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युवाओं से पूछें ये 9 सवाल, जवाब बचा सकते हैं किसी की जान- शिव गौतम - prevention of suicide cases of students

इन 9 सवालों को पूछ आप मानसिक रूप अवसादग्रस्त बच्चों की जान बचा (Suicide cases increased in Kota) सकते हैं. खासकर उन बच्चों की, जो वर्तमान में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और किसी कारणवश सफल नहीं हो पा रहे हैं...

Suicide cases of students increased in Rajasthan
इन 9 सवालों को पूछे जाने से कम होगी खुदकुशी
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Published : Dec 16, 2022, 3:51 PM IST

इन 9 सवालों को पूछे जाने से कम होगी खुदकुशी

जयपुर. इस हफ्ते राजस्थान के कोटा में निजी कोचिंग संस्थानों (Kota Private Coaching Institute) में पढ़ने वाले तीन किशोरों ने दो अलग-अलग घटनाओं में खुदकुशी कर ली. उसी दिन भरतपुर में भी एक छात्र ने आत्महत्या की थी तो प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्र ने डूंगरपुर में मौत को गले लगा लिया. इन घटनाओं ने एक तरफ (Suicide cases of students increased in Rajasthan) समाज में चिंता की लकीरें खींच दी हैं तो दूसरी ओर देशभर में कोचिंग हब के नाम से विख्यात कोटा के कोचिंग उद्योग पर भी उंगलियां उठा दी है. जाहिर है कि देशभर से मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहे छात्र कोटा का रुख करते हैं. आंकड़े भी बयान करते हैं कि कामयाबी के मामले में तैयारी करने वाले छात्रों के लिए कोटा अन्य शहरों के मुकाबले काफी मुफीद रहा है. यही कारण है कि कोटा सबकी निगाहों में है और यहां के नतीजों के साथ ही यहां की हर घटना पर पूरे देश की नजर होती है.

मौजूदा वक्त में कोटा में कोचिंग कर रहे छात्रों की तादाद ढाई लाख से ऊपर है. इनमें से नीट और जेईई में सिलेक्ट होने वाले बच्चों का आंकड़ा 30 हजार के करीब होता है. हर आठवें बच्चे में से एक को कोटा की बदौलत मुश्किल समझी जाने वाली परीक्षा को पास करने का मौका मिलता है. माना जाता है कि बाकी का दबाव शेष रहे 7 बच्चों पर होता है. जिसका नतीजा किसी बुरी घटना के रूप में सामने आता है. ऐसे में कोचिंग छात्रों की मानसिक स्थिति और हालात को लेकर ईटीवी भारत ने प्रसिद्ध मनोचिकित्सक (इंडियन साइकिएट्रिस्ट सोसाइटी के (Indian Psychiatrist Society) पूर्व अध्यक्ष व इंडियन क्लिनिकल प्रेक्टिशनर्स डॉक्टर्स एसोसिएशन के चेयरमैन) डॉ. शिव गौतम से बातचीत (Psychiatrist Dr. Shiv Gautam) की. डॉ. गौतम ने इस बातचीत में 9 सवालों का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे अवसाद में रहने वाले बच्चों की पहचान कर इस तरह की घटनाओं को टाला जा सकता है.

इसे भी पढ़ें - राजस्थान हाईकोर्ट : कोचिंग संस्थानों के लिए नियामक कानून और नियमों का ड्राफ्ट तैयार

जरूर पूछे जाने चाहिए ये 9 सवाल

आमतौर पर अवसाद की स्थिति को मापने के लिए और अवसाद की गंभीरता को जानने के लिए एक PHQ-9 (Patient Health Questionnaire ) नाम से सवालों की फेहरिस्त है. जिसे पेशेंट हेल्थ कोश्यनियर के नाम से भी जाना जाता है . इन सवालों सबसे पहले यह पूछा जाता है...

1. क्या आप जो काम कर रहे हैं, उसमें आपकी रुचि है और आपको खुशी का अनुभव होता है?

2. क्या आप खुद को नाउम्मीदी और हताशा से घिरा हुआ महसूस करते हैं?

3. क्या आपको अत्यधिक नींद आती है अथवा आपको सोने में परेशानी का अनुभव होता है?

4. क्या आप हमेशा खुद को थका हुआ और ऊर्जा विहीन महसूस करते हैं?

5. क्या आपको सामान्य से ज्यादा भूख लगती है अथवा भूख लगना बंद हो चुकी है?

6. क्या असफल रहने पर आप खुद के बारे में बुरा अनुभव करते हैं अथवा खुद को या अपने परिवार को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं?

