बसेड़ी (धौलपुर). सरमथुरा उपखंड के गौलारी पंचायत में गर्मी शुरू होते ही पानी की किल्लत बढ़ने लग जाती है. जैसे ही पानी की किल्लत बढ़ने लगती है. वैसे ही ग्रामीणों का पालतु पशुओं के साथ पलायन भी शुरू हो जाता है. गौलारी के अधिकांश गांवो में प्रत्येक घर में करीब 20 से 25 दुधारू पशु मौजूद हैं. लेकिन गर्मी के मौसम में इन गांवों के ग्रामीणों का जीवन जीना मुश्किल हो जाता है.
ऐसी स्थिति में ग्रामीणों के आगे पालतु पशुओं को जीवित रखना किसी चुनौती से कम नहीं रहता. गांवो में हालात ऐसे हैं कि इंसानों को पीने के लिए पानी नहीं है तो मवेशियों को कैसे जिंदा बचा सकते हैं. साथ ही उनके खाने के लिए चारे का अभाव है. ग्रामीण मवेशियों को जिंदा रखने के लिए अपनी जिंदगी को दांव पर लगा देते हैं और मवेशी सहित पलायन कर जाते हैं. गौलारी पंचायत के कई गांवों में सिर्फ पक्षियों की चहल-पहल के अलावा चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ है.
शनिवार को संवाददाता ने गौलारी पंचायत के चंदरपुरा, गौलारी, बल्लापुरा, गोलीपुरा आदि गांवों का दौरा किया गया. वास्तविक स्थिति को देखा तो यहां का नजारा देखकर ऐसा प्रतीत हुआ कि कई साल पहले जब पुलिस दस्युओं की तलाश करने के लिए गांवों में जाती थी. उस समय गांव के लोग पुलिस से बचने के लिए गांव छोड़कर भाग जाते थे. उस समय वहां पर सन्नाटा पसर जाता था. लेकिन अब ये गांव पुलिस की खातिर नहीं मवेशियों को जीवित रखने के लिए पलायन कर गए हैं. गांव के किसी घर पर ताले लटके हैं तो किसी के घर पर दरवाजे में पत्थरों से दीवार चिनी हुई है. लेकिन इन घरों की तस्वीर खुद गवाह बन रही है.
चंदरपुरा में दो घरों में चहल-पहल को देख जब उन लोगों तक पहुंचा तो इन लोगों की बात सुनकर चकित रह गया. घर में रामरज और उनकी पत्नी मौजूद थे. जब उनसे पूछा कि गांव सूना क्यूं है तो बोले साहब जीवन जीने के लिए घर भी छोड़ना पड़ता है. डांग इलाके में पानी का अभाव है. पशुओं के लिए चारा नहीं है. ऐसे में गांव में रहकर क्या करेंगे. उसने कहा साहब अब तो हमारा आसियाना सैपऊ और बाड़ी के समीप पार्वती नदी का किनारा है. रामरज ने बताया कि गौलारी पंचायत के 28 गांवो में से करीब 400 लोग पशुओं को लेकर पलायन कर गए हैं, जिसके कारण उन गांवों में सन्नाटा पसरा है.
पार्वती और यमुना नदी किनारे बनाए हैं अस्थायी आशियाने
जब हमारे संवाददाता ने पलायन करने वाले लोगों की तहकीकात की तो पता चला कि ये लोग पशुओं को जीवित रखने के लिए पार्वती और यमुना नदी के किनारे खेतों में अपना अस्थायी आसियाना बनाए हुए हैं. जो खुले आसमान में बरसात, आंधी, तुफान आदि मुसीबतों से जूझने के बाद भी पशुओं को बचाए हुए हैं. ये लोग एक बार घर से जाने के बाद जून में बारिश होने के बाद ही वापिस लौटते हैं. लेकिन इन लोगों की सुध लेने के लिए आज तक कोई नहीं पहुंचा है.
बच्चों की पढ़ाई हो रही है प्रभावित
गांव के गांव पलायन करने के कारण इन लोगों के बच्चों का भविष्य भी खराब हो रहा हैं. स्कूलो में अध्ययनरत बच्चे परिवार के साथ पलायन कर जाते हैं, जिसके कारण उनकी पढ़ाई भी प्रभावित होती है. वहीं स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है.