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विश्व पर्यटन दिवस: हनुमानगढ़ में है भारत का सबसे पुराना किला, लेकिन बदहाली के आंसू बहा रहा भटनेर दुर्ग - बीकानेर के राजा सूरत सिंह

विश्व पर्यटन दिवस के मौके पर आपको हनुमानगढ़ के ऐसे ऐतिहासिक दुर्ग के बारे में बताएंगे. जिसके बारे में अधिकतर लोग नहीं जानते हैं. लेकिन भटनेर दुर्ग के बारे में जानकर ताज्जुब होगा कि ये किला न सिर्फ अकबर और तैमूर जैसे शासकों का पसंदीदा था. बल्कि देश का सबसे पुराना किला भी है.

Hanumangarh Bhatner Durg, World Tourism Day , Rajasthan hindi news
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Published : Sep 27, 2019, 8:45 AM IST

हनुमानगढ़. राजस्थान में मौजूद किलों में से अगर किसी किले को राज्य सरकार, पुरातत्व विभाग या केंद्र सरकार की ओर से सबसे ज्यादा अनदेखा किया गया है तो वो है हनुमानगढ़ स्थित प्राचीन भटनेर दुर्ग. शहर के बीचों-बीच स्थित राजस्थान ही नहीं बल्कि मध्य एशिया का सबसे प्राचीन ये किला मानो मुकुट की तरह दिखाई देता है.

बदहाली के आंसू बहा रहा भटनेर दुर्ग

सरकारों की अनदेखी के साथ-साथ वक्त के थपेड़े खाते हुए भी सीना तान कर खड़ा है. इस किले का निर्माण 295 ईस्वी में भाटी नरेश भूपत के पुत्र अभय राव भाटी ने घग्गर नदी (प्राचीन सरस्वती नदी) के किनारे करवाया था. 52 बीघा क्षेत्रफल में फैले इस किले में 52 ही बुर्ज हैं और उस वक्त प्रत्येक बुर्ज के साथ एक कुआं भी था. भटनेर दुर्ग प्राचीन समय से ही देश के सबसे मजबूत किलों में से एक रहा है. इसकी प्रशंसा में तुर्क आक्रमणकारी तैमूर लंग ने अपनी जीवनी तुजूक-ए-तैमूरी में लिखा है कि उसने हिंदोस्तान में इतना मजबूत और सुरक्षित दुर्ग नहीं देखा.

यह भी पढ़ेंः जयपुर में 'करवा चौथ सेलिब्रेशन- 2' का पोस्टर लॉन्च, एक्टर रूही और शुवेंद्र करेंगे शिरकत

इस जंगी किले में 3 मुख्य द्वार हैं और घोड़ों के प्रवेश और चढ़ाई के लिए एक संकरा रास्ता है. प्राचीन समय से ही अपनी महत्वपूर्ण स्थिति के चलते ये किला तमाम आक्रमणों को झेलता रहा है और लगातार हमलों के चलते ही शायद यहां के भाटी राजाओं ने इस स्थान को त्याग दिया था और सुदूर पश्चिमी राजस्थान में लौद्रवा होते हुए जैसलमेर जाकर बस गए थे. वहां भी विश्व प्रसिद्ध सोनार किले का निर्माण करवाया.

पढ़ें- विश्व पर्यटन दिवस: देश-दुनिया में झीलों के लिए प्रसिद्ध उदयपुर में लाखों की संख्या में आते हैं पर्यटक

तैमूर और मुगल बादशाह अकबर का पसंदीदा किला
भटनेर के इतिहास और महत्व को जैसलमेर के प्रसिद्ध इतिहासकार नंद किशोर शर्मा ने भी बताया कि दुर्ग न सिर्फ तैमूर का बल्कि मुगल बादशाह अकबर का भी पसंदीदा किला रहा है. आईने अकबरी में इसका जिक्र है. यहां तक कि पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के मध्य हुआ तराईन का मशहूर युद्ध भी इसी किले के बिल्कुल नजदीक हुआ था. यही नहीं भारत की प्रथम महिला शासक रजिया सुल्ताना को भटिंडा के दुर्ग के साथ-साथ कुछ समय के लिए भटनेर के किले में भी कैद रखा गया था.

