डूंगरपुर. देशभर में कोरोना काल शुरू होने के बाद लागू लॉकडाउन में सबकुछ ठप हो गया तो आंगनबाड़ी केंद्रों पर भी ताले लग गए. इसके कारण आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों और गर्भवती महिलाओं को दिया जाने वाला गरम पोषाहार का वितरण भी बंद हो गया, लेकिन सरकार ने कोरोना काल में आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चों को पोषाहार के बदले खाद्यान्न उपलब्ध करवाने के आदेश दिए.
कोरोना काल में जहां हर कोई जूझ रहा है तो वहीं आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं पर दोगुनी मार पड़ी है. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता कोरोना के इस दौर में कोरोना वॉरियर्स की तरह ही लोगों की सेवा में जुटी रही, लेकिन उन्हें सम्मान तो दूर भुगतान तक नहीं मिला है. आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने एक लाख से ज्यादा बच्चों को दो महीने तक उधार में अनाज खरीदकर बांट दिया, लेकिन अब वे भुगतान के लिए चक्कर काट रही हैं. 7500 रुपए का खुद मानदेय पाने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का करीब 75 लाख रुपए का भुगतान अटका हुआ है.
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सरकार के इस आदेश के तहत प्रदेश के आंगनबाड़ी केंद्रों पर पंजीकृत बच्चों को लॉकडाउन के दौरान प्रति महीने 2 किलो गेंहू और 1 किलो दाल उपलब्ध करवाने के निर्देश दिए. आंगनबाड़ी केंद्रों को सरकार की ओर से दाल तो मिल गई, लेकिन गेंहू की आपूर्ति नहीं मिली. इस पर सरकार ने एक और आदेश जारी कर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को मातृ समिति के माध्यम से गेहूं खरीदकर बच्चों को बांटने के आदेश दिए.
सरकार के आदेशों की पालना में 7500 रुपए का मानदेय पाने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने मई महीने में अपने स्तर पर गेहूं की खरीद की और बच्चों को वितरण किया. इसके बाद जून महीने में एक बार फिर सभी 2017 आंगनबाड़ी केंद्रों के 1 लाख 15 हजार 47 बच्चों को उधारी या खुद के खर्चे से गेहूं खरीदकर वितरण किया गया. इसकी एवज में कार्यकर्ताओं के खाते में 21 रुपए प्रति किलो गेंहू के भाव से राशि देने के आदेश दिए थे, लेकिन कार्यकर्ता अब तक भुगतान के लिए भटक रही हैं. जिन्हें मई और जून महीने के गेंहू वितरण की राशि का अब तक भुगतान नहीं मिला है.
7500 का मानदेय, 75 लाख की उधारी
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संघ की जिलाध्यक्ष लक्ष्मी जैन ने बताया कि एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को 7500 रुपए का मानदेय मिलता है, लेकिन सरकार के आदेशों की पालना में सभी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को गेहूं खरीदकर वितरण करने पड़े. मई महीने में 97 हजार 15 बच्चों और जून महीने में 1 लाख 15 हजार 47 बच्चों को गेहूं का वितरण किया गया. उन्होंने बताया कि इसका करीब 75 लाख रुपए से ज्यादा का उधार है, लेकिन सरकार और विभाग की ओर से इसका भुगतान नहीं किया गया है. इससे कम मानदेय पाने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आर्थिक संकट झेल रही हैं और परिवार चलाना भी मुश्किल हो रहा है.
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'जितना बजट है उसका भुगतान हो रहा है'
महिला एवं बाल विकास विभाग की उपनिदेशक लक्ष्मी चरपोटा ने बताया कि जिले में 2017 आंगनबाड़ी केंद्र हैं. जिसमें से मई महीने में 1010 आंगनबाड़ी केंद्रों ने अपने पास उपलब्ध गेंहू का वितरण किया, जबकि 1007 आंगनबाड़ी केंद्रों को गेहूं खरीदना पड़ा था. इसी तरह जून महीने में सभी 2017 आंगनवाड़ी केंद्रों को गेहूं खरीदकर ही वितरण करना पड़ा.
भुगतान को लेकर चरपोटा ने बताया कि राशि का भुगतान सीडीपीओ के माध्यम से होगा. इसके लिए उनके पास जो बजट उपलब्ध है, उसमें से भुगतान किया जाएगा. लेकिन बिल और ऑनलाइन खामियों के कारण अब तक भुगतान नहीं हुआ है, जिसे जल्द पूरा करवाने का प्रयास किया जाएगा.
जुलाई का गेंहू भी नहीं आया, इस बार आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने हाथ खींचे
मई और जून महीने में गेंहू का वितरण आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने उधारी या खुद के खर्चे से कर दिया, लेकिन जुलाई महीने में भी अब तक सरकार की ओर से गेहूं की आपूर्ति नहीं की गई है. दूसरी ओर भुगतान नहीं मिलने के कारण इस बार आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने भी गेंहू वितरण करने से हाथ खींच लिए हैं. बता दें कि जुलाई महीने में अगर सरकार की ओर से गेहूं कि वितरण नहीं किया गया तो बच्चों को पोषाहार का गेंहू नहीं मिल सकेगा.