डूंगरपुर. कोरोना महामारी के बाद लागू लॉकडाउन का सबसे बड़ा असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ा है. लगभग साढ़े तीन महीने बाद भी स्कूल बंद पड़े हैं. कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रभाव के कारण पहले बच्चों की पढ़ाई चौपट हुई और अब इसी के बढ़ते प्रकोप के कारण परीक्षाओं को भी निरस्त करना पड़ा.
कोरोना संक्रमण का सबसे अधिक खतरा बच्चों और बुजुर्गों को है. ऐसे में उन्हें इस महामारी से महफूज़ रखना भी जरूरी है. ऐसे में शिक्षा विभाग की ओर से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित नहीं हो, इसके लिए प्रदेश में ऑनलाइन एजुकेशन के तहत 'स्माइल प्रोग्राम' शुरू किया गया.
इसके माध्यम से प्रदेशभर के बच्चों को पढ़ाई के लिए विषय विशेषज्ञों की ओर से तैयार अध्ययन सामग्री ऑनलाइन उपलब्ध करवाई जा रही है. जो बच्चों और अभिभावकों को WHATAPP और अन्य माध्यमों से उपलब्ध करवाई जा रही है. ऐसा ये सोचकर किया जा रहा है कि बच्चों की पढ़ाई सुचारू रूप से चल सके. लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है. ईटीवी भारत की टीम ऑनलाइन शिक्षा का हाल जानने जब स्कूलों में पहुंची तो अलग ही हकीकत सामने आई.
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स्कूलों की ओर से जो शैक्षिक सामग्री उपलब्ध करवाई जा रही है वह प्रत्येक स्कूल में कक्षावार WHATSAPP ग्रुप में भेजी जा रही है. लेकिन सच्चाई यह है कि उन ग्रुप में बच्चों या उनके अभिभावकों की संख्या बहुत ही कम है. इसकी मुख्य वजह से जनजाति क्षेत्र में 70 फीसदी लोगों के पास एंड्रॉयड फोन नहीं है. जिनके पास एंड्रॉयड फोन हैं वे महंगे रिचार्ज नहीं करवा पाते हैं.
मोबाइल के उपयोग को लेकर अभिभावकों का कहना है कि पहले बच्चों को मोबाइल से दूर रखने की बात सिखाई जाती थी, लेकिन अब वही मोबाइल बच्चों को मजबूरीवश देना पड़ रहा है. हर वक्त बच्चों पर निगरानी भी नहीं रखी जा सकती. क्या पता कब बच्चा पढ़ाई की जगह गेम खेलने या दूसरे एप खोलकर देखने में लग जाए. ऐसे में अभिभावकों को मोबाइल के दुरुपयोग का भी डर सता रहा है. स्पष्ट रूप से कहा जाए तो सरकार या शिक्षा विभाग की ऑनलाइन शिक्षा का फायदा असल में बच्चों को मिल ही नहीं पा रहा है.
ईटीवी भारत की टीम शहर से सटे बिलड़ी राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय पंहुची. स्कूल की प्रधानाचार्या तुलसी गोदा ने बताया कि स्कूल में 543 विद्यार्थी पढ़ते हैं. कोरोना के कारण पढ़ाई पर असर पड़ा है. हालांकि इस बाधा को दूर करने के लिए ऑनलाइन एजुकेशन का सहारा लिया जा रहा है.
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इसके लिए सभी कक्षाओं के बच्चों और अभिभावकों का WHATSAPP ग्रुप बनाया हुआ है, जिसमें कक्षाध्यापक व विषयाध्यापकों द्वारा शैक्षणिक सामग्री लगातार पोस्ट की जाती है. जिसका बच्चे अध्ययन करते हैं. बच्चों को कोई समस्या होती है तो वे शिक्षक से मोबाइल पर संपर्क करके समाधान करते हैं, लेकिन जब प्रधानाचार्य से समस्या के बारे में पूछा तो उन्होंने भी अभिभावकों की ओर से बताई गई समस्याओं को सही ठहराया.
ऑनलाइन शिक्षा में मुख्य बाधा..
कहने को तो देश आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है, लेकिन राजस्थान का आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिला आज भी पिछड़ा हुआ है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ऑनलाइन शिक्षा से जुड़ने वाले बच्चों की संख्या सरकारी रिकॉर्ड में भी 40 फीसदी ही है. जबकि हकीकत में यह संख्या इससे भी कम है.
ईटीवी भारत की टीम ने इसके लिए बच्चों व अभिभावकों से बातचीत की तो उन्होंने भी बताया कि उनके पास एंड्रॉयड फोन नहीं है. वे अपनी जरूरत के अनुसार कीपैड फोन इस्तेमाल करते हैं. अभिभावकों ने यह भी बताया कि कोरोना काल में घर परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है और इंटरनेट का बड़ा रिचार्ज करवाना उनके लिए मुश्किल है.
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गांवों में नेटवर्क की समस्या, परिवार में माता-पिता के रोजगार पर चले जाने के कारण मोबाइल फोन उनके साथ ले जाने, वहीं बच्चों को फोन का इस्तेमाल करने के लिए देने पर अभिभावकों में घबराहट जैसी कई समस्याएं हैं जिनका जिक्र अभिभावकों ने ऑनलाइन शिक्षा में आ रही बाधाओं के रूप में किया.
बच्चों की सेहत पर बुरा असर..
कोरोना संक्रमण की चुनौतियों के बीच पढ़ाई का एकमात्र विकल्प ऑनलाइन एजुकेशन भले ही नजर आ रहा है. लेकिन इस विकल्प का दूसरा पहलू स्टूडेंट्स के लिए विनाशकारी है. मोबाइल पर पढ़ाई के कारण बच्चों की आँखों पर बुरा असर पड़ रहा है. मोबाइल के ज्यादा उपयोग के कारण बच्चों को सिर दर्द, थकान, बैचेनी, शारीरिक कमजोरी और नींद में अनियमितता की समस्या हो रही है.
शिक्षा में डूंगरपुर जिले की स्थिति..
- जिले में विद्यार्थियों की संख्या- 2,90,392
- कक्षा 1 से 5 तक विद्यार्थियों की संख्या- 1,31,880
- कक्षा 6 से 8 तक विद्यार्थियों की संख्या- 74,375
- कक्षा 9 से 12 तक विद्यार्थियों की संख्या- 84,137
- ऑनलाइन एजुकेशन लेने वाले विद्यार्थी- 40 प्रतिशत
(आंकड़े शिक्षा विभाग की रिपोर्ट पर आधारित)