7. किसी चीज पर ध्यान केंद्रित करने में भी क्या आपको परेशानी आती है, मसलन टीवी देखना अखबार पढ़ना या फिर किताब पढ़ना?

8. चलने के दौरान या फिर घूमते वक्त आप इतना धीरे चलते हैं कि लोगों का ध्यान आप पर चला जाए या फिर एक सामान्य गति से चलते हैं कि आपको चलते हुए लोग नोटिस करने लगे

9. इन सवालों में आखिरी और अहम सवाल यह है कि क्या आपको यह महसूस होता है कि आप मर गए होते तो अच्छा होता या फिर आप खुद को चोट पहुंचाने में सफल रहते हैं?

डॉ. शिव गौतम के मुताबिक अगर उन सभी सवालों को गंभीरता के लिहाज से एक से तीन तक की मार्किंग दी जाए और उसके नतीजे के स्वरूप में अगर 9 सवालों का जवाब 1 से 4 अंक में आता है, तो इसे सामान्य स्थिति समझा जा सकता है. 5 से 9 अंक आने पर स्थिति को हल्के अवसाद के रूप में देखा जा सकता है. 10 से 14 अंक पर मॉडरेट डिप्रेशन और 15 से 19 अंक पर इसे गंभीर अवसाद के रूप में देखा जाएगा. परंतु 20 से 27 अंक आने की स्थिति में परिणाम घातक और अत्यंत संवेदनशील होंगे. इसलिए 10 से ऊपर अंक आने की स्थिति में गौतम के अनुसार तुरंत चिकित्सक के परामर्श या फिर काउंसलर के पास जाना जरूरी होता है. यह वह परिस्थिति है, जिसमें किसी भी व्यक्ति की ओर से आत्महत्या करने की योजना को टाला जा सकता है.

मौतों का आंकड़ा: कोटा शहर मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम और इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम की कोचिंग के लिए जाना जाता है. देशभर के विभिन्न राज्यों से यहां पर स्टूडेंट कोचिंग लेने आते हैं. कोरोनाकाल की वजह से दो साल तक कोचिंग पर ब्रेक रहा. इस साल करीब ढाई लाख स्टूडेंट्स अभी कोचिंग संस्थानों में यहां पढ़ रहे हैं. एक कोचिंग संस्थान तो दावा करता है कि उसके पास डेढ़ लाख स्टूडेंट पढ़ते हैं. कोचिंग संस्थान मालिकों पर आरोप है कि मोटा पैसा कमाने के चक्कर में बिना काउंसलिंग के स्टूडेंट्स को एडमिशन दे दिया.

बड़ी संख्या में क्लास रूम में बच्चों को बैठाया जाता है. पढ़ाई के तनाव में बच्चे सुसाइड कर रहे हैं. कोटा में अगर बीते 10 सालों के आंकड़ों की बात की जाए तो साल 2012 में 11 बच्चों ने खुदकुशी की थी तो साल 2013 में 26 छात्रों ने आत्महत्या की. 2014 में 14, 2015 में 23, 2016 में 17, 2017 में 7, 2018 में 20, 2019 में आठ और कोरोना काल के 2 साल यानी 2020 और 21 में कुल मिलाकर आठ सुसाइड के मामले सामने आए थे. लेकिन जैसे ही कोचिंग संस्थानों ने पूरी क्षमता के साथ काम शुरू किया तो इसी साल 20 खुदकुशी के मामले अब तक दर्ज हो चुके हैं. यानी 10 साल में डेढ़ सौ से ज्यादा बच्चों ने मौत को गले लगा लिया.

नतीजों से कोटा पर दबाव: राजस्थान के लिए कोटा की पहचान कोचिंग हब के रूप में है. पूरे देश में परिवारों की ख्वाहिश होती है कि मेडिकल और इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए उनके बच्चे कोटा से तैयारी करें. ढाई लाख बच्चों की आबादी वाले इस शहर में जाहिर तौर पर कोचिंग छात्रों की तादाद बड़ी संख्या में है. ऐसे में बन नीट की 97 हजार सीटों में से 15 हजार बच्चों का सिलेक्शन कोटा के बैकग्राउंड पर होता है तो जेईई में 54 हजार 700 सीटों में से 14 हजार बच्चे कोटा से सेलेक्ट होते हैं. ऐसे में राज्य सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक काउंसलिंग का सिस्टम भी ज्यादा असरकारक नजर नहीं आता है.

