जयपुर. राजस्थान कोचिंग स्टूडेंट्स की कब्रगाह बनता जा रहा है. अकेले कोटा में इस साल तकरीबन 24 कोचिंग स्टूडेंट्स के सुसाइड के मामले सामने आ चुके हैं. इनमें मुख्य रूप से नीट (NEET) और जेईई (JEE) की तैयारी करने वाले होनहार शामिल हैं. जिनके माता-पिता ने उनके सुनहरे भविष्य के सपने तो देखे लेकिन उचित मार्गदर्शन के अभाव में तनाव से ग्रसित इन छात्रों ने सुसाइड के रास्ते को चुना. हालांकि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए जयपुर के एक शिक्षक ने पहल करते हुए निशुल्क हेल्पलाइन शुरू की है. जहां कोचिंग स्टूडेंट को अपनी पीड़ा बताने पर समाधान भी मिल रहा है.
कोटा, जयपुर और सीकर जैसे शहर, जो राजस्थान के एजुकेशन हब कहे जाते हैं. यहां हर साल लाखों छात्र विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग ज्वाइन करते हैं. लेकिन अब यहां से कोचिंग स्टूडेंट्स के सुसाइड की खबरें सामने आने लगी है. जिससे व्यथित होकर जयपुर के अग्रवाल फार्म निवासी विनीत सोनी ने निशुल्क हेल्पलाइन शुरू की है. उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी में बतौर प्रोफेसर कार्यरत विनीत रोज शाम को 2 घंटे न केवल छात्रों की पीड़ा सुनते हैं, बल्कि उन्हें परामर्श भी देते हैं.
विनीत सोनी ने बताया कि बहुत ही दुख का विषय है कि साल 2023 में अब तक कोटा में नीट और जेईई की तैयारी कर रहे करीब 24 विद्यार्थियों ने सुसाइड कर लिया. जो बेहद ही चिंता का विषय है. ये विषय केवल राजस्थान के लिए नहीं बल्कि पूरे भारत वर्ष के लिए चिंताजनक है कि मेधावी स्टूडेंट के साथ ऐसा क्या हो जाता है कि वो सुसाइड जैसे कदम उठा लेते हैं. इसी को मद्देनजर रखते हुए एक हेल्पलाइन शुरू की है. जिसका मुख्य उद्देश्य यही है कि स्टूडेंट को मार्गदर्शन दिया जाए.
उन्होंने बताया कि जब बच्चों से बात करना शुरू किया तब पता लगा कि जो छात्र साइंस लेते हैं उन्हें लगता है कि केवल डॉक्टर और इंजीनियर बनना ही स्कोप है. जबकि साइंस में बहुत सारे स्कोप हैं. छात्र प्रोफेसर, साइंटिस्ट, फार्मास्यूटिकल कंपनी, बायोटेक्नोलॉजिस्ट बन सकता है. ऐसे अथाह स्कोप साइंस में हैं. कुछ छात्रों को लगता है कि कहीं नीट या जेईई एग्जाम पास नहीं कर पाऊंगा तो करियर खराब हो सकता है, जिसकी वजह से छात्र तनाव में आ जाते हैं सुसाइड जैसे गलत स्टेप उठा लेते हैं. ऐसे में 9वीं कक्षा से ही छात्रों को बताना होगा कि क्या-क्या रास्ते हो सकते हैं. ये दायित्व स्कूल के शिक्षकों के साथ-साथ माता-पिता का भी है.
छात्र बताते हैं इस तरह की पीड़ा :
- सोमवार से शनिवार तक क्लास लगती है, रविवार को एग्जाम होता है, खुद के लिए समय ही नहीं निकाल पाते.
- कोचिंग की फीस ज्यादा होने की वजह से लोन लेकर पढ़ाई करनी पड़ रही है, जिसका बहुत लोड है.
- माता-पिता की आकांक्षाओं पर खरा उतरना बड़ी चुनौती है.
- बिना गाइडेंस के चुन ली साइंस अब क्या करें.
- नीट या जेईई में पास नहीं हुई तो क्या बिगड़ जाएगा भविष्य?
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इस तरह के सवालों को फेस करने के बाद विनीत ने अभिभावकों को सुझाव देते हुए कहा कि छात्रों पर कभी निजी राय नहीं थोपें. अमूमन माता-पिता और शिक्षकों की ये सोच होती है कि 10 वीं में यदि किसी छात्र की अच्छी परसेंटेज बन गई तो उसको साइंस दिला दी और कम अंक रह गए तो कॉमर्स या आर्ट्स दिला दी. छात्रों को ये बताना होगा कि आर्ट्स, कॉमर्स, साइंस सभी में बराबर स्कोप हैं. बच्चा जिसमें अच्छा कर सकता है, जिसमें उसकी रुचि है उसे वही सब्जेक्ट दिलाएं. जबरदस्ती किसी विषय को नहीं दिलाना चाहिए. बच्चों का 9वीं 10वीं में ही मूल्यांकन कर लेना चाहिए कि उनकी अभिरुचि किस विषय में है. इस तरह के संयुक्त प्रयासों से बच्चों में जो सुसाइड करने की मनोवृत्ति आती है, उससे बच्चों को बाहर निकाल सकते हैं. इस मिशन का यही उद्देश्य है कि कोई भी बच्चा तनाव ग्रस्त होकर सुसाइड अटेंप्ट ना करे.
बहरहाल, कोचिंग स्टूडेंट के सुसाइड के मामलों को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी चिंता व्यक्त की है, लेकिन जरूरत है प्रो विनीत सोनी जैसे शिक्षकों की. जो न सिर्फ छात्रों को शिक्षित करें, बल्कि उनकी पीड़ा सुनकर उनका समाधान भी निकालें.