जयपुर. 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी. इसके लिए जयपुर, बेंगलुरु और मैसूर के मूर्तिकारों ने भगवान के बाल स्वरूप की तीन प्रतिमाएं बनाई हैं. इनमें से किसकी प्रतिमा गर्भगृह में लगेगी, ये अब तक तय नहीं हो पाया है, लेकिन जयपुर के कलाकारों के लिए सौभाग्य की बात ये है कि उन्हें रामलला का विग्रह तैयार करने के लिए चुना गया. यही नहीं, जयपुर के पांडे परिवार ने गर्भगृह में विराजित कराए जाने वाले भगवान गणेश, हनुमान और मंदिर परिसर में लगी कई अनोखी प्रतिमाओं को तैयार कर अयोध्या भेजा है.
जयपुर के लिए सौभाग्य की बात : प्राण प्रतिष्ठा समारोह की तैयारी आखिरी चरण में है. इसके इतर पूरे देश में राम उत्सव की धूम मची हुई है, लेकिन जयपुर के लिए सौभाग्य की बात ये है कि यहीं के कलाकारों ने गर्भगृह में विराजमान होने वाले रामलला के साथ-साथ राम मंदिर के लिए कई प्रतिमाएं तैयार की है. जयपुर के मूर्तिकार सत्यनारायण पांडे ने 7 महीने में 90 साल पुराने मकराना के संगमरमर पत्थर में भगवान रामलला को तराशा. उनके पुत्र पुनीत पांडे ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि रामलला का मंदिर बनकर तैयार हो गया है और रामलला की मूर्ति बनाने का मौका मिलना उनके लिए सौभाग्य की बात है. ये कोई पुण्य ही है जो ये सौभाग्य उनके परिवार को मिला.
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उन्होंने बताया कि उनके अलावा दो कलाकारों ने और भगवान का स्वरूप तैयार किया है. हालांकि, अभी तय नहीं हो पाया है कि प्रतिष्ठा किस विग्रह की होगी. उनके पिता सत्यनारायण पांडे ने मकराना के संगमरमर पत्थर से रामलला तैयार किए हैं. इसके अलावा दो कलाकार गणेश बट्ट और अरुण योगीराज कर्नाटक के हैं. उनमें से एक बेंगलुरु और एक मैसूर के हैं. उन्होंने काले पत्थर की प्रतिमा तैयार की है.
भगवान की मर्जी के आगे कुछ नहीं : पुनीत ने बताया कि जिस पत्थर में रामलला को गढ़ा है वो करीब 90 साल पुराना है और करीब 40 साल से उनके पास रखा हुआ है, क्योंकि इतना बड़ा पत्थर अमूमन निकलता ही नहीं है. उनका फोकस रहता है कि जब भी कोई अच्छा पत्थर मिले तो उसे खरीद कर रख लें. ये पत्थर रेयर टू रेयर है और कहते हैं कि भगवान की मर्जी के आगे कुछ नहीं है. भगवान रामलला को इसी पत्थर में गढ़ना था. इसी वजह से कई बार इस पत्थर को कट करके मूर्ति बनाने की प्लानिंग की गई, लेकिन हर बार कोई ना कोई ऐसा संजोग बैठा कि उस पत्थर को रख दिया जाता था.
उन्होंने बताया कि राम मंदिर ट्रस्ट की ओर से इसे लेकर कुछ इंस्ट्रक्शंस दिए गए थे कि भगवान का बाल स्वरूप तैयार करना है, क्योंकि इसे जन्मभूमि पर प्राण प्रतिष्ठित करना है. इसलिए 5 साल तक की उम्र का विग्रह तैयार करने के निर्देश दिए गए थे, लेकिन सत्यनारायण पांडे ने इस विग्रह को एक साल और छोटा बनाया है. कोशिश की गई है कि भगवान का बाल स्वरूप ज्यादा कोमल और अट्रैक्टिव बनाया जाए. इस मूर्ति को एक मासूम बच्चे सा बनाया गया है. चरणों से लेकर नेत्र तक रामलला की प्रतिमा 51 इंच की बनाई गई है. इसके बाद फिर ललाट और मुकुट भी हैं. नीचे कमल का बेस भी है और भी बहुत कुछ इस विग्रह में देखने को मिलेगा.
रामलला की प्रतिमा बनाने में 7 महीने का समय लगा : पुनीत ने बताया कि इसके अलावा गर्भगृह में भगवान गणेश और हनुमान जी का विग्रह लगेंगे जो 33-33 इंच के तैयार कर जयपुर से ही भेजे गए हैं. गर्भगृह के द्वार पर सात-सात फुट के दो द्वारपाल भी लगाए गए हैं और बाहर जहां से मंदिर में एंट्री लेते हैं, वहां पर 6-6 फुट के खड़े हनुमान और खड़े गरुड़ भी स्थापित किए हैं. इनके साथ 6 फीट के हाथी 6 फीट के शेर का जोड़ा भी लगाया जा चुका है. उनके भाई प्रशांत पांडे ने इनका इंस्टॉलेशन कराया है. उन्होंने बताया कि रामलला की प्रतिमा बनाने में 7 महीने का समय लगा. ये मूर्ति अयोध्या में ही तैयार की गई है. इसी बीच जयपुर में बाकी मूर्तियां तैयार कर यहां से भेजी गईं.
वहीं, अपने सिलेक्शन को लेकर पुनीत पांडे ने बताया कि राम मंदिर ट्रस्ट में मूर्ति बनाने को लेकर बातचीत की गई थी. उनका इस्कॉन टेंपल, स्वामीनारायण संप्रदाय के मंदिरों में और दूसरे मठों में कई मूर्तियों का काम देखा गया और यहां आकर भी उनका काम देखा, फिर उन्होंने अयोध्या बुलाया और डिस्कशन हुआ कि यहां क्या-क्या लगाया जा सकता है. उसकी ड्राइंग फाइनल हुई. बाद में जिस पत्थर में रामलला को तैयार करना है वो पत्थर अयोध्या गया. उसकी टेस्टिंग हुई, जिसमें बहुत अच्छा रिजल्ट आया. उसमें व्हाइटनेस, आयरन, कैल्शियम प्रचुर मात्रा में था. पत्थर को लेकर वो खुद भी कॉन्फिडेंट थे और काम भी तीन पीढियों का था, फिर रामलला की मूर्ति में भी जो काम किया गया, उसमें भी काफी मनन चिंतन किया गया है.
पांडे परिवार की तीसरी पीढ़ी : बहरहाल, रामेश्वर लाल पांडे ने जिस व्यवसाय की शुरुआत की थी, उसे उनके पुत्र सत्यनारायण पांडे और पुष्पेंद्र पांडे ने आगे बढ़ाया और अब तीसरी पीढ़ी प्रशांत, पुनीत और प्रसून इस काम को बढ़ा रहे हैं. वहीं, चौथी पीढ़ी बहुत छोटी है, लेकिन जब वो अपने दादा के साथ अयोध्या गए, तो वहीं सेवा में जुट गए. वो बच्चे पहले कहते थे कि मशीनरी बनाएंगे लेकिन अब वो भी कलाकार ही बनना चाहते हैं.