही हैं.
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खेमे में बंटी कांग्रेस : आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए (Rajasthan Mission 2023) पार्टी का एक धड़ा जहां प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष सतीश पूनिया, नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया और उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ के साथ खड़ा नजर आता है तो वहीं दूसरा खेमा ऐसा भी है जो पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे के साथ खड़ा रहता है. बड़ी बात तो यह है कि प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष सतीश पूनिया की ओर से अलग-अलग जिलों के दौरे किए जा रहे हैं तो वसुंधरा राजे कैंप से जुड़े लोग पार्टी कार्यक्रमों के इतर अपनी अलग यात्राएं निकाल रहे हैं. पार्टी में अंदरखाने गुटबाजी हावी है. इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पार्टी के अधिकांश कार्यक्रमों में वसुंधरा राजे गुट से जुड़े नेता नजर नहीं आते हैं. हालांकि, पिछले दिनों इसकी शिकायतें भी लगातार पार्टी आलाकमान तक पहुंचीं हैं, लेकिन पार्टी आलाकमान के निर्देशों का भी नेताओं पर कोई असर नहीं है. ऐसे में पार्टी में खेमेबंदी और गुटबाजी ने पार्टी आलाकमान की भी चिंता बढ़ाई हुई है.
क्या कहते हैं जानकार ? : वरिष्ठ पत्रकार मनीष गोधा कहते हैं कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जितनी गुटबाजी कांग्रेस में है, उससे कम गुटबाजी बीजेपी में हो. फर्क इतना है कि कांग्रेस की गुटबाजी सबके सामने है, जबकि बीजेपी में गुटबाजी अंदरखाने चल रही है. हालांकि, यह गुटबाजी कई बार सामने भी आती रही है, फिर चाहे पोस्टर पॉलिटिक्स हो या फिर धार्मिक यात्राएं. बिखराव की स्थिति बीजेपी में भी है. इसकी वजह यह भी है कि हाल ही में पिछले दिनों जो बीजेपी में कार्यक्रम हुए, उसमें संगठन और वसुंधरा राजे समर्थक अलग-अलग दिखाई दिए.
मनीष गोधा ने कहा कि जब संगठन के प्रदेश अध्यक्ष के स्तर पर कार्यक्रम होता है तो उसमें वसुंधरा राजे के समर्थक मौजूद नहीं होते और जब वसुंधरा राजे कोई यात्रा या कार्यक्रम करती हैं तो उसमें संगठन और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष से जुड़े हुए लोग नजर नहीं आते. गोधा ने कहा कि कांग्रेस और बीजेपी के बिखराव में अंतर इतना है कि कांग्रेस का आलाकमान कमजोर है, जिसकी वजह से उनकी जो आपसी टकराव है, वह सबके सामने आ जाता है. जबकि बीजेपी में आलाकमान मजबूत है, इसलिए अंदरखाने गुटबाजी चल रही है, सार्वजनिक नहीं होती है. उन्होंने कहा कि आने वाले चुनाव में भी बीजेपी में जो गुटबाजी और भिखराव है, उसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है.