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हनुमानगढ़: ऐसे में कोरोना से कैसे लड़ेगा और जीतेगा इंडिया, खुले में फेंका जा रहा है बायो वेस्ट

हनुमानगढ़ में बायो मेडिकल वेस्ट को खुले में फेंका जा रहा है. सरकारी और निजी अस्पतालों में इसका गाइडलाइन के तहत निस्तारण नहीं किया जा रहा है. जिससे कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है. वहीं प्रशासनिक अधिकारी आंख मूंद कर बैठे हुए हैं.

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बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण में लापरवाही
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Published : Dec 16, 2020, 4:57 AM IST

हनुमानगढ़. प्रदेश में कोरोना संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है. सरकार और प्रशासन की तरफ से लगातार आमजन को समझाने के लिए जागरुकता अभियान चलाए जा रहे हैं. लेकिन जब जिम्मेदार ही लापरवाही करने लगें तो कोरोना संक्रमण को कैसे रोका जाए. हनुमानगढ़ में सरकारी और निजी अस्पताल और लैब संचालक लगातार बायो मेडिकल वेस्ट (चिकित्सीय जैविक अपशिष्ट) खुले में फेंक रहे हैं. जिससे कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा लगातार बना हुआ है.

बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण में लापरवाही

जिला मुख्यालय और पीलीबंगा क्षेत्र में सरकारी अस्पताल के परिसर में ही बायो मेडिकल वेस्ट डाला जा रहा है. निजी अस्पताल और डायग्नोस्टिक लैब वाले बायोवेस्ट कचरा खुले में फेंक रहे हैं. जहां पशु, पक्षी दिनभर मंडराते रहते हैं. आम लोगों के लिए यह लापरवाही भारी पड़ सकती है. बायो वेस्ट से कोरोना संक्रमण फैलने का सबसे ज्यादा खतरा रहता है. बावजूद इसके अस्पताल इसको लेकर संजीदा नहीं हैं. सबसे अधिक खतरा कचरा बिनने वाले बच्चों को इससे है.

पढ़ें: 8 साल में 200 लोगों को निगल गई नर्मदा, फिर भी नहीं चेत रहा प्रशासन

केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से बायो वेस्ट के लिए बाकायदा गाइडलाइन जारी की गई हैं कि कैसे और कहां बायो वेस्ट का निस्तारण करना है. जिससे की कोरोना संक्रमण का खतरा ना हो. पीलीबंगा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भी खुले में बायो वेस्ट फेंका जा रहा है. आम लोगों का कहना है कि जब अस्पताल को इसके लिए टोका जाता है तो वो एक दो दिन ढंग से इसका निस्तारण करते हैं बाद में फिर से खुले में फेंकना शुरू कर देते हैं.

अस्पताल परिसर के आसपास प्रयोग किए हुए मास्क, सिरिंज, दवाइयां, खून से सनी पट्टियां, खाली ग्लूकोज की बोतलें, टिश्यू पेपर आदि पड़े हुए हैं या इसे वे नगर परिषद की कचरा संग्रहन पात्र में ही डाल देते हैं. बायो वेस्ट के निस्तारण के निर्धारित प्रोटोकाल का पालन नहीं किया जा रहा है. बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट एंड हैंडलिग एक्ट 1998 संशोधित 2016 के तहत 5 वर्ष की सजा व जुर्माने तक का प्रावधान है. लेकिन ना तो नगरपरिषद की तरफ से ना ही स्वास्थ्य विभाग व प्रशासन की तरफ से कोई प्रभावी कार्रवाई जिले में नहीं हुई है.

जब अधिकारियों से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वो जल्द ही इस मामले को संज्ञान में लेकर कार्रवाई करेंगे. बायो वेस्ट के निस्तारण के लिए सरकार की तरफ से एक निजी कम्पनी से अनुबंध कर कचरा संग्रहन करने व निस्तारण के लिए गाड़िया व डंपिंग स्टेशन भी लगाए गए हैं और इसका मंथली चार्ज रखा गया है. लेकिन थोड़े से पैसे बचाने के चलते अस्पताल वाले आम लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं.

