जयपुर. राजधानी के रेनवाल कस्बे में पिछले दो महीने से सुअरों की हो रही मौत की जांच रिपोर्ट आ गई. इस रिपोर्ट में अफ्रीकन स्वाइन फीवर बीमारी की पुष्टि हुई है, जिसका न कोई इलाज है और न ही कोई टीका. इस कारण कस्बे के सभी बीमार सुअरों को किल डिस्पोजल किया जाएगा. भोपाल के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाई सिक्योरिटी एनिमल डिजीज लेबोरेटरी से बुधवार काे जांच रिपोर्ट मिली. उसके बाद कृषि और पशुपालन मंत्री लालचंद कटारिया ने पंत भवन जयपुर में अधिकारियों के साथ बैठक की. इस बैठक में बीमारी पर तत्काल काबू पाने के निर्देश दिए गए. जिसके बाद जिला कलेक्टर ने अलग से अधिकारियों की बैठक ली और दिशा निर्देश दिए. गुरुवार को शहर के नगर पालिका सभागार में उपखंड अधिकारी जयंत कुमार ने बैठक ली.
पालकों को सरकार देगी मुआवजा : बैठक में पशु पालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. प्रवीण कुमार सैन, उप निदेशक डॉ. पदमचंद कनखेडिया, तहसीलदार सुनिता चौधरी, समेत कई अधिकारी मौजूद रहे. साथ ही बैठक में कस्बे के सुअर पालक भी शामिल हुए. इस मीटिंग में तय हुआ कि जल्द कस्बे के सभी सुअरों को किल डिस्पोजल किया जाएगा. पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक ने बताया कि बीमारी से ग्रसित सुअर को किल डिस्पोजल करने पर सरकार सुअर पालक को 15 किलो तक के सुअर का 2200 और 16 से 40 किलो तक को 5800 रुपए मुआवजा देगी.
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दो महीने में 600 सुअरों की मौत : रेनवाल कस्बे में पिछले दो महीने में 600 से अधिक सुअरों की मौत हो चुकी है, जबकि अभी करीब 500 सुअर मौजूद हैं. कस्बे में दो तरह के सुअर पाले जाते है एक सफेद और दूसरे काले. सफेद सुअर बाड़ों में रखे जाते हैं, जिनका वजन अधिक होता है. जबकि काले बाड़ों और गलियों में टहलते रहते हैं. पशुपालन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 22 जनवरी से अब तक 149 सुअरों की मौत हुई हो चुकी है. जबकि सर्वे में सुअर पालकों ने ये आंकड़ा 1444 का बताया है. विभाग के अनुसार 400 सुअर इस वक्त मौजूद हैं. वहीं, सुअर पालकों की मानें तो इनकी संख्या 800 से अधिक है. उपखंड अधिकारी जयंत कुमार ने बताया कि सुअरों में स्वाइन फीवर बीमारी इंसानों में नहीं पहुंचती है और न ही दूसरे किसी जानवर को संक्रमित करती है. ये केवल एक सुअर से दूसरे सुअर में पहुंचती है.
अफ्रीकन स्वाइन फीवर को समझिए : साल 1921 में दक्षिण अफ्रीका के कीनिया में सुअरों में यह बीमारी पहली बार देखी गई थी. जिसके बाद इसका नाम अफ्रीकन स्वाइन फीवर दिया गया. देश में सबसे पहले साल 2020 में असम और अरूणाचल प्रदेश में यह बीमारी सुअरों में आई थी. अब यह बिमारी रेनवाल में देखी जा रही है. सुअरों में इसके कोई खास लक्षण नजर नहीं आते हैं. स्वस्थ सुअर अचानक सुस्त हो आता है और कुछ समय में उसकी मौत हो जाती है. आंख लाल हो जाती है. इसकी वजह से अन्य शहरों और कस्बों में संक्रमण को रोकने के लिए एक किलोमीटर क्षेत्र में सभी सुअर को किल डिस्पोजल किया जाएगा. सुअर पालने के बाड़ों में साफ-सफाई और सैनेटाइज करने के बाद कुछ महीने खाली रखना पड़ेगा.