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SPECIAL : मजहबी एकता की अनोखी शिला : हिंदू इसे माता कहता है और मुस्लिम पीर...सभी के रोग दूर करती है 'शिला पीर' - हनुमानगढ़ की ताजा खबरें

राजस्थान के हनुमानगढ में एक ऐसी जगह है जो हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई की एकता और भाईचारे की शानदार अनूठी और मिसाल पेश करती है. खास बात ये कि इस जगह पर न तो मंदिर है, न ही मस्जिद और न ही गुरुद्वारा. लेकिन यहां सुबह-शाम राम नाम की गूंज और अल्लाह की इबादत एक साथ सुनाई देती है.

Shila Pir in Hanumangarh, symbol of religious unity in hanumangarh,  Latest news of Hanumangarh
शिला पीर नाम का यह स्थल है धार्मिक एकता की निशानी
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Published : Feb 26, 2021, 7:50 PM IST

हनुमानगढ़. देश की एकता, अखंडता और भाईचारे के प्रतीक रह-रहकर सामने आते हैं और हमें यह समझाने की कोशिश करते हैं कि हमारे धर्म, मजहब, बोली, भाषा, क्षेत्र भले अलग हों, लेकिन यह विभिन्नता ही हमारी एकता की निशानी है. अनेकता में एकता ही भारत की पहचान है. इस पहचान को पुख्ता करता है हनुमानगढ़ का शिला पीर. देखिये यह खास रिपोर्ट...

यहां सब का मालिक एक है...

राजस्थान के हनुमानगढ में एक ऐसी जगह है जो हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई की एकता और भाईचारे की शानदार अनूठी और मिसाल पेश करती है. खास बात ये कि इस जगह पर न तो मंदिर है, न ही मस्जिद और न ही गुरुद्वारा. लेकिन यहां सुबह-शाम राम नाम की गूंज और अल्लाह की इबादत एक साथ सुनाई देती है. गंगा-जमुना की तहजीब को बयां करती ये तस्वीरें देखकर बरबस ही आप इस मजहबी एकता के कायल हो जाएंगे.

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यहां सभी धर्मों के लोग साथ करते हैं पूजा

हनुमानगढ टाउन के मुख्य बस स्टैंड के पास स्थित है शिला पीर माता मंदिर. जहां सब धर्मों के अनुयायी अपने त्वचा सबंधी रोगों के निवारण के लिए शीश नवाने आते हैं. एक तरफ जहां कुछ लोग अपने धर्म को श्रेष्ठ बताते हुए अन्य धर्म की आलोचना करते दिखते हैं. धर्म के नाम पर मर-मिटने को तैयार रहते हैं. तो वहीं कुछ मौकापरस्त निजी हितों के लिए धर्म के नाम पर सियासी रोटियां सेंकते हुए वोटों की फसल काटते नजर आ जाते हैं.

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धार्मिक एकता की निशानी है शिला पीर

पढ़ें- मजदूर के हाथ खजाना : धौलपुर में पुरानी हवेली की खुदाई में मिले 300 साल पुराने चांदी के सिक्के...मजदूर ले भागा कलश

दूसरी तरफ ये स्थान हिंदू-मुसलमानों और सिखों की साझा विरासत का प्रतीक बन गया है. उनके भाईचारे, भरोसे और एकता का प्रतीक बन गया है. इस जगह पर आते-आते सभी धर्मों का फर्क मिट जाता है. हनुमानगढ टाउन के मुख्य बस स्टैंड के पास में शिला पीर माता के नाम से एक पत्थर स्थापित है.

हिंदू-सिख इसे शिला माता के नाम से पूजते हैं तो वहीं मुसलमान इस शिला को पीर मानकर सजदा करते हैं. शिला पीर को लेकर बड़ी मान्यताएं हैं. माना जाता है कि यहां त्वचा सबंधी रोगों से मुक्ति मिलती है. इसी मान्यता को लेकर यहां श्रद्धालु नमक, झाड़ू और कच्चा दूध चढ़ाते हैं.

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हिंदू-मुस्लिम साथ मिलकर करते हैं पूजा उपासना

यह भी मान्यता है कि इस शिला पीर के ऊपर जब-जब छत डालने की कोशिश की गई, तब-तब असफलता ही हाथ लगी. हर गुरुवार को यहां मेला भी भरता है. शिला पीर के कुछ ही दायरे में प्राचीन गुरुद्वारा और चार मंदिर भी हैं.

