जयपुर. राजस्थान की राजनीति में कांग्रेस पर्ची का जिक्र मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को लेकर करती रही है, लेकिन आज विधानसभा में जब पर्ची का जिक्र का हुआ तो सदन में जमकर ठहाके लगे. राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी ने अपने संबोधन में कहा कि यह पर्ची बड़ी खतरनाक चीज है, जब यह निकलती है तो अच्छे अच्छों के होश उड़ जाते हैं. इसके बाद सदन में जोरदार ठहाके लगे. दरअसल इस पर्ची को भजनलाल शर्मा के मुख्यमंत्री बनने की घोषणा से जोड़कर देखा जा रहा है.
सदन में लगे ठहाके : घनश्याम तिवाड़ी ने पहले तो नवनिर्वाचित विधायक को सदन की कार्यवाही और सदन में बरते जाने वाले आचरण को लेकर संबोधित किया. तिवाड़ी ने विधायकों को ज्यादा से ज्यादा समय सदन में बिताने की सीख दी. उन्होंने कहा कि सदन का हर सत्र महत्वपूर्ण होता है. सदस्यों की मौजूदगी जरूरी है. इसके बाद तिवाड़ी ने अपने राजनीतिक अनुभव को साझा किया. डिजायर सिस्टम पर बात करते हुए कहा कि "अपने 40 साल के संसदीय जीवन में एक भी डिजायर नहीं की, इसलिए आप काम उसके बिना भी कर सकते हो". इसके बाद पर्ची के जिक्र पर बोलते हुए कहा कि "पर्ची तो बड़ी खतरनाक है, जब भी निकलती है तो होश उड़ जाते हैं, क्योंकि मुझे फिर पर्ची मिल गई, पर्ची के आदेश की पालना मुझे भी करनी होगी, लेकिन आप सभी सदस्य को धन्यवाद देकर कहना चाहूंगा कि कृपा करके विधेयकों को लेकर जब भी सदन में चर्चा हो उसे ध्यान से सुनें".
क्या है पर्ची ? : बता दें कि पर्ची का जिक्र राजस्थान की राजनीति में भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद से शुरू हुआ है. 12 दिसंबर को मुख्य पर्यवेक्षक के रूप में राजनाथ सिंह ने विधायक दल बैठक में मुख्यमंत्री के नाम की पर्ची निकाली और वो प्रस्तावक के रूप में सीएम का नाम रखने के लिए पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को सौंपी थी. उस समय का यह वीडियो भी खूब सोशल मीडिया में सुर्खियों में रहा था, जिसमें राजे ने पर्ची में नाम देखने बाद अचंभित होकर राजनाथ सिंह की तरफ देखा था. उसके बाद से पर्ची का जिक्र प्रदेश की सियासत में लगातार होता रहा है, विपक्ष ने तो कई बार सरकार को ही पर्ची की सरकार बताते हुए हमला बोला है.
पढ़ाया आचरण का पाठ : विधायकों के प्रबोधन कार्यक्रम में पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष राव राजेंद्र सिंह ने भी विधायकों को आचरण का पाठ पढ़ाया. उन्होंने कहा कि जिस भाषा का आप उपयोग करते हैं, वो शब्द सदन को मर्यादा प्रदान करता है. सदन में उपस्थिति अनिवार्य होनी चाहिए. सदन में एक-एक पल की उपयोगिता है, आपके अच्छे विचार और आचरण की भी आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि सभ्यता किताबों में नहीं मिलती, आपका एक व्यक्तिगत आचरण, सदन के आचरण में निहित हो जाता है. सदन में बिताया एक-एक पल जनता का है, सदन की गरिमा विधायक के हाथों में हैं. उन्होंने कहा कि पक्ष-विपक्ष को मर्यादा में रहकर सदन की कार्यवाही में भाग लेना चाहिए.