हनुमानगढ़. जहां राज्य और केंद्र सरकार देश को स्वच्छता के तहत 'खुले में शौच मुक्त' बनाने के लिए प्रयासरत है. वहीं हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय की बात करें तो यहां करीब डेढ़ लाख की आबादी है. मुख्यालय होने की वजह से रोजाना यहां से हजारों लोगों का आना-जाना लगा रहता है. लेकिन यहां शौचालय नाम की कोई चीज नहीं है, जो है भी वह नाममात्र है.
आपको बता दें कि 'स्वच्छता मिशन' के तहत जिला मुख्यालय पर केंद्र सरकार की तरफ से नगर परिषद द्वारा आठ सार्वजनिक शौचालय स्वीकृति हुए थे, जिसमें अभी पांच ही बन पाए हैं. जो कुछ ही अच्छी कंडीशन में हैं. लेकिन बात करें मुख्य सार्वजनिक जगहों और वार्डों की तो काफी जगह तो शौचालय बने ही नहीं. जहां बने भी हैं, उनके हालात इतने खस्ता हैं कि वहां खड़े होना भी मुश्किल है.
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वहीं जिला मुख्यालय पर शौचालय निर्माण और सुधार को लेकर नागरिक कई बार नगर परिषद और प्रशासन से मांग भी कर चुके हैं. जब इस संबंध में नगर परिषद कमिश्नर शलेन्द्र गोदारा से बात की गई तो उन्होंने वही सरकारी रटा-रटाया जवाब हाजिर कर दिया. जहां-जहां सार्वजनिक शौचालय नहीं है, वहां-वहां शीघ्र शौचालयों का निर्माण करवाया जाएगा.
खूब खर्च हुई रकम
हालांकि नगर परिषद द्वारा खुले में शौच और साफ-सफाई के प्रति जागरूकता को लेकर पोस्टरों व बैनरों पर तो लाखों रुपए खर्च कर दिए गए. लेकिन धरातल की बात करें तो जंक्शन और टाउन के वार्ड- 17, वार्ड- 36, वार्ड- 42, सिविल लाइन, जिला कलेक्टर मार्ग, न्यायालय मार्ग, सुरेशिया, इलाका खुंजा और शिव मंदिर सिनेमा मार्ग आदि क्षेत्र में सार्वजनिक शौचालय नहीं हैं और जो बने भी हैं, उन पर ताले लगे हुए हैं.
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सिविल लाइन की भी स्थिति दर से बदतर
सबसे बड़ी बात की सिविल लाइन जो शहर की सबसे पॉश कॉलोनी है. जहां सरकारी कर्मचारियों से लेकर जिला न्यायाधीश, जिला कलेक्टर और सभापति आदि के सरकारी आवास हैं. वहां भी सार्वजनिक शौचालयों का टोटा है. यानि कि कुल मिलाकर बात करें तो जिला मुख्यालय पर शौचालय निर्माण और सुचारू रूप से चलने की तो स्थिति बिल्कुल बेकार है. कई जगहों पर शौचालयों के दरवाजे टूटे हुए हैं और गंदगी तो इतनी है कि इनका उपयोग करना किसी सजा से कम नहीं है.
महिलाओं के लिए नहीं है कोई सुविधा
महिलाओं के लिए अलग से शौचालय की सुविधा न होने की वजह से खुले में शौच करने की वजह से उनको काफी दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं. खुले में लघुशंका कर रहे लोगों का तर्क है कि शौचालय की सुविधा ही नहीं है तो वे क्या करे? कहीं न कहीं कुछ हद तक ये तर्क भी प्रसांगिक है. शहरी इलाकों में सार्वजनिक शौचालयों तस्वीर बदहाल है तो सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि ग्रामीण अंचल की स्थिति क्या होगी.
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इस मामले की तह तक जाने पर पता चला कि हनुमानगढ़ के सात निजी स्कूलों में छात्राओं के लिए अलग से शौचालय तक नहीं है. ऐसे में इन स्कूलों की मान्यता तक रद्द हो सकती है. ऐसे में अब देखने वाली बात होगी कि, 74वां आजादी दिवस मना रहे लोगों को इस खुले शौच से कब आजादी मिलेगी. साथ ही स्थानीय प्रशासन और नगर परिषद अधिकारी इस सामाजिक समस्या से आमजन को कब तक निजात दिलवाते हैं.