पढ़ें- विश्व पर्यटन दिवस: बूंदी में घट रही पर्यटकों की संख्या...टूटी सड़कें बनी समस्या

खंडहर जैसा होता जा रहा ऐतिहासिक भटनेर दुर्ग
ये किला रामायण-महाभारत काल में भी अलग ढांचे में यहां विद्यमान था. तमाम महान शासकों के पसंदीदा इस किले की बदहाली का आभास इसमें प्रवेश करते ही होने लगता है. किले के दरवाजों को पार करके ऊपरी हिस्से में पहुंचते ही इसकी दयनीय हालत और भी उभरकर सामने आती है. किले के ऊपर मिट्टी का पठारनुमा खंडहर है जहां कभी महल आदि होने का अंदाजा लगाया जाता है. हालांकि इस खंडहर पर एक जैन मंदिर भी है जो अच्छी हालत में है. जैन मंदिर के साथ साथ किले पर और भी कुछ छोटे-छोटे मंदिर बने हैं. जहां त्योहार आदि के समय अच्छी खासी तादात में श्रद्धालु पहुंचते हैं.

पढ़ें- विश्व पर्यटन दिवस: बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक की पहली पसंद बना जोधपुर

जो यहां आता है वो निराश होकर जाता है
खैर इसके अलावा और चीजे ढूंढने के लिए आप जितनी भी मशक्कत कर लें आपको यहां कुछ खास नजर नहीं आएगा. हां किले के जर्जर होते बुर्ज व दीवारें जरुर आपका ध्यान खींचती हैं. इतना भव्य किला होने के बावजूद शहरवासियों की उपेक्षा का शिकार ये किला कभी कभार अन्य वजहों से शहर में आये कुछ दूर-दराज के लोगों को जरूर दिख जाता है. लेकिन वे भी यहां आकर निराश ही होते हैं.

पढ़ें- विश्व पर्यटन दिवस: मानसून ने बदला बूंदी के पर्यटन स्थलों का स्वरूप...सारे कुंड-बावड़ियां लबालब

भटनेर के शासक देवराज की रानियों ने किया था जौहर
भटनेर प्रदेश के उन 3-4 गिने चुने किलों में शामिल है जहां शाका यानि जौहर हो चुका है. और ये शाका 479 ईस्वी में माना जाता है. जब उजबेक राजा ने इस किले पर इसलिए हमला किया था. क्योंकि यहां गजनी के शासक को शरण दी गई थी और उस हमले के वक्त भटनेर के शासक देवराज की रानियों ने जौहर किया था. खैर इस तथ्य को अलग भी छोड़ दें तो इस किले की प्राचीनता और तात्कालीन महत्तव के बारे में भी शायद ही किसी को पता हो. बहुत कम लोग हैं जो ये जानते हैं कि ये किला दिल्ली मुल्तान मार्ग पर पड़ने के कारण भी हमेशा आक्रांताओं की नजर में रहता था. कुल मिलाकर देखा जाये तो महान ऐतिहासिक महत्तव के इस दुर्ग की घोर अनदेखी हुई है और इसके लिए तमाम सरकारें व पुरातत्व विभाग ही उत्तरदायी हैं.

पढ़ें- विश्व पर्यटन दिवस पर राजस्थान में 'टूरिज्म एंड जॉब्स' थीम पर होगा सेलिब्रेशन... प्रदेशभर के संग्रहालयों में होगी फ्री एंट्री

