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राजस्थान में यहां पानी के अभाव में 28 गांवों के 400 लोगों ने घरबार छोड़ किया पलायन

सरमथुरा उपखंड के गौलारी पंचायत में पानी के अभाव के चलते 400 लोग गांव छोड़कर पलायन कर गए हैं. ग्रामीणों के सूने घरो में न तो चोरी का भय है न ही घर की चिंता. सिर्फ प्रेम है तो बस पशुओं से, जिनको जीवित रखने के लिए घर से 50 से 60 किमी दूर नदी के किनारे अस्थायी आसियाने बनाकर पशुओं का लालन-पालन करने में लगे हैं. लेकिन इन सबसे प्रशासन के अधिकारी बिल्कुल अनभिज्ञ हैं.

पानी के अभाव में 28 गांवों के लोगों ने किया पलायन
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Published : May 11, 2019, 11:52 PM IST

बसेड़ी (धौलपुर). सरमथुरा उपखंड के गौलारी पंचायत में गर्मी शुरू होते ही पानी की किल्लत बढ़ने लग जाती है. जैसे ही पानी की किल्लत बढ़ने लगती है. वैसे ही ग्रामीणों का पालतु पशुओं के साथ पलायन भी शुरू हो जाता है. गौलारी के अधिकांश गांवो में प्रत्येक घर में करीब 20 से 25 दुधारू पशु मौजूद हैं. लेकिन गर्मी के मौसम में इन गांवों के ग्रामीणों का जीवन जीना मुश्किल हो जाता है.

पानी के अभाव में 28 गांवों के 400 लोगों ने किया पलायन

ऐसी स्थिति में ग्रामीणों के आगे पालतु पशुओं को जीवित रखना किसी चुनौती से कम नहीं रहता. गांवो में हालात ऐसे हैं कि इंसानों को पीने के लिए पानी नहीं है तो मवेशियों को कैसे जिंदा बचा सकते हैं. साथ ही उनके खाने के लिए चारे का अभाव है. ग्रामीण मवेशियों को जिंदा रखने के लिए अपनी जिंदगी को दांव पर लगा देते हैं और मवेशी सहित पलायन कर जाते हैं. गौलारी पंचायत के कई गांवों में सिर्फ पक्षियों की चहल-पहल के अलावा चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ है.

शनिवार को संवाददाता ने गौलारी पंचायत के चंदरपुरा, गौलारी, बल्लापुरा, गोलीपुरा आदि गांवों का दौरा किया गया. वास्तविक स्थिति को देखा तो यहां का नजारा देखकर ऐसा प्रतीत हुआ कि कई साल पहले जब पुलिस दस्युओं की तलाश करने के लिए गांवों में जाती थी. उस समय गांव के लोग पुलिस से बचने के लिए गांव छोड़कर भाग जाते थे. उस समय वहां पर सन्नाटा पसर जाता था. लेकिन अब ये गांव पुलिस की खातिर नहीं मवेशियों को जीवित रखने के लिए पलायन कर गए हैं. गांव के किसी घर पर ताले लटके हैं तो किसी के घर पर दरवाजे में पत्थरों से दीवार चिनी हुई है. लेकिन इन घरों की तस्वीर खुद गवाह बन रही है.

चंदरपुरा में दो घरों में चहल-पहल को देख जब उन लोगों तक पहुंचा तो इन लोगों की बात सुनकर चकित रह गया. घर में रामरज और उनकी पत्नी मौजूद थे. जब उनसे पूछा कि गांव सूना क्यूं है तो बोले साहब जीवन जीने के लिए घर भी छोड़ना पड़ता है. डांग इलाके में पानी का अभाव है. पशुओं के लिए चारा नहीं है. ऐसे में गांव में रहकर क्या करेंगे. उसने कहा साहब अब तो हमारा आसियाना सैपऊ और बाड़ी के समीप पार्वती नदी का किनारा है. रामरज ने बताया कि गौलारी पंचायत के 28 गांवो में से करीब 400 लोग पशुओं को लेकर पलायन कर गए हैं, जिसके कारण उन गांवों में सन्नाटा पसरा है.

पार्वती और यमुना नदी किनारे बनाए हैं अस्थायी आशियाने
जब हमारे संवाददाता ने पलायन करने वाले लोगों की तहकीकात की तो पता चला कि ये लोग पशुओं को जीवित रखने के लिए पार्वती और यमुना नदी के किनारे खेतों में अपना अस्थायी आसियाना बनाए हुए हैं. जो खुले आसमान में बरसात, आंधी, तुफान आदि मुसीबतों से जूझने के बाद भी पशुओं को बचाए हुए हैं. ये लोग एक बार घर से जाने के बाद जून में बारिश होने के बाद ही वापिस लौटते हैं. लेकिन इन लोगों की सुध लेने के लिए आज तक कोई नहीं पहुंचा है.