डॉ. शिव गौतम के मुताबिक एक काउंसलर अधिकतम 20 से 30 छात्रों की काउंसलिंग कर सकता है और उन पर नजर रख सकता है. इससे अधिक संख्या होने पर हर बच्चे पर नजर रखना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में कोचिंग संस्थानों की जवाबदेही भी बनती है तो दूसरी और अभिभावकों को भी समझना चाहिए कि बच्चे क्या चाहते हैं. अभिभावकों की ख्वाहिश पूरी करने के चक्कर में ही बड़े खर्चे पर बच्चे तैयारी करने के लिए कोटा पहुंचते हैं और फिर दबाव में आ जाते हैं. कोटा में कोचिंग इंडस्ट्री दो हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा का उद्योग है. मगर अब छात्रों में बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं ने सभी को झकझोर कर रख दिया है. कोचिंग संस्थान चलाने वालों को समझ में नहीं आ रहा है कि इन घटनाओं को कैसे रोकें.

यह उपाय होने चाहिए

1. बच्चों को बाहर पढ़ने से भेजने के लिए पहले माता-पिता को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि क्या बच्चा मानसिक रूप से इसके लिए तैयार है.

2. माता-पिता का दायित्व है कि बच्चे की रुचि को समझें और उसी के मुताबिक करियर के लिए आगे की राह का चुनाव करने में मदद करें.

3. कोचिंग संस्थानों में नए छात्रों को एडमिशन दिलाने से पहले काउंसलर के जरिए उनकी मानसिक स्थिति का आकलन करना चाहिए.

4. कोचिंग में दाखिले के बाद माता पिता और छात्र का संपर्क लगातार होना चाहिए वही कोचिंग संस्थानों का काम है कि वह बच्चों की परफॉर्मेंस से जुड़ी हर जानकारी उनके माता-पिता तक पहुंचाए.

5. साथी छात्रों के जरिए भी फीडबैक लेने का काम होते रहना चाहिए.

6. किसी छात्र के साथ ऐसा बनने स्थिति पैदा होने पर उसकी जानकारी तत्काल कोचिंग संस्थानों तक पहुंचे हैं इसके लिए सिस्टम डिवेलप किया जाना चाहिए.

7. पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों के मानसिक मनोरंजन के लिए भी कोचिंग संस्थानों की तरफ से गतिविधियां होनी चाहिए.

8. अभी से 30 छात्रों पर एक काउंसलर की नियुक्ति की जानी चाहिए.

9. हॉस्टल से बाहर रहने वाली पीजी छात्रों के लिए अलग से फीडबैक सिस्टम विकसित किया जाना चाहिए.

10. इंटरनल एसेसमेंट के दौरान छात्र का स्तर गिरने पर उसके उचित कारण जानकर समाधान की दिशा में काम किया जाना चाहिए.

इन 9 सवालों को पूछे जाने से कम होगी खुदकुशी

जयपुर. इस हफ्ते राजस्थान के कोटा में निजी कोचिंग संस्थानों (Kota Private Coaching Institute) में पढ़ने वाले तीन किशोरों ने दो अलग-अलग घटनाओं में खुदकुशी कर ली. उसी दिन भरतपुर में भी एक छात्र ने आत्महत्या की थी तो प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्र ने डूंगरपुर में मौत को गले लगा लिया. इन घटनाओं ने एक तरफ (Suicide cases of students increased in Rajasthan) समाज में चिंता की लकीरें खींच दी हैं तो दूसरी ओर देशभर में कोचिंग हब के नाम से विख्यात कोटा के कोचिंग उद्योग पर भी उंगलियां उठा दी है. जाहिर है कि देशभर से मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहे छात्र कोटा का रुख करते हैं. आंकड़े भी बयान करते हैं कि कामयाबी के मामले में तैयारी करने वाले छात्रों के लिए कोटा अन्य शहरों के मुकाबले काफी मुफीद रहा है. यही कारण है कि कोटा सबकी निगाहों में है और यहां के नतीजों के साथ ही यहां की हर घटना पर पूरे देश की नजर होती है.

मौजूदा वक्त में कोटा में कोचिंग कर रहे छात्रों की तादाद ढाई लाख से ऊपर है. इनमें से नीट और जेईई में सिलेक्ट होने वाले बच्चों का आंकड़ा 30 हजार के करीब होता है. हर आठवें बच्चे में से एक को कोटा की बदौलत मुश्किल समझी जाने वाली परीक्षा को पास करने का मौका मिलता है. माना जाता है कि बाकी का दबाव शेष रहे 7 बच्चों पर होता है. जिसका नतीजा किसी बुरी घटना के रूप में सामने आता है. ऐसे में कोचिंग छात्रों की मानसिक स्थिति और हालात को लेकर ईटीवी भारत ने प्रसिद्ध मनोचिकित्सक (इंडियन साइकिएट्रिस्ट सोसाइटी के (Indian Psychiatrist Society) पूर्व अध्यक्ष व इंडियन क्लिनिकल प्रेक्टिशनर्स डॉक्टर्स एसोसिएशन के चेयरमैन) डॉ. शिव गौतम से बातचीत (Psychiatrist Dr. Shiv Gautam) की. डॉ. गौतम ने इस बातचीत में 9 सवालों का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे अवसाद में रहने वाले बच्चों की पहचान कर इस तरह की घटनाओं को टाला जा सकता है.

