चित्तौड़गढ़. कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से परंपरागत कृषि विकास योजना अंतर्गत जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए दो दिवसीय जैविक खेती तकनीकी आधारित जागरूकता प्रशिक्षण का आयोजन किया गया. पंच देवला क्लस्टर से 40 कृषकों ने भाग लिया. इस दौरान किसानों को ना केवल जैविक खाद का महत्व समझाया गया बल्कि तकनीकी जानकारी से भी रूबरू कराया गया.
बतौर मुख्य वक्ता केंद्र के मुख्य प्रभारी डॉ. एसके अग्रवाल ने कहा कि स्वास्थ्य जीवन और भूमि के टिकाऊपन के लिए जैविक खेती को बढ़ावा देना जरूरी है. किसान जैविक खेती के प्रति जागरूक रहकर विभिन्न सरकारी योजनाओं का भी लाभ उठा सकते हैं. प्रशिक्षण प्रभारी और मृदा वैज्ञानिक डॉ. रतन लाल सोलंकी ने जैविक खेती के लिए किसानों को जैविक सर्टिफिकेशन प्राप्त करने की प्रक्रिया समझाइ और योजना के उद्देश्य और लाभ से अवगत कराते हुए कहा कि भूमि सुधार के लिए जिप्सम प्रयोग, हरी खाद का महत्व, मृदा स्वास्थ्य के लिए जैविक खादों का प्रयोग, वर्मी कंपोस्ट बनाने की विभिन्न विधियां और जैविक खाद वर्मी वाश तैयार करने की प्रायोगिक जानकारी भी दी.
डॉ. सोलंकी ने वर्मी कंपोस्ट यूनिट में किसानों को तैयार खाद और केंचुए अलग करने और बैड तैयार करने का भी तरीका समझाया. साथ ही मिट्टी के स्वास्थ्य की जांच के लिए मिट्टी नमूना लेने की विधि बताई. उद्यान वैज्ञानिक डॉ. राजेश जलवानिया ने सब्जी और फल उत्पादन की उन्नत तकनीकी और बगीचे लगाने और पॉलीहाउस में सब्जी फसलों के उत्पादन के बारे में तकनीकी जानकारी प्रदान की. मौसम वैज्ञानिक डॉ. प्रियंका स्वामी और केंद्र की तकनीकी सहायक दीपा इंदौरिया ने भी आवश्यक जानकारी दी.