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Kali Bai Bheel: शिक्षकों को बचाने 12 साल की आदिवासी बाला ने दी थी जान, अंग्रेजों ने किया था गोलियों से छलनी

राजस्थान की भूमि वैसे तो कई वीर, शहीदों और योद्धाओं के नाम से जानी और पहचानी (Heroic saga of Veer Bala Kali Bai) जाती है. रानी लक्ष्मी बाई, रानी पद्मिनी की तरह ही वीरबाला काली बाई की वीरगाथा भी शौर्य और स्वाभिमान से ओतप्रोत है. 12 साल की एक आदिवासी बालिका वीरबाला काली बाई ने आजादी से पहले अंग्रेजों के जमाने में ही शिक्षा की ऐसी अलख जगाई जिसे आज देश ही नहीं पूरी दुनिया याद करती है. देखिए ये रिपोर्ट....

Veer Bala Kali Bai museum in Dungarpur
आज भी मशहूर है वीरबाला काली की 'वीरगाथा'
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Published : Jun 20, 2022, 6:02 AM IST

Updated : Jun 20, 2022, 5:08 PM IST

डूंगरपुर. आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले का रास्तापाल गांव, जहां 1935 में काली बाई का जन्म सोमा भाई के घर (Heroic saga of Veer Bala Kali Bai) में हुआ था. वीर बाला जन्म से ही होनहार थी. आदिवासी इलाके में अंग्रेजी हुकूमत के बढ़ते अत्याचार और पाबंदियों के बीच इसी गांव में सबसे पहला स्कूल खुला. गांव के केलूपोश घर में गुरुजी सेंगा भाई और नाना भाई खांट आसपास के बच्चों को पढ़ाने लगे. जैसे ही ये बात अंग्रेजी हुकूमत को पता लगी तो उन्होंने स्कूले खोलने पर पाबंदी लगा दी. स्कूल को बंद नहीं किया गया.

इस बात से नाराज अंग्रेज 19 जून 1947 को नानाभाई खांट की पाठशाला पहुंचे, जहां काली बाई समेत (Veer Bala Kali Bai museum in Dungarpur) कई बच्चे पढ़ते थे. स्कूल में नाना भाई खांट और सेंगा भाई दोनों ही मौजूद थे. अंग्रेजों ने दोनों से स्कूल बंद करने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने बात मानने से साफ इनकार कर दिया. इस पर अंग्रेजो ने दोनों को बंदूक से मारा. स्कूल से बाहर निकालने के बाद अंग्रेजो ने दरवाजे पर ताला लगा दिया. इस बात का दोनों गुरुओं ने विरोध किया तो सेंगा भाई को अंग्रेजो की पुलिस जीप के पीछे बांधकर उन्हें घसीटते हुए ले जाने लगे.

आज भी मशहूर है वीरबाला काली की 'वीरगाथा'

उसी समय खेतों से घास लेकर आ रही काली बाई ने अपने गुरुजी सेंगा भाई को पुलिस जीप के पीछे बंधा घसीटता हुआ देखा. काली ने घास का ढेर नीचे फेंका और अपने गुरू को बचाने दौड़ पड़ी. उसने घास काटने की दांतली से गुरुजी संगा भाई से बंधी रस्सी को काट दिया. इससे नाराज अंग्रेजो ने काली बाई को गोलियों से भून दिया. वहीं सेंगा भाई पर भी गोलियां चलाई. गांव में शिक्षा को बचाने और अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में उस दिन दोनों शहीद हो गए. इसके बाद से काली बाई को शिक्षा की देवी माना जाने लगा, जिसने अंग्रेजों से लोहा लेते हुए आदिवासी अंचल में शिक्षा के लिए अपनी जान तक न्यौछावर कर दी.

पढ़ें. 23 अप्रैल : वीर कुंवर सिंह ने 80 साल की उम्र में भी अंग्रेजों के उड़ा दिए थे होश

काली बाई के नाम पर शहर में कॉलेज: अंग्रेजों के जमाने में ही आदिवासी अंचल में शिक्षा का संदेश देने वाली वीर बाला काली बाई की रास्तापाल गांव में मूर्ति लगी है. इसके अलावा गुरुजी सेंगा भाई और नाना भाई खांट के भी स्टेच्यू लगे हुए हैं. काली बाई के नाम से गांव में स्कूल भी है. डूंगरपुर शहर में तहसील चौराहा के पास काली बाई सर्किल बना हुआ है. नाना भाई के नाम से भी एक पार्क बनाया गया है.

