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स्पेशलः विश्व विख्यात डूंगरपुर की मूर्तिकला पर कोरोना का ग्रहण, मूर्तिकारों पर आर्थिक संकट

वैश्विक महामारी कोरोना का ग्रहण डूंगरपूर की विश्व विख्यात मूर्तिकला पर भी लग गया है. लॉकडाउन के बाद से मूर्तिकला के खरीददार नहीं मिल रहे तो वहीं मूर्तिकला से जुड़े सोमपुरा समाज के कलाकारों पर रोजगार के साथ ही आर्थिक संकट आ गया है. जबकि पारेवा पत्थरों से बनी डूंगरपुर के कलाकारों के हाथों की मूर्तियों की देश ही नहीं विदेशों तक भी खासी डिमांड रहती है.

डूंगरपुर मूर्तिकला, Corona epidemic,  Dungarpur Sculpture
डूंगरपुर की मूर्तिकला पर ग्रहण
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Published : May 29, 2020, 5:02 PM IST

डूंगरपुर. वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने हर आम से लेकर खास को झकझोर दिया है. इस दौरान काम-धंधे ठप हो गए तो वहीं लाखों लोगों पर बेरोजगारी का संकट मंडराने लगा है. डूंगरपुर की विश्व विख्यात मूर्तिकला भी इसी में से एक है. लॉकडाउन के बाद से ना तो खरीदार मिल रहे हैं और ना ही मूर्तियों की अभी कोई डिमांड है. वहीं, धार्मिक कार्यक्रम भी बंद हो जाने से भगवान की बनी मूर्तियों की बिक्री भी नहीं हो रही है.

डूंगरपुर की मूर्तिकला पर ग्रहण

डूंगरपुर के सोमपुरा समाज के हाथों की कारीगरी किसी जादू से कम नहीं है. पारेवा पत्थर यहां का एक विशेष काला पत्थर है, जिसे धार्मिक आस्था के रूप में भी पूजा जाता है. इसी कारण देवी-देवताओं से लेकर विशेष मूर्तियां इसी पत्थर से बनाई जाती है. सोमपुरा समाज के कारीगर अपने हाथों के हुनर से एक पत्थर में जान फूंकने का काम करते हैं और उनके इस हुनर की डिमांड देश के विभिन्न राज्यों के साथ ही विदेशों तक रहती है.

डूंगरपुर मूर्तिकला, Corona epidemic,  Dungarpur Sculpture
सोमपुरा समजा के लोग

पढ़ें- मजदूरों को लेकर संवेदनहीन है केंद्र...राजनीतिक द्वेष भुलाकर विपक्ष की बात सुने मोदी सरकारः गहलोत

बता दें कि लॉकडाउन के बाद से सोमपुरा समाज की मूर्तिकला पर भी ग्रहण लग गया है. दो महीने से मूर्ति बनाने का काम धंधा ठप हो गया है, जो मूर्तियां बनी हुई थी उसे बेचने के लिए भी कोई खरीददार नहीं मिल रहा है. मूर्तिकार बताते हैं कि दो महीने तक एक भी मूर्ति नहीं बिकी है, ऐसे में जो कुछ पैसे थे वे भी खत्म हो गए. उनका कहना है कि अब उनके सामने आर्थिक संकट आ गया है, जिससे कि परिवार को चलाना भी मुश्किल हो रहा है.

डूंगरपुर मूर्तिकला, Corona epidemic,  Dungarpur Sculpture
पारेवा पत्थरों से बनी मूर्ति

धार्मिक कार्यक्रम बंद, नहीं हो रहा मंदिर प्रतिष्ठा

लॉकडाउन के बाद से धार्मिक कार्यक्रम, मंदिर प्रतिष्ठा, मूर्ति स्थापना के कार्यक्रम भी निरस्त हो चुके हैं. ऐसे में मूर्तियों की सबसे ज्यादा डिमांड इन्हीं में रहती है. लेकिन पिछले दो महीने से कोई धार्मिक कार्यक्रम आयोजित नहीं हुआ है. जिन कार्यक्रमों के मुहूर्त थे वे भी अब आगे मुहूर्त देखने के बाद होंगे, तब तक मूर्तियों की डिमांड भी नहीं है.