जो श्रद्धालु मंदिर में पूजा करने आते हैं वो शिला पीर पर शीश नवाने जरूर जाते हैं. इसी तरह गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाने वाले श्रद्धालु भी यहां आते हैं और बुतपरस्ती के खिलाफ होने के बावजूद बड़ी तादाद में मुस्लिम अकीदतमंद भी यहां आते हैं और शिला की उपासना करते हैं.

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सिख धर्म के लोगों की भी है मान्यता

भद्रकाली मंदिर के पुजारी श्याम सुंदर शर्मा और शिला माता पीर के बाबा यासीन खान आपको यहां एक साथ मंदिर में पूजा करते दिख जाएंगे. वे देश में अमन-चैन की अपील करते हुए कहते हैं कि हनुमानगढ में इस स्थान पर देश-दुनिया से हर धर्म के श्रद्धालु बिना किसी भेदभाव के सजदा और पूजा करने आते हैं. इससे हम सबको सीख लेनी चाहिए.

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शिला पीर नाम का यह स्थल है धार्मिक एकता की निशानी

पढ़ें- हनी ट्रैप मर्डर केस के आरोपी दीक्षांत की जमानत अर्जी हाईकोर्ट से खारिज

क्षेत्र के प्रबुद्ध नागरिक सरकार से इस ओर सकरात्मक कदम उठाने की बात कहते हैं. पेशे से शिक्षिका शालिनी भारद्वाज का मानना है कि देश में धार्मिक एकता और सद्भावना को बचाए रखने और धार्मिक एकता को बढ़ावा देने के लिए इस तरह के स्थलों को पुस्तकों और पाठ्यक्रमों में जगह देनी चाहिए.

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शिला को हिंदू माता मानकर पूजते हैं, मुस्लिम मानते हैं पीर

स्थल को लेकर है किंवदंती

इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि महाराजा गंगासिंह के समय ये सिला प्राचीन नदी सरस्वती से सबन्धित घग्गर नहर में बहकर यहां तक आई थी. महाराज ने इस शिला को यहीं स्थापित करवा दिया था. अठारहवीं शताब्दी से स्थापित इस शिला की पूजा हिंदू, सिख और मुस्लिम सभी धर्मों के श्रद्धालु करते आए. शिला पीर के सामने मां भद्रकाली, बाबा रामदेव और शिव का मंदिर है. पास शहीद बाबा सुखासिंह महताब सिंह का गुरुद्वारा है.

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दूर दूर से लोग त्वचा संबंधी रोगों को दूर करने की मन्नत लेकर आते हैं

क्षेत्र के इतिहासकार बताते हैं कि सिखों के गुरु बाबा सुखासिंह,महताब सिंह हनुमानगढ़ से गुजर रहे थे. तो एक पेड़ के नीचे विश्राम करते के लिए रुक गए. उनके नाम पर यह गुरुद्वारा है. भादो में यहां मेला भरता है और सभी धर्मों के लोग इसमें शामिल होते हैं.

हनुमानगढ़. देश की एकता, अखंडता और भाईचारे के प्रतीक रह-रहकर सामने आते हैं और हमें यह समझाने की कोशिश करते हैं कि हमारे धर्म, मजहब, बोली, भाषा, क्षेत्र भले अलग हों, लेकिन यह विभिन्नता ही हमारी एकता की निशानी है. अनेकता में एकता ही भारत की पहचान है. इस पहचान को पुख्ता करता है हनुमानगढ़ का शिला पीर. देखिये यह खास रिपोर्ट...

यहां सब का मालिक एक है...

राजस्थान के हनुमानगढ में एक ऐसी जगह है जो हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई की एकता और भाईचारे की शानदार अनूठी और मिसाल पेश करती है. खास बात ये कि इस जगह पर न तो मंदिर है, न ही मस्जिद और न ही गुरुद्वारा. लेकिन यहां सुबह-शाम राम नाम की गूंज और अल्लाह की इबादत एक साथ सुनाई देती है. गंगा-जमुना की तहजीब को बयां करती ये तस्वीरें देखकर बरबस ही आप इस मजहबी एकता के कायल हो जाएंगे.

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यहां सभी धर्मों के लोग साथ करते हैं पूजा

हनुमानगढ टाउन के मुख्य बस स्टैंड के पास स्थित है शिला पीर माता मंदिर. जहां सब धर्मों के अनुयायी अपने त्वचा सबंधी रोगों के निवारण के लिए शीश नवाने आते हैं. एक तरफ जहां कुछ लोग अपने धर्म को श्रेष्ठ बताते हुए अन्य धर्म की आलोचना करते दिखते हैं. धर्म के नाम पर मर-मिटने को तैयार रहते हैं. तो वहीं कुछ मौकापरस्त निजी हितों के लिए धर्म के नाम पर सियासी रोटियां सेंकते हुए वोटों की फसल काटते नजर आ जाते हैं.

