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गौरवशाली इतिहास पूर्ण होने पर RAC बटालियन ने किया विशेष डॉक्युमेंट्री लांच...जानें क्या है खास

धौलपुर जिले में बुधवार को राजस्थान आर्म्ड कांस्टेबुलरी (आरएसी) की छठी बटालियन के 100 साल का गरिमापूर्ण इतिहास के मौके पर एक डॉक्यूमेंट्री को लॉन्च किया गया. जिसमें इस बटालियन से जुड़ी कई ऐतिहासिक जानकारियां दी गई हैं.

धौलपुर न्यूज, dholpur news, राजस्थान आर्म्ड कांस्टेबुलरी, Rajasthan Armed Constabulary
विशेष डॉक्युमेंट्री को लांच...
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Published : Jun 25, 2020, 7:32 PM IST

धौलपुर. जिले में बुधवार को आरएसी (राजस्थान आर्म्ड कांस्टेबुलरी) की छठी बटालियन की 100 साल का गरिमापूर्ण इतिहास के मौके पर एक डॉक्यूमेंट्री को लॉन्च किया गया. लॉन्च की गई डॉक्यूमेंट्री के अंतर्गत आरएसी छठी बटालियन के संपूर्ण कामों का निष्पादन किया गया है. इसके माध्यम से आरएसी छठी बटालियन के गौरवशाली इतिहास को प्रदर्शित किया गया.

विशेष डॉक्युमेंट्री को लांच...

दरअसल, चंबल का बीहड़ शुरू से ही डकैतों और बदमाशों के लिए शरण स्थली रही है. लेकिन जिले की आरएसी की छठी बटालियन ने शूरवीरता का परिचय देते हुए इन खूंखार डकैतों और बदमाशों से लोहा लिया है.

पढ़ेंः धौलपुर: 8 हजार का इनामी बदमाश केदार गुर्जर गिरफ्तार, 11 साल से था फरार

जिले की आरएसी छठी बटालियन अपने अदम्य, साहस और शौर्य के लिए जानी जाती है. जिसके अनगिनत योद्धा आंतरिक सुरक्षा से लेकर सीमा सुरक्षा तक उन्मूलन के लिए प्राणों की बाजी लगाने से पीछे नहीं हटे हैं. छठी बटालियन के जांबाज सिपाहियों ने समाज और आने वाली पीढ़ियों के लिए अभय और निडर होकर सामाजिक शांति बनाए रखने में अहम भूमिका अदा की है. करीब 100 साल पहले अगस्त 1918 में तत्कालीन धौलपुर रियासत के महाराजा राणा उदय सिंह ने अपने इष्टदेव नरसिंह भगवान के नाम पर ब्रिटिश कमांडिंग ऑफिसर जेम्स पैटर्स के नेतृत्व में इंपीरियल सर्विस ट्रूप्स के रूप में 143वीं नर्सिंग इन्फेंट्री 650 जवानों के साथ खड़ी की थी.

प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद सन 1919 में 143वीं नर्सिंग इन्फेंट्री को इंडियन स्टेट फोर्स के रूप में नई पहचान दी गई. आजादी के बाद सन 1947 से 1952 तक 143वीं नर्सिंग इन्फेंट्री के जवानों ने प्रोविंशियल आर्म्ड कांस्टेबुलरी के रूप में सेवाएं दी गई. इन जवानों ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के साथ पाकिस्तान से सटी 1040 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा की ऊंट पर बैठकर निगरानी करने का जिम्मा संभाला और जवानों ने इस अंतरराष्ट्रीय सीमा पर घुसपैठ, लूट, चोरी और डकैती जैसी चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया था.

पढ़ेंः 2 हजार का इनामी बदमाश गिरफ्तार, कई मामलों में था फरार

लेकिन 1952 में राजस्थान सरकार द्वारा निर्णय लिया गया कि एक स्पेशल फोर्स का गठन किया जाए. जोकि अंतरराष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा के साथ-साथ डकैती जैसी गंभीर समस्या से लोहा ले सके और कानून व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति में आंतरिक सुरक्षा का जिम्मा भी सिविल पुलिस के साथ उठा सके. इस उद्देश्य के साथ सन 1952 में राजस्थान सरकार द्वारा (राजस्थान आर्म्ड कांस्टेबुलरी) RAC का गठन किया गया.

1982 में धौलपुर को भरतपुर से किया गया अलग...

आरएसी के जवानों के सम्मान में सरकार द्वारा अपने राजकीय पशु ऊंट को आरएसी के पहचान के रूप में मान्यता दे दी गई. जिसको हर जवान अपनी वर्दी पर बड़े गर्व के साथ धारण करता है. 50 के दशक में चंबल के बीहड़ में डाकुओं का खौफ अपने चरम पर था. इसलिए प्रथम बटालियन आरएसी को वर्तमान छठी बटालियन आरएसी परिसर में तैनात किया गया था. सन 1982 में धौलपुर को भरतपुर से अलग करते हुए राजस्थान सरकार द्वारा स्वतंत्र जिले के रूप में घोषित कर दिया गया. कानून व्यवस्था के मद्देनजर नजर अतिरिक्त पुलिस बल की मांग भी शासन के सामने आने लगी. तब 1984 में धौलपुर आरएसी के जवानों को अपनी स्वतंत्र छठी बटालियन आरएसी के रूप में नई पहचान मिली.