इसे भी पढ़ें - राजस्थान हाईकोर्ट : कोचिंग संस्थानों के लिए नियामक कानून और नियमों का ड्राफ्ट तैयार

जरूर पूछे जाने चाहिए ये 9 सवाल

आमतौर पर अवसाद की स्थिति को मापने के लिए और अवसाद की गंभीरता को जानने के लिए एक PHQ-9 (Patient Health Questionnaire ) नाम से सवालों की फेहरिस्त है. जिसे पेशेंट हेल्थ कोश्यनियर के नाम से भी जाना जाता है . इन सवालों सबसे पहले यह पूछा जाता है...

1. क्या आप जो काम कर रहे हैं, उसमें आपकी रुचि है और आपको खुशी का अनुभव होता है?

2. क्या आप खुद को नाउम्मीदी और हताशा से घिरा हुआ महसूस करते हैं?

3. क्या आपको अत्यधिक नींद आती है अथवा आपको सोने में परेशानी का अनुभव होता है?

4. क्या आप हमेशा खुद को थका हुआ और ऊर्जा विहीन महसूस करते हैं?

5. क्या आपको सामान्य से ज्यादा भूख लगती है अथवा भूख लगना बंद हो चुकी है?

6. क्या असफल रहने पर आप खुद के बारे में बुरा अनुभव करते हैं अथवा खुद को या अपने परिवार को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं?

7. किसी चीज पर ध्यान केंद्रित करने में भी क्या आपको परेशानी आती है, मसलन टीवी देखना अखबार पढ़ना या फिर किताब पढ़ना?

8. चलने के दौरान या फिर घूमते वक्त आप इतना धीरे चलते हैं कि लोगों का ध्यान आप पर चला जाए या फिर एक सामान्य गति से चलते हैं कि आपको चलते हुए लोग नोटिस करने लगे

9. इन सवालों में आखिरी और अहम सवाल यह है कि क्या आपको यह महसूस होता है कि आप मर गए होते तो अच्छा होता या फिर आप खुद को चोट पहुंचाने में सफल रहते हैं?

डॉ. शिव गौतम के मुताबिक अगर उन सभी सवालों को गंभीरता के लिहाज से एक से तीन तक की मार्किंग दी जाए और उसके नतीजे के स्वरूप में अगर 9 सवालों का जवाब 1 से 4 अंक में आता है, तो इसे सामान्य स्थिति समझा जा सकता है. 5 से 9 अंक आने पर स्थिति को हल्के अवसाद के रूप में देखा जा सकता है. 10 से 14 अंक पर मॉडरेट डिप्रेशन और 15 से 19 अंक पर इसे गंभीर अवसाद के रूप में देखा जाएगा. परंतु 20 से 27 अंक आने की स्थिति में परिणाम घातक और अत्यंत संवेदनशील होंगे. इसलिए 10 से ऊपर अंक आने की स्थिति में गौतम के अनुसार तुरंत चिकित्सक के परामर्श या फिर काउंसलर के पास जाना जरूरी होता है. यह वह परिस्थिति है, जिसमें किसी भी व्यक्ति की ओर से आत्महत्या करने की योजना को टाला जा सकता है.

मौतों का आंकड़ा: कोटा शहर मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम और इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम की कोचिंग के लिए जाना जाता है. देशभर के विभिन्न राज्यों से यहां पर स्टूडेंट कोचिंग लेने आते हैं. कोरोनाकाल की वजह से दो साल तक कोचिंग पर ब्रेक रहा. इस साल करीब ढाई लाख स्टूडेंट्स अभी कोचिंग संस्थानों में यहां पढ़ रहे हैं. एक कोचिंग संस्थान तो दावा करता है कि उसके पास डेढ़ लाख स्टूडेंट पढ़ते हैं. कोचिंग संस्थान मालिकों पर आरोप है कि मोटा पैसा कमाने के चक्कर में बिना काउंसलिंग के स्टूडेंट्स को एडमिशन दे दिया.

