जयपुर. राजस्थान विधानसभा में बुधवार को प्रारंभिक माध्यमिक और उच्च शिक्षा की अनुदान मांगों पर बोलते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सलाहकार निर्दलीय विधायक बाबूलाल नागर ने सरकार की डेपुटेशन नीति पर सवाल खड़े किए. बाबूलाल नागर ने कहा कि जब हमें लेक्चरर निदेशालय में चाहिए, तो फिर कॉलेज क्यों खोले जा रहे हैं? किसी को ऐसे ही डेपुटेशन पर रखकर, ऑब्लाइज कर सरकार बिना काम की तनख्वाह देना चाहती है.
नागर ने कहा कि मैं अपनी गरीब जनता के साथ हो रहे इस अत्याचार को बर्दाश्त नहीं करूंगा. मैं सरकार और विभाग को चेतावनी दे रहा हूं कि यह कारनामे बंद करें और मेरे क्षेत्र में अध्यापकों के डेपुटेशन को निरस्त कर वापस महाविद्यालयों में लगाएं. उन्होंने कहा कि बिना लेक्चरर के मेरे क्षेत्र में महाविद्यालय के बच्चे रो रहे हैं. उनके आंसू गिर रहे हैं कि उनके कॉलेज क्यों खोले गए, जब लेक्चरर लगाने ही नहीं थे. नागर ने कहा कि इससे अच्छा तो सरकार विद्या संभल योजना के तहत किसी कम पढ़े लिखे व्यक्ति को लगा देती, तो कम से कम बच्चों को कम ही सही, लेकिन पढ़ाई के लिए लेक्चरर तो मिलता.
पढ़ें: राजस्थानी और पंजाबी विषय 'अनाथ'! प्रदेश के राजकीय महाविद्यालयों में शिक्षकों के 40 फीसदी पद रिक्त
विधानसभा ही रद्द करे मान्यता: नागर ने निजी विश्वविद्यालयों की व्यवस्था पर भी सवाल खड़े किए. उन्होंने कहा कि सरकार का विश्वविद्यालयों पर कोई नियंत्रण नहीं रहा और उनका कोई धणी-धोरी नहीं है. नियमों के अनुसार विश्वविद्यालय को अपनी स्थापना के 6 साल बाद गुणवत्ता प्रमाणित करने के लिए नेट से ग्रेड प्राप्त करनी चाहिए और जो विश्वविद्यालय नेट ग्रेड प्राप्त नहीं कर सकें, वे विश्वविद्यालय बच्चों का भविष्य खराब कर रहे हैं. ऐसे में जो विश्वविद्यालय 6 साल में नेट की ग्रेड प्राप्त नहीं कर सके, उन्हें जिस तरीके से विधानसभा में कानून लाकर विश्वविद्यालय बनाया जाता है, उसी तरीके से विधानसभा में कानून लाकर उनकी मान्यता को भी रद्द किया जाए.
यूनिवर्सिटी प्रशासन नहीं मानता सरकार के भी आदेश: नागर ने कहा कि सरकार 10,000 अंग्रेजी अध्यापक लगाने की बात कर रही है. लेकिन हकीकत यह है कि 265 पीजी महाविद्यालय में अंग्रेजी विषय ही नहीं है. ऐसे भी जब हम अंग्रेजी की पढ़ाई ही नहीं करवाएंगे, तो हमें टीचर ही कहां से मिलेंगे. तो वहीं राजस्थान विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए नागर ने कहा कि 6 सहायक आचार्य के पदोन्नति के मामले 21 साल से पेंडिंग हैं. जिसे लेकर सिंडिकेट और उच्च शिक्षा विभाग ने आदेश भी कर दिया, लेकिन वह आदेश किसी कोटडी में पड़ा है. उन्होंने कहा कि सरकार को भी यूनिवर्सिटी प्रशासन कुछ नहीं समझता. सरकार के 2 बार आदेश देने के बावजूद भी इन सहायक आचार्यों की पदोन्नति नहीं हुई. ऐसे में सरकार और विभाग के अधिकारी हस्तक्षेप करें ताकि इन लोगों को न्याय मिल सके.