Veer Bala Kali Bai museum in Dungarpur
पैनोरमा के जरिए वीर बाला की वीरगाथा दिखाई जाती है

शिक्षा के लिए जान न्योछावर करने वाली काली बाई के नाम से डूंगरपुर शहर में सबसे बड़ा गर्ल्स कॉलेज है. शहर के मांडवा खापरडा में काली बाई की वीरगाथा को लोगों तक पहुंचाने के लिए पैनोरमा बनाया गया है. यहां काली बाई के घटनाक्रम से जुड़ी सभी चीजों को प्रदर्शनी से समझाया गया है. वहीं सरकार की ओर से वीर बाला काली बाई के नाम से ही बालिकाओं को स्कूटी वितरण योजना शुरू की गई है. प्रदेश में बोर्ड परीक्षा में अव्वल रहने वाली आदिवासी बालिकाओं को हर साल काली बाई के नाम से स्कूटी दी जाती है.

डूंगरपुर. आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले का रास्तापाल गांव, जहां 1935 में काली बाई का जन्म सोमा भाई के घर (Heroic saga of Veer Bala Kali Bai) में हुआ था. वीर बाला जन्म से ही होनहार थी. आदिवासी इलाके में अंग्रेजी हुकूमत के बढ़ते अत्याचार और पाबंदियों के बीच इसी गांव में सबसे पहला स्कूल खुला. गांव के केलूपोश घर में गुरुजी सेंगा भाई और नाना भाई खांट आसपास के बच्चों को पढ़ाने लगे. जैसे ही ये बात अंग्रेजी हुकूमत को पता लगी तो उन्होंने स्कूले खोलने पर पाबंदी लगा दी. स्कूल को बंद नहीं किया गया.

इस बात से नाराज अंग्रेज 19 जून 1947 को नानाभाई खांट की पाठशाला पहुंचे, जहां काली बाई समेत (Veer Bala Kali Bai museum in Dungarpur) कई बच्चे पढ़ते थे. स्कूल में नाना भाई खांट और सेंगा भाई दोनों ही मौजूद थे. अंग्रेजों ने दोनों से स्कूल बंद करने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने बात मानने से साफ इनकार कर दिया. इस पर अंग्रेजो ने दोनों को बंदूक से मारा. स्कूल से बाहर निकालने के बाद अंग्रेजो ने दरवाजे पर ताला लगा दिया. इस बात का दोनों गुरुओं ने विरोध किया तो सेंगा भाई को अंग्रेजो की पुलिस जीप के पीछे बांधकर उन्हें घसीटते हुए ले जाने लगे.

आज भी मशहूर है वीरबाला काली की 'वीरगाथा'

उसी समय खेतों से घास लेकर आ रही काली बाई ने अपने गुरुजी सेंगा भाई को पुलिस जीप के पीछे बंधा घसीटता हुआ देखा. काली ने घास का ढेर नीचे फेंका और अपने गुरू को बचाने दौड़ पड़ी. उसने घास काटने की दांतली से गुरुजी संगा भाई से बंधी रस्सी को काट दिया. इससे नाराज अंग्रेजो ने काली बाई को गोलियों से भून दिया. वहीं सेंगा भाई पर भी गोलियां चलाई. गांव में शिक्षा को बचाने और अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में उस दिन दोनों शहीद हो गए. इसके बाद से काली बाई को शिक्षा की देवी माना जाने लगा, जिसने अंग्रेजों से लोहा लेते हुए आदिवासी अंचल में शिक्षा के लिए अपनी जान तक न्यौछावर कर दी.

पढ़ें. 23 अप्रैल : वीर कुंवर सिंह ने 80 साल की उम्र में भी अंग्रेजों के उड़ा दिए थे होश

काली बाई के नाम पर शहर में कॉलेज: अंग्रेजों के जमाने में ही आदिवासी अंचल में शिक्षा का संदेश देने वाली वीर बाला काली बाई की रास्तापाल गांव में मूर्ति लगी है. इसके अलावा गुरुजी सेंगा भाई और नाना भाई खांट के भी स्टेच्यू लगे हुए हैं. काली बाई के नाम से गांव में स्कूल भी है. डूंगरपुर शहर में तहसील चौराहा के पास काली बाई सर्किल बना हुआ है. नाना भाई के नाम से भी एक पार्क बनाया गया है.

Veer Bala Kali Bai museum in Dungarpur
पैनोरमा के जरिए वीर बाला की वीरगाथा दिखाई जाती है

शिक्षा के लिए जान न्योछावर करने वाली काली बाई के नाम से डूंगरपुर शहर में सबसे बड़ा गर्ल्स कॉलेज है. शहर के मांडवा खापरडा में काली बाई की वीरगाथा को लोगों तक पहुंचाने के लिए पैनोरमा बनाया गया है. यहां काली बाई के घटनाक्रम से जुड़ी सभी चीजों को प्रदर्शनी से समझाया गया है. वहीं सरकार की ओर से वीर बाला काली बाई के नाम से ही बालिकाओं को स्कूटी वितरण योजना शुरू की गई है. प्रदेश में बोर्ड परीक्षा में अव्वल रहने वाली आदिवासी बालिकाओं को हर साल काली बाई के नाम से स्कूटी दी जाती है.

Last Updated : Jun 20, 2022, 5:08 PM IST
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