शहर का हनुमानगढ़ नाम होने की पीछे ये है कहानी
हनुमानगढ़ में पुरातत्व विभाग का कोई दफ्तर न होने के चलते इस किले की वर्तमान हालत दयनीय है. इस किले के बारे में बहुत सी बातें जानने के बाद आपके मन में ये सवाल जरूर आएगा कि इतना ऐतिहासिक शहर होने के बावजूद इस शहर का वर्तमान नाम हनुमानगढ़ क्यूं है. तो उसके पीछे की कहानी ये है कि बीकानेर के राजा सूरत सिंह ने इस किले को 1805 में जीत लिया था और जीत का दिन मंगलवार होने के चलते इस शहर का नाम हनुमानगढ़ कर दिया गया. आज इस किले में कुछ स्थान तो ऐसे हैं जिन्हे जैसे तैसे करके गिरने से बचाया गया है. मिसाल के तौर पर तीसरे दरवाजे के पास की छत, कुछ स्थानों पर मरम्मत जारी है. एक छोटा सा पार्क भी विकसित किया जा रहा है. साथ ही कुछ बुर्ज मरम्मत के चलते नये से भी प्रतीत होने लगे हैं. लेकिन ये कोशिशें इस किले की आज तक हुई अनदेखी के सामने बहुत छोटी है.

हनुमानगढ़. राजस्थान में मौजूद किलों में से अगर किसी किले को राज्य सरकार, पुरातत्व विभाग या केंद्र सरकार की ओर से सबसे ज्यादा अनदेखा किया गया है तो वो है हनुमानगढ़ स्थित प्राचीन भटनेर दुर्ग. शहर के बीचों-बीच स्थित राजस्थान ही नहीं बल्कि मध्य एशिया का सबसे प्राचीन ये किला मानो मुकुट की तरह दिखाई देता है.

बदहाली के आंसू बहा रहा भटनेर दुर्ग

सरकारों की अनदेखी के साथ-साथ वक्त के थपेड़े खाते हुए भी सीना तान कर खड़ा है. इस किले का निर्माण 295 ईस्वी में भाटी नरेश भूपत के पुत्र अभय राव भाटी ने घग्गर नदी (प्राचीन सरस्वती नदी) के किनारे करवाया था. 52 बीघा क्षेत्रफल में फैले इस किले में 52 ही बुर्ज हैं और उस वक्त प्रत्येक बुर्ज के साथ एक कुआं भी था. भटनेर दुर्ग प्राचीन समय से ही देश के सबसे मजबूत किलों में से एक रहा है. इसकी प्रशंसा में तुर्क आक्रमणकारी तैमूर लंग ने अपनी जीवनी तुजूक-ए-तैमूरी में लिखा है कि उसने हिंदोस्तान में इतना मजबूत और सुरक्षित दुर्ग नहीं देखा.

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इस जंगी किले में 3 मुख्य द्वार हैं और घोड़ों के प्रवेश और चढ़ाई के लिए एक संकरा रास्ता है. प्राचीन समय से ही अपनी महत्वपूर्ण स्थिति के चलते ये किला तमाम आक्रमणों को झेलता रहा है और लगातार हमलों के चलते ही शायद यहां के भाटी राजाओं ने इस स्थान को त्याग दिया था और सुदूर पश्चिमी राजस्थान में लौद्रवा होते हुए जैसलमेर जाकर बस गए थे. वहां भी विश्व प्रसिद्ध सोनार किले का निर्माण करवाया.

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तैमूर और मुगल बादशाह अकबर का पसंदीदा किला
भटनेर के इतिहास और महत्व को जैसलमेर के प्रसिद्ध इतिहासकार नंद किशोर शर्मा ने भी बताया कि दुर्ग न सिर्फ तैमूर का बल्कि मुगल बादशाह अकबर का भी पसंदीदा किला रहा है. आईने अकबरी में इसका जिक्र है. यहां तक कि पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के मध्य हुआ तराईन का मशहूर युद्ध भी इसी किले के बिल्कुल नजदीक हुआ था. यही नहीं भारत की प्रथम महिला शासक रजिया सुल्ताना को भटिंडा के दुर्ग के साथ-साथ कुछ समय के लिए भटनेर के किले में भी कैद रखा गया था.