धौलपुर. जिले में बुधवार को आरएसी (राजस्थान आर्म्ड कांस्टेबुलरी) की छठी बटालियन की 100 साल का गरिमापूर्ण इतिहास के मौके पर एक डॉक्यूमेंट्री को लॉन्च किया गया. लॉन्च की गई डॉक्यूमेंट्री के अंतर्गत आरएसी छठी बटालियन के संपूर्ण कामों का निष्पादन किया गया है. इसके माध्यम से आरएसी छठी बटालियन के गौरवशाली इतिहास को प्रदर्शित किया गया.

विशेष डॉक्युमेंट्री को लांच...

दरअसल, चंबल का बीहड़ शुरू से ही डकैतों और बदमाशों के लिए शरण स्थली रही है. लेकिन जिले की आरएसी की छठी बटालियन ने शूरवीरता का परिचय देते हुए इन खूंखार डकैतों और बदमाशों से लोहा लिया है.

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जिले की आरएसी छठी बटालियन अपने अदम्य, साहस और शौर्य के लिए जानी जाती है. जिसके अनगिनत योद्धा आंतरिक सुरक्षा से लेकर सीमा सुरक्षा तक उन्मूलन के लिए प्राणों की बाजी लगाने से पीछे नहीं हटे हैं. छठी बटालियन के जांबाज सिपाहियों ने समाज और आने वाली पीढ़ियों के लिए अभय और निडर होकर सामाजिक शांति बनाए रखने में अहम भूमिका अदा की है. करीब 100 साल पहले अगस्त 1918 में तत्कालीन धौलपुर रियासत के महाराजा राणा उदय सिंह ने अपने इष्टदेव नरसिंह भगवान के नाम पर ब्रिटिश कमांडिंग ऑफिसर जेम्स पैटर्स के नेतृत्व में इंपीरियल सर्विस ट्रूप्स के रूप में 143वीं नर्सिंग इन्फेंट्री 650 जवानों के साथ खड़ी की थी.

प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद सन 1919 में 143वीं नर्सिंग इन्फेंट्री को इंडियन स्टेट फोर्स के रूप में नई पहचान दी गई. आजादी के बाद सन 1947 से 1952 तक 143वीं नर्सिंग इन्फेंट्री के जवानों ने प्रोविंशियल आर्म्ड कांस्टेबुलरी के रूप में सेवाएं दी गई. इन जवानों ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के साथ पाकिस्तान से सटी 1040 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा की ऊंट पर बैठकर निगरानी करने का जिम्मा संभाला और जवानों ने इस अंतरराष्ट्रीय सीमा पर घुसपैठ, लूट, चोरी और डकैती जैसी चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया था.

पढ़ेंः 2 हजार का इनामी बदमाश गिरफ्तार, कई मामलों में था फरार

लेकिन 1952 में राजस्थान सरकार द्वारा निर्णय लिया गया कि एक स्पेशल फोर्स का गठन किया जाए. जोकि अंतरराष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा के साथ-साथ डकैती जैसी गंभीर समस्या से लोहा ले सके और कानून व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति में आंतरिक सुरक्षा का जिम्मा भी सिविल पुलिस के साथ उठा सके. इस उद्देश्य के साथ सन 1952 में राजस्थान सरकार द्वारा (राजस्थान आर्म्ड कांस्टेबुलरी) RAC का गठन किया गया.

1982 में धौलपुर को भरतपुर से किया गया अलग...

आरएसी के जवानों के सम्मान में सरकार द्वारा अपने राजकीय पशु ऊंट को आरएसी के पहचान के रूप में मान्यता दे दी गई. जिसको हर जवान अपनी वर्दी पर बड़े गर्व के साथ धारण करता है. 50 के दशक में चंबल के बीहड़ में डाकुओं का खौफ अपने चरम पर था. इसलिए प्रथम बटालियन आरएसी को वर्तमान छठी बटालियन आरएसी परिसर में तैनात किया गया था. सन 1982 में धौलपुर को भरतपुर से अलग करते हुए राजस्थान सरकार द्वारा स्वतंत्र जिले के रूप में घोषित कर दिया गया. कानून व्यवस्था के मद्देनजर नजर अतिरिक्त पुलिस बल की मांग भी शासन के सामने आने लगी. तब 1984 में धौलपुर आरएसी के जवानों को अपनी स्वतंत्र छठी बटालियन आरएसी के रूप में नई पहचान मिली.

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