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धार्मिक एकता की निशानी है शिला पीर

पढ़ें- मजदूर के हाथ खजाना : धौलपुर में पुरानी हवेली की खुदाई में मिले 300 साल पुराने चांदी के सिक्के...मजदूर ले भागा कलश

दूसरी तरफ ये स्थान हिंदू-मुसलमानों और सिखों की साझा विरासत का प्रतीक बन गया है. उनके भाईचारे, भरोसे और एकता का प्रतीक बन गया है. इस जगह पर आते-आते सभी धर्मों का फर्क मिट जाता है. हनुमानगढ टाउन के मुख्य बस स्टैंड के पास में शिला पीर माता के नाम से एक पत्थर स्थापित है.

हिंदू-सिख इसे शिला माता के नाम से पूजते हैं तो वहीं मुसलमान इस शिला को पीर मानकर सजदा करते हैं. शिला पीर को लेकर बड़ी मान्यताएं हैं. माना जाता है कि यहां त्वचा सबंधी रोगों से मुक्ति मिलती है. इसी मान्यता को लेकर यहां श्रद्धालु नमक, झाड़ू और कच्चा दूध चढ़ाते हैं.

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हिंदू-मुस्लिम साथ मिलकर करते हैं पूजा उपासना

यह भी मान्यता है कि इस शिला पीर के ऊपर जब-जब छत डालने की कोशिश की गई, तब-तब असफलता ही हाथ लगी. हर गुरुवार को यहां मेला भी भरता है. शिला पीर के कुछ ही दायरे में प्राचीन गुरुद्वारा और चार मंदिर भी हैं.

जो श्रद्धालु मंदिर में पूजा करने आते हैं वो शिला पीर पर शीश नवाने जरूर जाते हैं. इसी तरह गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाने वाले श्रद्धालु भी यहां आते हैं और बुतपरस्ती के खिलाफ होने के बावजूद बड़ी तादाद में मुस्लिम अकीदतमंद भी यहां आते हैं और शिला की उपासना करते हैं.

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सिख धर्म के लोगों की भी है मान्यता

भद्रकाली मंदिर के पुजारी श्याम सुंदर शर्मा और शिला माता पीर के बाबा यासीन खान आपको यहां एक साथ मंदिर में पूजा करते दिख जाएंगे. वे देश में अमन-चैन की अपील करते हुए कहते हैं कि हनुमानगढ में इस स्थान पर देश-दुनिया से हर धर्म के श्रद्धालु बिना किसी भेदभाव के सजदा और पूजा करने आते हैं. इससे हम सबको सीख लेनी चाहिए.

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पढ़ें- हनी ट्रैप मर्डर केस के आरोपी दीक्षांत की जमानत अर्जी हाईकोर्ट से खारिज

क्षेत्र के प्रबुद्ध नागरिक सरकार से इस ओर सकरात्मक कदम उठाने की बात कहते हैं. पेशे से शिक्षिका शालिनी भारद्वाज का मानना है कि देश में धार्मिक एकता और सद्भावना को बचाए रखने और धार्मिक एकता को बढ़ावा देने के लिए इस तरह के स्थलों को पुस्तकों और पाठ्यक्रमों में जगह देनी चाहिए.

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शिला को हिंदू माता मानकर पूजते हैं, मुस्लिम मानते हैं पीर

स्थल को लेकर है किंवदंती

इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि महाराजा गंगासिंह के समय ये सिला प्राचीन नदी सरस्वती से सबन्धित घग्गर नहर में बहकर यहां तक आई थी. महाराज ने इस शिला को यहीं स्थापित करवा दिया था. अठारहवीं शताब्दी से स्थापित इस शिला की पूजा हिंदू, सिख और मुस्लिम सभी धर्मों के श्रद्धालु करते आए. शिला पीर के सामने मां भद्रकाली, बाबा रामदेव और शिव का मंदिर है. पास शहीद बाबा सुखासिंह महताब सिंह का गुरुद्वारा है.

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दूर दूर से लोग त्वचा संबंधी रोगों को दूर करने की मन्नत लेकर आते हैं

क्षेत्र के इतिहासकार बताते हैं कि सिखों के गुरु बाबा सुखासिंह,महताब सिंह हनुमानगढ़ से गुजर रहे थे. तो एक पेड़ के नीचे विश्राम करते के लिए रुक गए. उनके नाम पर यह गुरुद्वारा है. भादो में यहां मेला भरता है और सभी धर्मों के लोग इसमें शामिल होते हैं.

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