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खंडहर जैसा होता जा रहा ऐतिहासिक भटनेर दुर्ग
ये किला रामायण-महाभारत काल में भी अलग ढांचे में यहां विद्यमान था. तमाम महान शासकों के पसंदीदा इस किले की बदहाली का आभास इसमें प्रवेश करते ही होने लगता है. किले के दरवाजों को पार करके ऊपरी हिस्से में पहुंचते ही इसकी दयनीय हालत और भी उभरकर सामने आती है. किले के ऊपर मिट्टी का पठारनुमा खंडहर है जहां कभी महल आदि होने का अंदाजा लगाया जाता है. हालांकि इस खंडहर पर एक जैन मंदिर भी है जो अच्छी हालत में है. जैन मंदिर के साथ साथ किले पर और भी कुछ छोटे-छोटे मंदिर बने हैं. जहां त्योहार आदि के समय अच्छी खासी तादात में श्रद्धालु पहुंचते हैं.

पढ़ें- विश्व पर्यटन दिवस: बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक की पहली पसंद बना जोधपुर

जो यहां आता है वो निराश होकर जाता है
खैर इसके अलावा और चीजे ढूंढने के लिए आप जितनी भी मशक्कत कर लें आपको यहां कुछ खास नजर नहीं आएगा. हां किले के जर्जर होते बुर्ज व दीवारें जरुर आपका ध्यान खींचती हैं. इतना भव्य किला होने के बावजूद शहरवासियों की उपेक्षा का शिकार ये किला कभी कभार अन्य वजहों से शहर में आये कुछ दूर-दराज के लोगों को जरूर दिख जाता है. लेकिन वे भी यहां आकर निराश ही होते हैं.

पढ़ें- विश्व पर्यटन दिवस: मानसून ने बदला बूंदी के पर्यटन स्थलों का स्वरूप...सारे कुंड-बावड़ियां लबालब

भटनेर के शासक देवराज की रानियों ने किया था जौहर
भटनेर प्रदेश के उन 3-4 गिने चुने किलों में शामिल है जहां शाका यानि जौहर हो चुका है. और ये शाका 479 ईस्वी में माना जाता है. जब उजबेक राजा ने इस किले पर इसलिए हमला किया था. क्योंकि यहां गजनी के शासक को शरण दी गई थी और उस हमले के वक्त भटनेर के शासक देवराज की रानियों ने जौहर किया था. खैर इस तथ्य को अलग भी छोड़ दें तो इस किले की प्राचीनता और तात्कालीन महत्तव के बारे में भी शायद ही किसी को पता हो. बहुत कम लोग हैं जो ये जानते हैं कि ये किला दिल्ली मुल्तान मार्ग पर पड़ने के कारण भी हमेशा आक्रांताओं की नजर में रहता था. कुल मिलाकर देखा जाये तो महान ऐतिहासिक महत्तव के इस दुर्ग की घोर अनदेखी हुई है और इसके लिए तमाम सरकारें व पुरातत्व विभाग ही उत्तरदायी हैं.

पढ़ें- विश्व पर्यटन दिवस पर राजस्थान में 'टूरिज्म एंड जॉब्स' थीम पर होगा सेलिब्रेशन... प्रदेशभर के संग्रहालयों में होगी फ्री एंट्री

शहर का हनुमानगढ़ नाम होने की पीछे ये है कहानी
हनुमानगढ़ में पुरातत्व विभाग का कोई दफ्तर न होने के चलते इस किले की वर्तमान हालत दयनीय है. इस किले के बारे में बहुत सी बातें जानने के बाद आपके मन में ये सवाल जरूर आएगा कि इतना ऐतिहासिक शहर होने के बावजूद इस शहर का वर्तमान नाम हनुमानगढ़ क्यूं है. तो उसके पीछे की कहानी ये है कि बीकानेर के राजा सूरत सिंह ने इस किले को 1805 में जीत लिया था और जीत का दिन मंगलवार होने के चलते इस शहर का नाम हनुमानगढ़ कर दिया गया. आज इस किले में कुछ स्थान तो ऐसे हैं जिन्हे जैसे तैसे करके गिरने से बचाया गया है. मिसाल के तौर पर तीसरे दरवाजे के पास की छत, कुछ स्थानों पर मरम्मत जारी है. एक छोटा सा पार्क भी विकसित किया जा रहा है. साथ ही कुछ बुर्ज मरम्मत के चलते नये से भी प्रतीत होने लगे हैं. लेकिन ये कोशिशें इस किले की आज तक हुई अनदेखी के सामने बहुत छोटी है.

