धौलपुर. वन्यजीव प्रेमियों के लिए देवरी घड़ियाल केन्द्र से खुशखबरी आई है. केंद्र पर हेचिंग के जरिए 200 अंडों से 192 नन्हे घडिय़ाल के शावक दुनिया का दीदार करने के लिए बाहर आ चुके हैं. इन अंडों को चंबल के घाटों से लाने के बाद ईको सेंटर की हैचरी में चंबल की ही तरह रेत में करीब 1 फीट नीचे दबा कर रखा गया था. इसके बाद अंडों से बच्चे स्वयं ही निकल आये हैं. खास बात यह रही कि जितने तापमान से अंडे कलेक्ट किए जाते हैं. ईको सेंटर में उसी तापमान पर अंडों को रखा जाता है. घड़ियाल के बच्चों को तीन साल तक देवरी घडिय़ाल केन्द्र पर पाला जाता है. 180 सेमी लंबाई होने पर इनको चंबल नदी में छोड़ा दिया जाता है.
डीएफओ स्वरूप दीक्षित ने बताया घड़ियाल केन्द्र पर हर साल 200 अंडों की हेचिंग कर घड़ियाल के बच्चे निकाले जाते हैं. उसके बाद इनका केन्द्र पर लालन पालन किया जाता है. हर साल चंबल नदी के अलग अलग घाटों से अंडे कलेक्ट किए जाते हैं. इस साल भी 16 मई को अंबाह क्षेत्र के बाबू सिंह का घेर, देवगढ़ एवं धौलपुर के बसई डांग क्षेत्र से 200 अंडे कलेक्ट किए गए. उनको देवरी केन्द्र पर रेत में उसी तापमान में रखा गया. जिस तापमान पर रेत से अंडे कलेक्ट किए गए. 30 मई से हेचिंग कराई गई और 10 जून तक 200 अंडे से हेचिंग हुई, जिनमें से 192 बच्चे बाहर आ चुके हैं. आठ अंडे खराब हो गए.
डीएफओ दीक्षित ने बताया मध्यप्रदेश की सोन नदी व केन नदी में भी घडिय़ाल पाए जाते हैं. लेकिन चंबल नदी में सर्वाधिक घड़ियाल पाए जाते हैं. देवरी केन्द्र में इनका पालन किया जाता है. हर साल घड़ियाल के 200 अंडे कलेक्ट किए जाते हैं. इस बार भी 16 मई को अंडे लाकर केंन्द्र के हेचरी में रखे गए. वहां 30 मई से हेचिंग के जरिए 10 जून तक 192 बच्चे जन्म ले चुके हैं. शेष आठ अंडे खराब हो गए.
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3 साल तक बच्चों की होती है देखभाल : डीएफओ स्वरूप दीक्षित ने बताया घड़ियाल के बच्चों को तीन साल तक देवरी घडिय़ाल केन्द्र पर पाला जाता है. 180 सेमी लंबाई होने पर इनको चंबल नदी में छोड़ा दिया जाता है. इस दौरान उनका केन्द्र पर पूरा ख्याल रखा जाता है. समय समय पर उनका स्वास्थ्य चेकअप होता है. चंबल नदी के घाट से जिस तापमान पर अंडे कलेक्ट करके लाए जाते है. उनको केन्द्र पर हैचरी के अंदर रेत में ढक कर रखा जाता है, वहां उतना ही तापमान मेंटेन किया जाता है. घड़ियाल के बच्चे सुरक्षित बाहर निकल सके इसके लिए प्रतिदिन तापमान चेक करते हैं. अंडों से आवाज आने पर उनको ऊपर से थपथपाया जाता है. उसके बाद बच्चे बाहर निकलना शुरू हो जाते हैं. डीएफओ दीक्षित के अनुसार घड़ियाल मादा मार्च के दूसरे सप्ताह यानी 15 मार्च के आसपास ही अंडे दे देती हैं. इसके बाद मई के तीसरे हफ्ते यानी 30 मई से लेकर जून के पहले हफ्ते यानी 10 मई तक अंडों को रेत से बाहर निकालने का सिलसिला शुरू हो जाता है. विशेषज्ञ रेत को ऊपर से थपथपाते हैं इसके बाद अंडों में से आने वाली हल्की सी आवाज को सुनते हैं. इसके बाद देखते ही देखते घड़ियाल बाहर निकलकर दौड़ने लगते हैं.
