जयपुर. प्रदेश में कड़ाके की ठंड पड़ने लगी है. कोहरा और शीतलहर लोगों को परेशान करने लगा है (night shelters in Jaipur). रात के वक्त तापमान नीचे लुढ़कता है तो ठंड और बढ़ जाती है. ऐसे में उन गरीब और निराश्रित लोगों को खासा परेशानी का सामना करना पड़ता है. जिनके पास सोने के लिए चार दीवारी और छत नहीं हैं. वो फुटपाथ पर सोने को मजबूर हैं. राजधानी जयपुर में कंपकपाती ठंड के बीच देर रात पारा 10 डिग्री के नीचे लुढ़क जाता है. जिसे ध्यान में रखते हुए सरकार के आदेश पर ग्रेटर और हेरिटेज नगर निगम ने मिलकर शहर में जगह-जगह रैन बसेरे बनाए हैं. फिर भी लोग गलन भरी ठंड में फुटपाथ पर सोने को मजबूर हैं.
राजधानी जयपुर में 28 स्थाई-अस्थाई रैन बसेरों के बावजूद फुटपाथ पर दरी-कंबल बिछा कर सो रहे लोगों के बीच जब ईटीवी भारत पहुंचा तो इन्हीं में से एक रुकमणी बाई ने बताया कि वो सब दूसरे राज्यों से मजदूरी या छोटे-मोटे धंधे करने यहां आए हैं. उनके साथ उनका पूरा परिवार यहां रहता है. उसमें बुजुर्ग से लेकर छोटे बच्चे भी शामिल हैं. वहीं रघु ने बताया कि उनके छोटे बच्चे हैं जो रैन बसेरों में गंदगी कर देते हैं इसलिए उन्हें रैन बसेरों में रहने नहीं दिया जाता. मजबूरन उन्हें ठंड में बाहर सोना पड़ता है. इनमें से कुछ क्षेत्र में होने वाले शादी-समारोह के बाहर गुब्बारे-खिलौने बेचने का काम करते हैं.
हालांकि भूखों को भोजन और सर्द रातों में सर्दी से बचाने के लिए कंबल बांटने की परंपरा जयपुर से जुड़ी हुई है (night shelters in Jaipur). जयपुर के संस्थापक सवाई जय सिंह ने यहां पुण्य महकमे की शुरुआत की थी, जो शीत ऋतु में हरकत में आ जाया करता था. उनके वंशजों ने इसे आगे बढ़ाया और जयपुर राइट्स विरासत की इस परंपरा को आज भी निभा रहे हैं. इंसानियत और मानवता अलग-अलग शक्ल में फुटपाथ पर रहने वाले लोगों के पास मदद लेकर पहुंचते हैं.
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सालासर बालाजी से जुड़े विष्णु दत्त ने बताया कि वो सालों से इसी तरह बेसहारा और निराश्रित लोगों के पास सर्द रातों में कंबल और भोजन सामग्री लेकर पहुंचते हैं. ये ना सिर्फ जयपुर की परंपरा है बल्कि उनके पिता का भी यही मानना है कि कोई भी काम स्वभाव में होना चाहिए, न कि दबाव में. वो न सिर्फ जय क्लब के बाहर पहुंचे हैं. बल्कि करधनी कच्ची बस्ती, झालाना डूंगरी, रामनिवास बाग और गोविंद देव जी मंदिर के बाहर भी सेवा कार्य करने पहुंचे थे. उनका प्रयास यही रहता है कि जिन लोगों के पास कोई सुख सुविधा नहीं है, ऐसे जरूरतमंदों तक सहायता पहुंचे.
इस दौरान एक मासूम बच्ची नारू को जब सर्द रात में ओढ़ने के लिए कम्बल मिला तो उसके चेहरे की मुस्कान भी ईटीवी भारत के कैमरे में कैद हो गई. नारू की ही बड़ी बहन राधा को भी उम्मीद थी कि वो भले ही फुटपाथ पर रह रहे हैं. लेकिन कोई तो होगा जो उनके दर्द को कम कर जाएगा. विष्णु दत्त और उन जैसे सैकड़ों लोग फुटपाथ पर गुजर-बसर कर रहे इन लोगों के लिए फरिश्ते से कम नहीं. अफसोस सिर्फ इस बात का है कि जिस मुस्तैदी से सरकार को एक्शन में आना चाहिए वैसा होता दिख नहीं रहा है. शेल्टर होम्स के जरिए जख्मों पर मरहम कम लेकिन रस्म अदायगी जरूर की जा रही है.