डूंगरपुर मूर्तिकला, Corona epidemic,  Dungarpur Sculpture
पारेवा पत्थर से बनाई गई मूर्ति

मूर्तिकारों का कहना है कि मूर्तियों के जो ऑर्डर पहले से उनके पास थे, जिनको अप्रैल और मई महीने में मूर्तियों की स्थापना के कारण मूर्तियां देनी थी उनको उन्होंने तैयार कर दिया. लेकिन अब वे भी कार्यक्रम निरस्त होने से ले जाने के लिए तैयार नहीं हैं, ऐसे में उनके कामकाज के पैसे भी अटक गए हैं.

अमेरिका से आस्ट्रेलिया और मलेशिया तक डिमांड

डूंगरपूर के सोमपुरा समाज के मूर्तिकारों के हाथों की बनी मूर्तियां ही नहीं बल्कि उनकी ओर से बनाए जाने वाले मंदिरों की कारीगरी की डिमांड भी विदेशों तक है. सोमपुरा समाज के कारीगर बताते हैं कि उनकी ओर से बनाई मूर्तियों की अमेरिका, आस्ट्रेलिया, मलेशिया और अन्य कई देशों में डिमांड रहती है. इसी कारण सोमपुरा समाज के कई कलाकार विदेश में ही रहते हैं, लेकिन कोरोना के काल ने उनकी कला पर भी ब्रेक लगा दिया है.

डूंगरपुर मूर्तिकला, Corona epidemic,  Dungarpur Sculpture
नहीं मिल रहे खरीददार

150 से ज्यादा परिवार की रोजी-रोटी पर संकट

डूंगरपुर में सोमपुरा समाज के करीब 150 परिवार हैं, जिनका पुश्तैनी काम पत्थरों से बनाई जाने वाली मूर्तिकला है. समाज के कई युवा भी इस कला में निपुण हैं, जिनके हाथों से बनी मूर्तियां बहुत ही आकर्षक होती है. मूर्तियों से होने वाली आमदनी से ही इनका परिवार चलता है. बता दें कि डूंगरपुर में कई परिवार ऐसे हैं जिनका पूरा परिवार ही मूर्तियों के निर्माण में जुटा है. लेकिन पिछले दो महीने वे बेरोजगार हो चुके हैं.

डूंगरपुर मूर्तिकला, Corona epidemic,  Dungarpur Sculpture
भगवान बुद्ध की प्रतिमा

बता दें कि लॉकडाउन का असर हर जगह पर पड़ा है, लेकिन सबसे बड़ी पीड़ा हाथों की कारीगरी मूर्ति कला पर भी हुआ है. सरकार उद्योगों को एक बार फिर खड़ा करने के लिए मदद कर रही है तो वहीं मूर्तिकला से जुड़े यह छोटे उद्योग भी सरकार की ओर उम्मीद लगाए देख रहे हैं.

डूंगरपुर. वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने हर आम से लेकर खास को झकझोर दिया है. इस दौरान काम-धंधे ठप हो गए तो वहीं लाखों लोगों पर बेरोजगारी का संकट मंडराने लगा है. डूंगरपुर की विश्व विख्यात मूर्तिकला भी इसी में से एक है. लॉकडाउन के बाद से ना तो खरीदार मिल रहे हैं और ना ही मूर्तियों की अभी कोई डिमांड है. वहीं, धार्मिक कार्यक्रम भी बंद हो जाने से भगवान की बनी मूर्तियों की बिक्री भी नहीं हो रही है.

डूंगरपुर की मूर्तिकला पर ग्रहण

डूंगरपुर के सोमपुरा समाज के हाथों की कारीगरी किसी जादू से कम नहीं है. पारेवा पत्थर यहां का एक विशेष काला पत्थर है, जिसे धार्मिक आस्था के रूप में भी पूजा जाता है. इसी कारण देवी-देवताओं से लेकर विशेष मूर्तियां इसी पत्थर से बनाई जाती है. सोमपुरा समाज के कारीगर अपने हाथों के हुनर से एक पत्थर में जान फूंकने का काम करते हैं और उनके इस हुनर की डिमांड देश के विभिन्न राज्यों के साथ ही विदेशों तक रहती है.