घड़ियाल के नन्हें बच्चों के बारे में कुछ खास बातें : जन्म के समय बच्चों का वजन 125 ग्राम तक होता है. जन्म के साथ ही बच्चे अपने योक में 10 दिन का भोजन लेकर पैदा होते हैं. 3 से 4 दिन तक घड़ियालों को जिंदा जीरो साइज फिश कर्मचारी अपने हाथों से खिलाते हैं. 3 साल तक इनकी विशेष देखरेख होती है. उसके बाद ये 120 सेंटीमीटर लंबाई हासिल कर लेते हैं. चौथा साल लगते ही चंबल में छोड़ दिया जाता है.
चंबल में घड़ियालों का बड़ा कुनबा : राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में घड़ियालों की बढ़ती संख्या से वन्यजीव प्रेमियों में खुशी देखी जा रही है. वन विभाग अब चंबल नदी में कैरिंग कैपेसिटी का अध्ययन करवा रहा है. रिसर्च टीम देखेगी कि यहां घड़ियाल के साथ-साथ अन्य जलीय जीवो की संख्या क्षमता से अधिक तो नहीं है. घड़ियाल, मगरमच्छ, डॉल्फिन सहित जलीय जीवों की संतुलित संख्या होनी चाहिए, ताकि पर्याप्त भोजन के साथ सभी सुरक्षित रहें. डीएफओ स्वरूप दीक्षित ने बताया 1980 में जब चम्बल में घड़ियाल प्रोजेक्ट शुरू किया गया था. तब 150 घड़ियाल चम्बल में छोड़े गए थे. चार दशक बाद घड़ियालों की आबादी 14 गुना बढ़ी है. 2022 के आंकड़ों में नदी में 2014 घड़ियाल मिले थे. इनमें 400 से ज्यादा मादा है. मादा घड़ियाल साल में एक बार 40 तक अंडे देती है. रिसर्चर इसे बेहतर मान रहे हैं.
डीएफओ का कहना है की चंबल नदी में घड़ियालों की जो संख्या बढ़ रही है, वह वन विभाग के अथक प्रयासों का परिणाम है. नए सर्वे में जलीय जीवों की संख्या पिछले साल की अपेक्षा बढ़ी है. इसमे घड़ियाल के साथ साथ मगरमच्छ, डॉल्फिन की संख्या भी अधिक पाई गई है. चंबल नदी की क्षमता के अनुसार जलीय जीवों की संख्या कितनी होनी चाहिए इसके लिए वन विभाग कैरिंग कैपिसिटी का सर्वे करवा रहा है. कैरिंग कैपिसिटी सर्वे के अनुसार अगर चंबल नदी की क्षमता पूरी हो चुकी है, तो आगामी समय में घड़ियाल गैप के साथ भारत की अन्य नदियों में छोड़ने पर विचार किया जा सकता है.
डॉल्फिन 96 व मगरमच्छो की संख्या हुई 868 : अभी हाल ही में हर साल की तरह चंबल नदी में एक सर्वे किया गया था. यह सर्वे श्योपुर की पार्वती नदी से लेकर भिंड तक किया गया. 15 दिन तक चले इस सर्वे के दौरान जलीय जीवों का जो आंकड़ा सामने आया है, उसमे डॉल्फिन की संख्या बढ़कर 96 हो गई है. इसके साथ ही घड़ियाल 2108 और मगरमच्छ 868 पाए गए है.