ऐसे ने सवाल खड़ा होता है कि कोरोना गाइडलाइन की पालना केवल आम लोगों की ही है अस्पताल में काम करने वाले कर्मचारियों की नहीं. नियमों की पालना नहीं करने पर आम लोगों का चालान काटा जाता है. लेकिन खुले में बायो वेस्ट फेंकने वालों को सजा तो दूर टोका तक नहीं जा रहा.

हनुमानगढ़. प्रदेश में कोरोना संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है. सरकार और प्रशासन की तरफ से लगातार आमजन को समझाने के लिए जागरुकता अभियान चलाए जा रहे हैं. लेकिन जब जिम्मेदार ही लापरवाही करने लगें तो कोरोना संक्रमण को कैसे रोका जाए. हनुमानगढ़ में सरकारी और निजी अस्पताल और लैब संचालक लगातार बायो मेडिकल वेस्ट (चिकित्सीय जैविक अपशिष्ट) खुले में फेंक रहे हैं. जिससे कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा लगातार बना हुआ है.

बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण में लापरवाही

जिला मुख्यालय और पीलीबंगा क्षेत्र में सरकारी अस्पताल के परिसर में ही बायो मेडिकल वेस्ट डाला जा रहा है. निजी अस्पताल और डायग्नोस्टिक लैब वाले बायोवेस्ट कचरा खुले में फेंक रहे हैं. जहां पशु, पक्षी दिनभर मंडराते रहते हैं. आम लोगों के लिए यह लापरवाही भारी पड़ सकती है. बायो वेस्ट से कोरोना संक्रमण फैलने का सबसे ज्यादा खतरा रहता है. बावजूद इसके अस्पताल इसको लेकर संजीदा नहीं हैं. सबसे अधिक खतरा कचरा बिनने वाले बच्चों को इससे है.

पढ़ें: 8 साल में 200 लोगों को निगल गई नर्मदा, फिर भी नहीं चेत रहा प्रशासन

केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से बायो वेस्ट के लिए बाकायदा गाइडलाइन जारी की गई हैं कि कैसे और कहां बायो वेस्ट का निस्तारण करना है. जिससे की कोरोना संक्रमण का खतरा ना हो. पीलीबंगा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भी खुले में बायो वेस्ट फेंका जा रहा है. आम लोगों का कहना है कि जब अस्पताल को इसके लिए टोका जाता है तो वो एक दो दिन ढंग से इसका निस्तारण करते हैं बाद में फिर से खुले में फेंकना शुरू कर देते हैं.

अस्पताल परिसर के आसपास प्रयोग किए हुए मास्क, सिरिंज, दवाइयां, खून से सनी पट्टियां, खाली ग्लूकोज की बोतलें, टिश्यू पेपर आदि पड़े हुए हैं या इसे वे नगर परिषद की कचरा संग्रहन पात्र में ही डाल देते हैं. बायो वेस्ट के निस्तारण के निर्धारित प्रोटोकाल का पालन नहीं किया जा रहा है. बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट एंड हैंडलिग एक्ट 1998 संशोधित 2016 के तहत 5 वर्ष की सजा व जुर्माने तक का प्रावधान है. लेकिन ना तो नगरपरिषद की तरफ से ना ही स्वास्थ्य विभाग व प्रशासन की तरफ से कोई प्रभावी कार्रवाई जिले में नहीं हुई है.

जब अधिकारियों से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वो जल्द ही इस मामले को संज्ञान में लेकर कार्रवाई करेंगे. बायो वेस्ट के निस्तारण के लिए सरकार की तरफ से एक निजी कम्पनी से अनुबंध कर कचरा संग्रहन करने व निस्तारण के लिए गाड़िया व डंपिंग स्टेशन भी लगाए गए हैं और इसका मंथली चार्ज रखा गया है. लेकिन थोड़े से पैसे बचाने के चलते अस्पताल वाले आम लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं.

ऐसे ने सवाल खड़ा होता है कि कोरोना गाइडलाइन की पालना केवल आम लोगों की ही है अस्पताल में काम करने वाले कर्मचारियों की नहीं. नियमों की पालना नहीं करने पर आम लोगों का चालान काटा जाता है. लेकिन खुले में बायो वेस्ट फेंकने वालों को सजा तो दूर टोका तक नहीं जा रहा.

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