डूंगरपुर मूर्तिकला, Corona epidemic,  Dungarpur Sculpture
सोमपुरा समजा के लोग

पढ़ें- मजदूरों को लेकर संवेदनहीन है केंद्र...राजनीतिक द्वेष भुलाकर विपक्ष की बात सुने मोदी सरकारः गहलोत

बता दें कि लॉकडाउन के बाद से सोमपुरा समाज की मूर्तिकला पर भी ग्रहण लग गया है. दो महीने से मूर्ति बनाने का काम धंधा ठप हो गया है, जो मूर्तियां बनी हुई थी उसे बेचने के लिए भी कोई खरीददार नहीं मिल रहा है. मूर्तिकार बताते हैं कि दो महीने तक एक भी मूर्ति नहीं बिकी है, ऐसे में जो कुछ पैसे थे वे भी खत्म हो गए. उनका कहना है कि अब उनके सामने आर्थिक संकट आ गया है, जिससे कि परिवार को चलाना भी मुश्किल हो रहा है.

डूंगरपुर मूर्तिकला, Corona epidemic,  Dungarpur Sculpture
पारेवा पत्थरों से बनी मूर्ति

धार्मिक कार्यक्रम बंद, नहीं हो रहा मंदिर प्रतिष्ठा

लॉकडाउन के बाद से धार्मिक कार्यक्रम, मंदिर प्रतिष्ठा, मूर्ति स्थापना के कार्यक्रम भी निरस्त हो चुके हैं. ऐसे में मूर्तियों की सबसे ज्यादा डिमांड इन्हीं में रहती है. लेकिन पिछले दो महीने से कोई धार्मिक कार्यक्रम आयोजित नहीं हुआ है. जिन कार्यक्रमों के मुहूर्त थे वे भी अब आगे मुहूर्त देखने के बाद होंगे, तब तक मूर्तियों की डिमांड भी नहीं है.

डूंगरपुर मूर्तिकला, Corona epidemic,  Dungarpur Sculpture
पारेवा पत्थर से बनाई गई मूर्ति

मूर्तिकारों का कहना है कि मूर्तियों के जो ऑर्डर पहले से उनके पास थे, जिनको अप्रैल और मई महीने में मूर्तियों की स्थापना के कारण मूर्तियां देनी थी उनको उन्होंने तैयार कर दिया. लेकिन अब वे भी कार्यक्रम निरस्त होने से ले जाने के लिए तैयार नहीं हैं, ऐसे में उनके कामकाज के पैसे भी अटक गए हैं.

अमेरिका से आस्ट्रेलिया और मलेशिया तक डिमांड

डूंगरपूर के सोमपुरा समाज के मूर्तिकारों के हाथों की बनी मूर्तियां ही नहीं बल्कि उनकी ओर से बनाए जाने वाले मंदिरों की कारीगरी की डिमांड भी विदेशों तक है. सोमपुरा समाज के कारीगर बताते हैं कि उनकी ओर से बनाई मूर्तियों की अमेरिका, आस्ट्रेलिया, मलेशिया और अन्य कई देशों में डिमांड रहती है. इसी कारण सोमपुरा समाज के कई कलाकार विदेश में ही रहते हैं, लेकिन कोरोना के काल ने उनकी कला पर भी ब्रेक लगा दिया है.

डूंगरपुर मूर्तिकला, Corona epidemic,  Dungarpur Sculpture
नहीं मिल रहे खरीददार

150 से ज्यादा परिवार की रोजी-रोटी पर संकट

डूंगरपुर में सोमपुरा समाज के करीब 150 परिवार हैं, जिनका पुश्तैनी काम पत्थरों से बनाई जाने वाली मूर्तिकला है. समाज के कई युवा भी इस कला में निपुण हैं, जिनके हाथों से बनी मूर्तियां बहुत ही आकर्षक होती है. मूर्तियों से होने वाली आमदनी से ही इनका परिवार चलता है. बता दें कि डूंगरपुर में कई परिवार ऐसे हैं जिनका पूरा परिवार ही मूर्तियों के निर्माण में जुटा है. लेकिन पिछले दो महीने वे बेरोजगार हो चुके हैं.

डूंगरपुर मूर्तिकला, Corona epidemic,  Dungarpur Sculpture
भगवान बुद्ध की प्रतिमा

बता दें कि लॉकडाउन का असर हर जगह पर पड़ा है, लेकिन सबसे बड़ी पीड़ा हाथों की कारीगरी मूर्ति कला पर भी हुआ है. सरकार उद्योगों को एक बार फिर खड़ा करने के लिए मदद कर रही है तो वहीं मूर्तिकला से जुड़े यह छोटे उद्योग भी सरकार की ओर उम्मीद लगाए देख रहे हैं.

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