बच्चों की पढ़ाई हो रही है प्रभावित
गांव के गांव पलायन करने के कारण इन लोगों के बच्चों का भविष्य भी खराब हो रहा हैं. स्कूलो में अध्ययनरत बच्चे परिवार के साथ पलायन कर जाते हैं, जिसके कारण उनकी पढ़ाई भी प्रभावित होती है. वहीं स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है.

बसेड़ी (धौलपुर). सरमथुरा उपखंड के गौलारी पंचायत में गर्मी शुरू होते ही पानी की किल्लत बढ़ने लग जाती है. जैसे ही पानी की किल्लत बढ़ने लगती है. वैसे ही ग्रामीणों का पालतु पशुओं के साथ पलायन भी शुरू हो जाता है. गौलारी के अधिकांश गांवो में प्रत्येक घर में करीब 20 से 25 दुधारू पशु मौजूद हैं. लेकिन गर्मी के मौसम में इन गांवों के ग्रामीणों का जीवन जीना मुश्किल हो जाता है.

पानी के अभाव में 28 गांवों के 400 लोगों ने किया पलायन

ऐसी स्थिति में ग्रामीणों के आगे पालतु पशुओं को जीवित रखना किसी चुनौती से कम नहीं रहता. गांवो में हालात ऐसे हैं कि इंसानों को पीने के लिए पानी नहीं है तो मवेशियों को कैसे जिंदा बचा सकते हैं. साथ ही उनके खाने के लिए चारे का अभाव है. ग्रामीण मवेशियों को जिंदा रखने के लिए अपनी जिंदगी को दांव पर लगा देते हैं और मवेशी सहित पलायन कर जाते हैं. गौलारी पंचायत के कई गांवों में सिर्फ पक्षियों की चहल-पहल के अलावा चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ है.

शनिवार को संवाददाता ने गौलारी पंचायत के चंदरपुरा, गौलारी, बल्लापुरा, गोलीपुरा आदि गांवों का दौरा किया गया. वास्तविक स्थिति को देखा तो यहां का नजारा देखकर ऐसा प्रतीत हुआ कि कई साल पहले जब पुलिस दस्युओं की तलाश करने के लिए गांवों में जाती थी. उस समय गांव के लोग पुलिस से बचने के लिए गांव छोड़कर भाग जाते थे. उस समय वहां पर सन्नाटा पसर जाता था. लेकिन अब ये गांव पुलिस की खातिर नहीं मवेशियों को जीवित रखने के लिए पलायन कर गए हैं. गांव के किसी घर पर ताले लटके हैं तो किसी के घर पर दरवाजे में पत्थरों से दीवार चिनी हुई है. लेकिन इन घरों की तस्वीर खुद गवाह बन रही है.

चंदरपुरा में दो घरों में चहल-पहल को देख जब उन लोगों तक पहुंचा तो इन लोगों की बात सुनकर चकित रह गया. घर में रामरज और उनकी पत्नी मौजूद थे. जब उनसे पूछा कि गांव सूना क्यूं है तो बोले साहब जीवन जीने के लिए घर भी छोड़ना पड़ता है. डांग इलाके में पानी का अभाव है. पशुओं के लिए चारा नहीं है. ऐसे में गांव में रहकर क्या करेंगे. उसने कहा साहब अब तो हमारा आसियाना सैपऊ और बाड़ी के समीप पार्वती नदी का किनारा है. रामरज ने बताया कि गौलारी पंचायत के 28 गांवो में से करीब 400 लोग पशुओं को लेकर पलायन कर गए हैं, जिसके कारण उन गांवों में सन्नाटा पसरा है.

पार्वती और यमुना नदी किनारे बनाए हैं अस्थायी आशियाने
जब हमारे संवाददाता ने पलायन करने वाले लोगों की तहकीकात की तो पता चला कि ये लोग पशुओं को जीवित रखने के लिए पार्वती और यमुना नदी के किनारे खेतों में अपना अस्थायी आसियाना बनाए हुए हैं. जो खुले आसमान में बरसात, आंधी, तुफान आदि मुसीबतों से जूझने के बाद भी पशुओं को बचाए हुए हैं. ये लोग एक बार घर से जाने के बाद जून में बारिश होने के बाद ही वापिस लौटते हैं. लेकिन इन लोगों की सुध लेने के लिए आज तक कोई नहीं पहुंचा है.

बच्चों की पढ़ाई हो रही है प्रभावित
गांव के गांव पलायन करने के कारण इन लोगों के बच्चों का भविष्य भी खराब हो रहा हैं. स्कूलो में अध्ययनरत बच्चे परिवार के साथ पलायन कर जाते हैं, जिसके कारण उनकी पढ़ाई भी प्रभावित होती है. वहीं स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है.