बड़ी संख्या में क्लास रूम में बच्चों को बैठाया जाता है. पढ़ाई के तनाव में बच्चे सुसाइड कर रहे हैं. कोटा में अगर बीते 10 सालों के आंकड़ों की बात की जाए तो साल 2012 में 11 बच्चों ने खुदकुशी की थी तो साल 2013 में 26 छात्रों ने आत्महत्या की. 2014 में 14, 2015 में 23, 2016 में 17, 2017 में 7, 2018 में 20, 2019 में आठ और कोरोना काल के 2 साल यानी 2020 और 21 में कुल मिलाकर आठ सुसाइड के मामले सामने आए थे. लेकिन जैसे ही कोचिंग संस्थानों ने पूरी क्षमता के साथ काम शुरू किया तो इसी साल 20 खुदकुशी के मामले अब तक दर्ज हो चुके हैं. यानी 10 साल में डेढ़ सौ से ज्यादा बच्चों ने मौत को गले लगा लिया.

नतीजों से कोटा पर दबाव: राजस्थान के लिए कोटा की पहचान कोचिंग हब के रूप में है. पूरे देश में परिवारों की ख्वाहिश होती है कि मेडिकल और इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए उनके बच्चे कोटा से तैयारी करें. ढाई लाख बच्चों की आबादी वाले इस शहर में जाहिर तौर पर कोचिंग छात्रों की तादाद बड़ी संख्या में है. ऐसे में बन नीट की 97 हजार सीटों में से 15 हजार बच्चों का सिलेक्शन कोटा के बैकग्राउंड पर होता है तो जेईई में 54 हजार 700 सीटों में से 14 हजार बच्चे कोटा से सेलेक्ट होते हैं. ऐसे में राज्य सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक काउंसलिंग का सिस्टम भी ज्यादा असरकारक नजर नहीं आता है.

डॉ. शिव गौतम के मुताबिक एक काउंसलर अधिकतम 20 से 30 छात्रों की काउंसलिंग कर सकता है और उन पर नजर रख सकता है. इससे अधिक संख्या होने पर हर बच्चे पर नजर रखना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में कोचिंग संस्थानों की जवाबदेही भी बनती है तो दूसरी और अभिभावकों को भी समझना चाहिए कि बच्चे क्या चाहते हैं. अभिभावकों की ख्वाहिश पूरी करने के चक्कर में ही बड़े खर्चे पर बच्चे तैयारी करने के लिए कोटा पहुंचते हैं और फिर दबाव में आ जाते हैं. कोटा में कोचिंग इंडस्ट्री दो हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा का उद्योग है. मगर अब छात्रों में बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं ने सभी को झकझोर कर रख दिया है. कोचिंग संस्थान चलाने वालों को समझ में नहीं आ रहा है कि इन घटनाओं को कैसे रोकें.

यह उपाय होने चाहिए

1. बच्चों को बाहर पढ़ने से भेजने के लिए पहले माता-पिता को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि क्या बच्चा मानसिक रूप से इसके लिए तैयार है.

2. माता-पिता का दायित्व है कि बच्चे की रुचि को समझें और उसी के मुताबिक करियर के लिए आगे की राह का चुनाव करने में मदद करें.

3. कोचिंग संस्थानों में नए छात्रों को एडमिशन दिलाने से पहले काउंसलर के जरिए उनकी मानसिक स्थिति का आकलन करना चाहिए.

4. कोचिंग में दाखिले के बाद माता पिता और छात्र का संपर्क लगातार होना चाहिए वही कोचिंग संस्थानों का काम है कि वह बच्चों की परफॉर्मेंस से जुड़ी हर जानकारी उनके माता-पिता तक पहुंचाए.

5. साथी छात्रों के जरिए भी फीडबैक लेने का काम होते रहना चाहिए.

6. किसी छात्र के साथ ऐसा बनने स्थिति पैदा होने पर उसकी जानकारी तत्काल कोचिंग संस्थानों तक पहुंचे हैं इसके लिए सिस्टम डिवेलप किया जाना चाहिए.

7. पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों के मानसिक मनोरंजन के लिए भी कोचिंग संस्थानों की तरफ से गतिविधियां होनी चाहिए.

8. अभी से 30 छात्रों पर एक काउंसलर की नियुक्ति की जानी चाहिए.

9. हॉस्टल से बाहर रहने वाली पीजी छात्रों के लिए अलग से फीडबैक सिस्टम विकसित किया जाना चाहिए.

10. इंटरनल एसेसमेंट के दौरान छात्र का स्तर गिरने पर उसके उचित कारण जानकर समाधान की दिशा में काम किया जाना चाहिए.

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