Intro:एंकर:- ईटीवी में आज हम आपको दिखाते हैं ...हनुमानगढ़ के एतिहासिक दुर्ग भटनेर की गाथा ...जी हाँ आप में से अधिकतर लोगों ने शायद इस किले का नाम भी न सुना हो...लेकिन आपको ये जानकर ताज्जुब होगा कि ये किला न सिर्फ अकबर व तैमूर जैसे शासकों का पसंदीदा था...बल्कि देश का सबसे पुराना किला भी है....

Body:राजस्थान में मौजूद किलों में से अगर किसी किले को राज्य सरकार, पुरातत्व विभाग या केंद्र सरकार की ओर से सबसे अधिक अनदेखा किया गया है वो है हनुमानगढ़ स्थित प्राचीन भटनेर दुर्ग...शहर के बीचों बीच स्थित राजस्थान ही नहीं अपितु मध्य एशिया का सबसे प्राचीन ये किला किसी मुकुट की तरहं दिखाई देता है...और सरकारों की अनदेखी के साथ साथ वक्त के थपेड़े खाते हुए भी सीना तान कर खड़ा है...इस किले का निर्माण 295 ईस्वी में भाटी नरेश भूपत के पुत्र अभय राव भाटी ने घग्गर नदी (प्राचीन सरस्वती नदी) के किनारे करवाया था...52 बीघा क्षेत्रफल में फैले इस किले में 52 ही बुर्ज हैं...और उस वक्त प्रत्येक बुर्ज के साथ एक कुआँ भी था.. भटनेर दुर्ग प्राचीन समय से ही देश के सबसे मज़बूत किलों में से एक रहा है...इसकी प्रशंसा में तुर्क आक्रमणकारी तैमूर लंग ने अपनी जीवनी तुजूक ए तैमूरी में लिखा है कि उसने हिंदोस्तान में इतना मज़बूत और सुरक्षित दुर्ग नहीं देखा...इस जंगी किले में 3 मुख्य द्वार हैं और घोड़ों के प्रवेश व चढाई के लिए एक संकरा रास्ता है.....प्राचीन समय से ही अपनी महत्वपूर्ण स्थिति के चलते ये किला तमाम आक्रमणों को झेलता रहा है...और लगातार हमलों के चलते ही शायद यहां के भाटी राजाओं ने इस स्थान को त्याग दिया था और सुदूर पश्चिमी राजस्थान में लौद्रवा होते हुए जैसलमेर जाकर बस गए थे और वहां भी विश्व प्रसिद्ध सोनार किले का निर्माण करवाया....भटनेर के इतिहास व महत्व को जैसलमेर के प्रसिद्ध इतिहासकार नंद किशोर शर्मा जी कुछ इस तरहं बयान करते हैं....