Intro:सरमथुरा उपखंड के गौलारी पंचायत में पानी के अभाव में 400 सौ लोग गांव छोडकर पलायन कर गए है। ग्रामीणो को सूने घरो में ना तो चोरी का भय है ना ही घर की चिंता। सिर्फ प्रेम है तो बस पशुओ से जिनके जीवित रखने के लिए घर से 50 से 60 किमी दूर नदी के किनारे अस्थायी आसियाने बनाकर पशुओ का लालन-पालन करने में लगे है। लेकिन इस सबसे प्रशासन के अधिकारी बिल्कुल अनभिज्ञ है।Body:बसेडी(धौलपुर)। सरमथुरा उपखंड के गौलारी पंचायत में गर्मी का दौर शुरू होते ही पानी की किल्लत बढने लग जाती है। जैसे ही पानी की किल्लत बढने लगती है ग्रामीणो का पालतू पशुओ के साथ पलायन भी शुरू हो जाता है। गौलारी के अधिकांश गांवो में पत्येक घर में करीब 20 से 25 दुधारू पशु मौजूद है लेकिन गर्मियो के मौसम में इन गांवो के ग्रामीणो को जीवन जीना मुश्किल हो जाता है। तब ऐसी स्थिति में ग्रामीणो के आगे पालतू पशुओ को जीवित बचाना चुनौती से कम नही है। गांवो में हालात ऐसे है कि इंसानो को पीने के लिए पानी नही है तो मवेशी को कैसे जिंद बचा सकते है। साथ ही मवेशी के खाने के लिए चारे का अभाव है। ग्रामीण मवेशी को जिंदा रखने के लिए अपनी जिंदगी को दांव पर लगा देते है और मवेशी सहित पलायन कर जाते है। ऐसा ही नजारा गौलारी पंचायत में देखने को मिल रहा है। गांवो में सिर्फ पक्षियो की चहल-पहल के अलावा चारो तरफ सिर्फ संन्नाटा पसरा पडा है।
शनिवार को भास्कर ने गौलारी पंचायत के चंदरपुरा, गौलारी, बल्लापुरा, गोलीपुरा आदि का दौरा कर वास्तविक स्थिति को देखा तो गांवो का नजारा देख ऐसा प्रतीत हुआ कि कई बर्ष पूर्व जब पुलिस दस्युओ की तलाश करने के लिए गांवो में जाती थी तो गांव के लोग पुलिस से बचने के लिए गांव को छोडकर भाग जाते थे तब गांवो में ऐसा संन्नाटा पसर जाता था। लेकिन अब ये गांव पुलिस की खातिर नही मवेशी को जीवित रखने के लिए पलायन कर गए है। गांव के किसी घर पर ताले लटके है तो किसी के घर पर दरवाजे में पत्थरो से दीवार चिनी हुई है। लेकिन इन घरो की तस्वीर खुद गवाह बन रही है।
चंदरपुरा में दो घरो में चहल-पहल को देख जब भास्कर इन लोगो तक पहुॅचा तो इन लोगो की बात सुनकर चकित रह गया। घर में रामरज व उसकी पत्नी मौजूद थी जब उससे पूछा कि गांव सूना क्यू है तो बोला साहब जीवन जीने के लिए घर भी छोडना पडता है। डांग इलाके में पानी का अभाव है, पशुओ के लिए चारा नही है। ऐसे में गांव में रहकर क्या करेगे। उसने कहां साहब अब तो हमारा आसियाना सैपऊ व बाडी के समीप पार्वती नदी का किनारा है। रामरज ने बताया कि गौलारी पंचायत के 28 गांवो में से करीब 400 सौ लोग पशुओ को लेकर पलायन कर गए है। जिसके कारण गांवो में संन्नाटा पसरा पडज्ञ है।

पार्वती व यमुना नदी किनारे बनाए है अस्थायी आसियाने
भास्कर ने जब पलायन करने वाले लोगो की तहकीकात की तो पता चला कि ये लोग पशुओ को जीवित रखने के लिए पार्वती व यमुना नदी किनारे खेतो में अपना अस्थायी आसियाना बनाए हुए है। जो खुले आसमान में बरसात, आंधी, तूफान आदि मुसीबतो से जूझने के बाद भी पशुओ को बचाए हुए है। ये लोग एक बार घर से जाने के बाद जून में बारिश होने के बाद ही वापिस लौटते है। लेकिन इन लोगो की सुध लेने के लिए आजतक कोई नही पहुॅचा है।

बच्चो की पढाई होती है प्रभावित
गांव के गांव पलायन करने के कारण इन लोगो के बच्चो का भविष्य भी खराब हो रहा है। स्कूलो में अध्ययनरत बच्चे परिवार के साथ पलायन कर जाते है जिसके कारण बच्चो की पढाई भी प्रभावित होती है वही स्वास्थ्य पर विपरीत असर पडता है।

रिपोर्ट- प्रहलाद गर्ग बसेडीConclusion:
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