चूरू. फाल्गुन की मस्ती में सराबोर होली के रसिया रात-रात भर चंग की थाप पर थिरकते रहते हैं. होली के धमाल गीतों में जान भरने का काम चंग ही करता है. या यूं कहे कि बिना चंग के धमाल हो ही नहीं सकता. होली के त्योहार पर धमाल के साथ चंग बजाने का अपना महत्व है, साथ ही चंग की बेहतरीन क्वालिटी होली के रसियो के द्वारा गाये जाने वाले धमाल गीतों की पहली जरूरत होती है. ये चंग मशीन ने नहीं बनते, बल्कि कारीगर अपने हाथों से तैयार करते हैं. एक बेहतरीन क्वालिटी का डफ बनाने में तीन से चार दिन का समय लगता है. यह काम मेहनत मांगता है.
चूरू शहर में होली से करीब एक महीने पहले ही कुछ परिवार चंग बनाने का काम शुरू कर देते है. हम आपको चूरू के ऐसे परिवार से मिलवाते है, जो 100 साल से बेहतरीन क्वालिटी के डफ तैयार कर रहा है. इस परिवार के द्वारा बनाये गए डफ फाल्गुन के धमाल में एक अलग ही मिठास घोलते है. यही वजह है कि इस परिवार के सदस्यों के बनाए गए डफ ना केवल चूरू में या जिले से बाहर बल्कि विदेशों तक में पसंद किए जा रहे है. यह परिवार है चूरू शहर के चांदनी चौक का चंदेल परिवार.
पढ़ें: दिव्यांगों के बनाए हर्बल गुलाल की दिल्ली से लेकर मुंबई तक डिमांड, फूलों और पत्तों से बना रहे गुलाल
जानिए कैसे तैयार होता है चंगचंग का घेरा बनाने का काम सबसे मेहनत का काम होता है. डफ का घेरा बनाने में ज्यादातर आम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है. आम की लकड़ी काफी हल्की होती है और इससे बनाये गए डफ को काफी देर तक हाथ में रखा जा सकता है. यही वजह की आम की लकड़ी का घेरा बनाया जाता है. आम के घेरे पर भेड़ की खाल को चढ़ाया जाता है. भेड़ की खाल को डफ के घेरे पर लगाने के लिए मैथी व सिलिकॉन का घोल काम में लिया जाता है. इससे पहले भेड़ की खाल को आंकड़े के पौधा के दूध से साफ किया जाता है. एक डफ तैयार करने में चार से छह घंटे लगते है, लेकिन सूखने में तीन से चार दिन लग सकते है. डफ जितना ज्यादा सूखा होगा इसकी धून उतनी ही अच्छी होगी.
एक महीने में तीन-चार हजार डफ बनाता चंदेल परिवार
चंदेल परिवार के सदस्यों की ओर से केवल फागुन के महीने में ही डफ बनाए जाते है. इस एक महीने के दौरान परिवार के सभी सदस्य डफ बनाने के काम में जुट जाते हैं. एक महीने में लगभग तीन से चार हजार डफ तैयार किए जाते हैं. फाल्गुन के महीने में इनके घर का हर कोना चंग से भरा रहता है. वहीं अगर कीमत की बात करे तो क्वालिटी के हिसाब से चंग की कीमत होती है. क्वालिटी के आधार पर तय होता है कि किस चंग की क्या कीमत होगी. डफ की कीमत इसकी साइज व डिजाइन के अनुसार ली जाती है. यहां 400 रुपए से लेकर 800 रुपए तक की कीमत के डफ होते हैं.
पढ़ें: फागोत्सव : यहां चंग की थाप पर होता है सुंदरकांड का पाठ
वहीं ईटीवी भारत से बात करते हुए चंदेल परिवार के सदस्य योगेश कुमार ने बताया कि उनका परिवार पिछले 100 साल से डफ तैयार कर रहा है. पहले खाती के यहां से लकड़ी का घेरा बनाया जाता है, फिर भेड़ या बकरी का चमड़ा खरीद कर लाते है, उसे आंकड़े की लकड़ी से धोते है और दो-तीन दिन सूखाने के बाद में डफ तैयार करते है. एक डफ तैयार होने में करीब चार-पांच दिन लगते है. चूरू ही नहीं आसपास के जिलों के साथ विदेशों तक में मांग के मुताबिक डफ की सप्लाई की जाती है. उन्होंने बताया कि यहां के बनाए गए डफ क्वालिटी के कारण बेहद पसंद किए जाते है.
देशभर के साथ-साथ राजस्थान में रंगों का त्यौहार होली से एक महीने पहले से मंदिरों और समाजिक कार्यक्रमों में फगोत्सव की धूम देखने को मिल जाती है और इस कार्यक्रम में चंग की थाप चार चांद लगाने का काम करती है. ऐसे में होली का मजा दोगुना हो जाता है. बता दें कि इस बार धुलंडी 10 मार्च को मनाई जाएगी. होलिका दहन का मुहूर्त 9 मार्च शाम 6:40 बजे से 09:04 तक रहेगा.