डूंगरपुर. सोम, माही और जाखम नदियों के त्रिवेणी संगम तट पर स्थित बेणेश्वर धाम पर माघ पूर्णिमा के मुख्य मेले में लाखों श्रद्धालु जुटे. 300 साल से आयोजित इस मेले में राजस्थान समेत महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश और कई राज्यों से पहुंचे भक्तों ने श्रद्धा से हिस्सा लिया. श्रद्धालुओं ने त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाई, अस्थियों का तर्पण किया और इसके बाद बेणेश्वर धाम मंदिरों में दर्शन किया. शनिवार का मुख्य आकर्षण पालकी यात्रा और शाही स्नान रहा. हालांकि इस बार कोरोना माहामारी के चलते प्रशासन की ओर से मेले ने दुकानों पर पाबंदी के चलते सिर्फ जरूरत के सामान की दुकानें ही लगी हैं.
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माघ शुक्ल एकादशी से शुरू हुए बेणेश्वर महाकुंभ में शनिवार को माघ पूर्णिमा को मुख्य मेला लगा. मेले में लाखों श्रद्धालु रोजाना पहुंच रहे हैं और धाम के प्रति अपनी आस्था को प्रकट कर रहे हैं. माघ पूर्णिमा के मुख्य मेले के दिन बेणेश्वर धाम पर पहुंचे श्रद्धालुओ ने अलसुबह होते ही मां गंगा के समान पवित्र सोम, माही व जाखम नदियों के पवित्र संगम में डुबकी लगाकर स्नान किया. इस दौरान हजारों भक्तों ने भगवान सूर्य को पवित्र जल से अर्घ्य अर्पित किए. इसके साथ ही सालभर में घर परिवार में मृत व्यक्तियों की अस्थियों का पूजा अर्चना के साथ तर्पण और अर्पण किया गया, जिससे मृतकों की आत्मा को शांति मिले. पवित्र स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने धाम पर स्थित महादेव मंदिर, श्रीराधे-कृष्ण मंदिर, ब्रम्हाजी मंदिर और वाल्मीकि मंदिर पर दर्शन किए. दर्शनों को लेकर भी यहां भक्तों की लाइनें लगी हुई थी और अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे. दर्शनों के बाद श्रद्धालुओं ने मेला धाम पर लगी दुकानों में खरीदारी भी की.
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कोरोना के चलते सिर्फ जरूरी दुकानें
कोरोना माहामारी के कारण इस बार बेणेश्वर मेले को लेकर प्रशासन की ओर से कोई प्रचार-प्रसार नहीं किया गया, लेकिन धाम के प्रति लाखों श्रद्धालुओं की जुड़ी आस्था के कारण बड़ी संख्या में भक्त पहुंचे. वहीं मेले में इस बार प्रशासन ने सख्ती दिखाते हुए केवल जरूरत के सामान की दुकानों को ही मंजूरी दी है. इस कारण मेले में कॉस्मेटिक, हथियार, कपड़े, जूते, बर्तन और अन्य सामानों की दुकानें नहीं लगी. इसके अलावा मनोरंजन के लिए झूले, मौत का कुआं भी नहीं लगे थे. ऐसे में मेले में इस बार प्रतिवर्ष से काफी कम भीड़ ही नजर आई. वहीं मेले में भीड़ को देखते हुए पुलिस और प्रशासन की ओर से भी पुख्ता इंतजाम किए गए. धाम स्थल पर कंट्रोल रूम के साथ जगह-जगह पर पुलिस बल को तैनात किया गया है और मेले की गतिविधियों पर निगरानी रखी गई.
300 साल से लगता आ रहा है मेला
संत मावजी महाराज वागड़ के महान संत थे और बेणेश्वर धाम उनकी तपोभूमि है. मावजी महाराज ने करीब 300 वर्ष पहले सोम, माही और जाखम नदी के संगम पर बेणेश्वर में तपस्या की थी. उन्होंने जनजाति समाज में सामाजिक चेतना जागृत करने के लिए भी प्रयास किए. उनकी याद में हर वर्ष बेणेश्वर धाम पर माघ पूर्णिमा पर सबसे बड़ा आदिवासी मेला भरता है. संत मावजी महाराज का जन्म विक्रम संवत 1771 को माघ शुक्ल पंचमी (बसंत पंचमी) को साबला में दालम ऋषि के घर हुआ था. उनकी माता केसरबाई थी. इसके बाद कठोर तपस्या कर वो संवत 1784 में माघ शुक्ला ग्यारस को लीला अवतार के रूप में संसार के सामने आए. उन्होंने कई चोपड़े लिखी, जिसमें साम्राज्यवाद के अंत और प्रजातंत्र की स्थापना सहित सामाजिक एवं सांसारिक परिवर्तनों की भविष्यवाणियां की गई. मान्यता है कि वो भविष्यवाणी आज साकार हो रही हैं.