दौसा. इंसान हमेशा अपने वंश का नाम चलाने के लिए संतान के रूप में पुत्र की कामना करता है. शायद ये कामना दौसा के रहने वाले बालूराम सैनी ने भी की हो, लेकिन उन्हें क्या पता था कि अंतिम विदाई में पुत्र ही उनसे दूरियां बना लेगा. ऐसा ही एक मामला जिले के बांदीकुई उपखंड से सामने आया है, जहां पत्रु के नहीं आने पर 6 पोतियों ने अपने दादा की अर्थी को कांधा दिया और परंपरा के मुताबिक मुखाग्नि देकर साबित कर दिया कि अगर पुत्र अपने कर्तव्य से विमुख हो जाए तो पुत्री या पोतियां भी पुत्र का दायित्व निभा सकती हैं.
बता दें, ये खबर दौसा जिले के बांदीकुई उपखंड मुख्यालय की है, जहां बालूराम सैनी की मृत्यु के बाद दाह संस्कार के लिए शहर के बसवा रोड पर कॉलेज के समीप स्थित श्मशान घाट में गमगीन माहौल में मृतक बालूराम की पोतियों ने उसे मुखाग्नि दी. शहर के वार्ड नंबर 26 झील की ढाणी से मंगलवार शाम को अपने दादा को छह बहनों ने मिलकर कांधा दिया, तो यह नजारा देखकर हर किसी की नम आंखों से और दबी जुबान से एक ही शब्द निकला कि भगवान पुत्र से अच्छी तो पुत्रियां होती हैं.
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दरअसल, बांदीकुई शहर के वार्ड नंबर 26 में एक 95 वर्षीय बुजुर्ग बालूराम सैनी का निधन हो गया. निधन के बाद समाज के लोगों ने मृतक के पुत्र कजोड़, जो कि अलवर जिले के भानगढ़ में रहता है, उसको फोन पर सूचना दी, लेकिन पुत्र ने अपने पिता की मौत पर भी आने से मना कर दिया. उसके बाद अपने दादा की मौत पर आई 6 पोतियों ने मिलकर अपने दादा का अंतिम संस्कार करने का बीड़ा उठाया और घर से लेकर श्मशान घाट तक पोतियों ने बारी-बारी से अपने दादा को कंधा दिया. वहीं, श्मशान घाट में जाकर बड़ी पोती मंजू देवी ने मुखाग्नि देकर मुंडन करवा कर बेटे का फर्ज निभाया. अंतिम संस्कार में शामिल हुए वकील रामावतार सैनी ने बताया कि मृतक के पुत्र कजोड़ की पत्नी का तकरीबन 20 वर्ष से अधिक समय पहले ही निधन हो गया था, जिसके बाद कजोड़ अपने पिता और छह पुत्रियों को छोड़कर चला गया. उसके बाद दादा ने ही अपनी 6 पतियों को पाल कर उनकी शादी की थी.