डूंगरपुर. प्रदेश का आदिवासी बाहुल्य डूंगरपुर जिला पिछले लंबे समय से कुपोषण का शिकार है. जिसे दूर करने के लिए सरकार की ओर से आंगनबाड़ी केंद्र संचालित किए जा रहे हैं. साथ ही स्कूलों में भी बच्चों को पोषाहार का वितरण किया जा रहा है. डूंगरपुर जिले की बात करें तो कुल 2017 आंगनबाड़ी केंद्र चल रहे है, जहां 6 माह से लेकर 5 साल तक के बच्चों को पोषाहार वितरण किया जाता है. जिससे बच्चों में कुपोषण को दूर किया जा सके.
ईटीवी भारत ने जिले में कुपोषण की स्थिति का जायजा लिया. इसके लिए महिला एवं बाल विकास विभाग की उपनिदेशक लक्ष्मी चरपोटा से बात की तो पता चला कि जिले में अभी 25 हजार 8 बच्चे कुपोषण की श्रेणी में हैं और 31 बच्चे अतिकुपोषण का शिकार हैं.
जबकि पिछले साल जिले में 30 हजार 565 बच्चे कुपोषण का शिकार थे. हालांकि कुपोषित बच्चों की संख्या में कुछ कमी आई है, लेकिन बरसो से चल रही इन योजनाओं के बावजूद भी कुपोषण का आंकड़ा इसके आसपास ही बना हुआ है. ऐसे में सरकार के साथ ही प्रशासन और महिला एवं बाल विकास विभाग के लिए कई चिंता का विषय बना हुआ है.
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अमृत पोषाहार दिलाएगा कुपोषण से मुक्ति
ईटीवी भारत ने कुपोषण मिटाने को लेकर सरकार और महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से चल रही योजनाओं के बारे में पड़ताल की तो उपनिदेशक लक्ष्मी चरपोटा ने बताया कि राज्य सरकार की ओर से प्रत्येक आंगनबाड़ी केंद्र पर 6 माह से लेकर 5 साल तक बच्चों का नामांकन कर उन्हें पोषाहार दिया जा रहा है. इसमें बच्चों को गर्म और पैकिंग पोषाहार के अलावा दूध पाउडर भी दिया जा रहा है, ताकि बच्चों में अच्छी ग्रोथ आए.
डिप्टी डायरेक्टर ने बताया कि बच्चों में कुपोषण को दूर करने के लिए सरकार की ओर से अब 'अम्मा' प्रोजेक्ट शुरू किया गया है, जिसके माध्यम से बच्चों को अब अमृत पोषाहार के पैकेट वितरित किए जायेंगे. इसमें बच्चों के जल्द विकास को लेकर कई तरह की पौष्टिक खाद्य सामग्री है. अमृत पोषाहार के अब तक 1600 कार्टून आ चुके हैं और प्रत्येक कार्टून में पोषाहार के 100-100 पैकेट हैं. एक बच्चे को 40 से 70 पैकेट (उम्र के अनुसार) दिए जाएंगे.
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कुपोषण से बच्चे बीमारियों के शिकार
कुपोषण के कारण बच्चे कई तरह की बीमारियों के शिकार भी हो रहे हैं. शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. गौरव यादव ने बताया कि आदिवासी बाहुल्य डूंगरपुर जिले में कुपोषण सबसे बड़ी समस्या है और इसकी मुख्य वजह है, गर्भ के समय कुपोषित माता. डॉक्टर ने बताया कि जिले में अधिकतर महिलाएं कुपोषण का शिकार हैं. गर्भ के समय महिलाओं में हीमोग्लोबिन की मात्रा केवल 6 से 8 ग्राम तक होती है, जो जरूरत से काफी कम है.
इसका कारण है गर्भ के बाद समय पर इलाज नहीं करवाना, अच्छा खान-पान उपलब्ध नहीं होना. जिस कारण बच्चे को जन्म देते समय भी बच्चा कुपोषित ही पैदा होता है, जिसका वजन महज 1 से डेढ़ किलो होता है. जबकि एक स्वस्थ्य बच्चे का वजन ढाई किलो से ज्यादा होना चाहिए. कुपोषण के कारण बच्चों में कई तरह की बीमारियां होती हैं.
सरकार की ओर से कुपोषण को दूर करने के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे है और इस पर लाखों रुपये खर्च हो रहे हैं, लेकिन कुपोषण की स्थिति जस की तस बनी हुई है. अब देखना होगा सरकार की सरकार से शुरू की जा रही 'अम्मा' कार्यक्रम कितना रंग लाती है और जिले में कुपोषण को मिटाने में कितना कारगर साबित होगा.