बाईट- नंद किशोर शर्मा (जैसलमेर के प्रसिद्ध इतिहासकार)फाइल बाईट

ये दुर्ग न सिर्फ तैमूर का बल्कि मुगल बादशाह अकबर का भी पसंदीदा किला रहा है...आईने अकबरी में इसका ज़िक्र है...यहां तक कि पृथ्वीराज चौहान व मुहम्मद गौरी के मध्य हुए तराईन के मशहूर युद्ध भी इसी किले के बिल्कुल नज़दीक हुए थे...यही नहीं भारत की प्रथम महिला शासक रज़िया सुल्ताना को भटिंडा के दुर्ग के साथ साथ कुछ समय के लिए भटनेर के किले में भी कैद रखा गया था.. ये किला रामायण-महाभारत काल में भी अलग ढांचे में यहां विद्यमान था....तमाम महान शासकों के पसंदीदा इस किले की बदहाली का आभास इसमें प्रवेश करते ही होने लगता है....किले के दरवाज़ों को पार करके ऊपरी हिस्से में पहुंचते ही इसकी दयनीय हालत और भी उभरकर सामने आती है...किले के ऊपर मिट्टी का पठारनुमा खंडहर है जहां कभी महल आदि होने का अंदाज़ा लगाया जाता है....हालांकि इस खंडहर पर एक जैन मंदिर भी है जो अच्छी हालत में है....जैन मंदिर के साथ साथ किले पर और भी कुछ छोटे छोटे मंदिर बने हैं जहां त्यौहार आदि के समय अच्छी खासी तादात में श्रद्दालू पहुंचते हैं....खैर इसके अलावा और चीज़ें ढूंढने के लिए आप जितनी भी मशक्कत कर लें आपको यहां कुछ खास नज़र नहीं आयेगा....हां किले के ज़र्जर होते बुर्ज व दीवारें ज़रूर आपका ध्यान खींचती हैं....इतना भव्य किला होने के बावजूद शहरवासियों की उपेक्षा का शिकार ये किला कभी कभार अन्य वजहों से शहर में आये कुछ दुर दराज़ के लोगों को ज़रूर दिख जाता है लेकिन वे भी यहां आकर निराश ही होते हैं...
बाईट 1देवेन्द्र राठौड़,नागरिक
बाईट 2 पवन कुमार,नागरिक

कोई बड़ी बात नहीं कि भटनेर किले के बारे में जो बातें हमने अब तक बताई हैं वे शायद राजस्थान के इतिहास की सामान्य किताबों में आपको कभी नज़र न आई हों...जी हां बात ही एसी है कि राजस्थान के इतिहास की उच्च शिक्षा से जुड़ी इक्का दुक्का किताबों को छोड़ दें तों भटनेर के साथ प्रदेश के इतिहासकारों ने भी न्याय नहीं किया है...भटनेर प्रदेश के उन 3-4 गिने चुने किलों में शामिल है जहां शाका यानि जौहर हो चुका है...और ये शाका 479 इस्वी में माना जाता है जब उज़बेक राजा ने इस किले पर इसलिए हमला किया था क्योंकि यहां गजनी के शासक को शरण दी गई थी...और उस हमले के वक्त भटनेर के शासक देवराज की रानियों ने जौहर किया था...खैर इस तथ्य को अलग भी छोड़ दें तो इस किले की प्राचीनता और तात्कालीन महत्तव के बारे में भी शायद ही किसी को पता हो...बहुत कम लोग हैं जो ये जानते हैं कि ये किला दिल्ली मुल्तान मार्ग पर पड़ने के कारण भी हमेशा आक्रांताओं की नज़र में रहता था...कुल मिलाकर देखा जाये तो महान एतिहासिक महत्तव के इस दुर्ग की घोर अनदेखी हुई है और इसके लिए तमाम सरकारें व पुरातत्व विभाग ही उत्तरदायी हैं...
p2c: गुलाम नबी


Conclusion:हनुमानगढ़ में पुरातत्व विभाग का कोई दफ्तर न होने के चलते इस किले की वर्तमान हालत दयनीय है , इस किले के बारे में बहुत सी बातें जानने के बाद आपके मन में ये सवाल ज़रूर आएगा कि इतना एतिहासिक शहर होने के बावजूद इस शहर का वर्तमान नाम हनुमानगढ़ क्यूं है...तो उसके पीछे की कहानी ये है कि बीकानेर के राजा सूरत सिंह ने इस किले को 1805 में जीत लिया था और जीत का दिन मंगलवार होने के चलते इस शहर का नाम हनुमानगढ़ कर दिया गया...खैर आखिर में हम आपको ये ज़रूर बता दें कि आज इस किले में कुछ स्थान तो एसे हैं जिन्हे जैसे तैसे करके गिरने से बचाया गया है...मिसाल के तौर पर तीसरे दरवाज़े के पास की छत...कुछ स्थानों पर मरम्मत जारी है...एक छोटा सा पार्क भी विकसित किया जा रहा है....और कुछेक बुर्ज मरम्मत के चलते नये से भी प्रतीत होने लगे हैं.... लेकिन ये कोशिशें इस किले की आज तक हुई अनदेखी के सामने बहुत छोटी हैं...
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