चित्तौड़गढ़. जिले में आस्था के प्रतीक भगवान सांवलिया सेठ के मंदिर में हर वर्ष जलझूलनी एकादशी का मेला लगता है. लेकिन इस साल कोरोना संक्रमण को देखते हुए राज्य सरकार के निर्देशों के बाद मेला नहीं लगेगा. इस संबंध में जिला कलेक्टर ने बकायदा आदेश भी जारी कर दिया है.
जानकारी के अनुसार चित्तौड़गढ़ जिले के मंडला कस्बे में स्थित भगवान सांवलिया सेठ के मंदिर में राजस्थान ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तरप्रदेश, पंजाब सहित कई राज्यों से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. वैसे तो वर्ष पर्यंत यहां कई आयोजन होते हैं, जिनमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. लेकिन सबसे बड़ा आयोजन जलझूलनी एकादशी का मेला होता है.
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इस तीन दिवसीय मेले में कई धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन होते हैं. साथ ही मुख्य दिवस के दिन भगवान को चांदी के रथ में विराजमान कर नगर भ्रमण कराते हुए सरोवर पर झूलने के लिए ले जाया जाता है. इस कार्यक्रम में कुछ घण्टों में ही लाखों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं. करीब एक माह पहले मंदिर प्रशासन को इस मेले की तैयारियां शुरू करनी पड़ती है. लेकिन कोविड-19 को देखते हुए राज्य सरकार ने धार्मिकस्थलों में प्रवेश और दर्शन पर रोक लगाई हुई है.
ऐसे में धार्मिकस्थलों पर विभिन्न आयोजन सांकेतिक रूप से कर परंपराओं का निर्माण किया जा रहा है. चित्तौड़गढ़ जिले के सांवलियाजी मंदिर में भी राज्य सरकार के निर्देश के बाद 22 मार्च से ही प्रवेश बंद है. वहीं अभी तक राज्य सरकार ने मंदिर खोलने की अनुमति नहीं दी है.
जलझूलनी एकादशी का मेला अगस्त में इसी माह 28 से 31 अगस्त के बीच होना है. लेकिन जिला प्रशासन ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि मंदिरों में किसी प्रकार के धार्मिक आयोजन नहीं होंगे. जुलूस, मेले पर भी रोक लगा दी गई है. ऐसे में सांवलियाजी मंदिर में भरने वाला यह वार्षिक मेला भी आयोजित नहीं होगा.
इस संबंध में जिला कलेक्टर ने 2 दिन पूर्व ही लिखित में आदेश भी जारी किए हैं. इसके बाद मंदिर प्रशासन की ओर से मेला आयोजन को लेकर कोई तैयारियां शुरू नहीं की है. वरना हर वर्ष मेला आयोजन को लेकर भारी बंदोबस्त करने पड़ते थे. जगह-जगह बैरिकेड्स लगाने पड़ते हैं और पूरे जिले से अतिरिक्त पुलिस जाब्ता भी तैनात करना पड़ता है.
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समय बताएगा कैसे होगा परंपरा का निर्वहन
जानकारी में सामने आया कि हर वर्ष जलझूलनी एकादशी के अवसर पर सुबह 11.15 बजे नियमित राजभोग आरती के बाद विशेष आरती का आयोजन होता है. इसके बाद भगवान के बाल स्वरूप को रजत बेवाण विराजमान किया जाता है. बाद में हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की के जयकारों के साथ बेवाण को चांदी के रथ में स्थापित किया जाता है.
बाद में चांदी के रथ को श्रद्धालु खींचते हैं और नगर भ्रमण पर निकलते हैं. यहां मंदिर से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर सरोवर पर जाते हैं, जहां भगवान को जल में झुलाया जाता है और विशेष आरती होती है. वैसे तो जिला प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया है कि इस बार मेला नहीं भरेगा, लेकिन इन परंपराओं का निर्वहन कैसे होगा. यह आने वाला समय बताएगा. फिलहाल प्रशासन ने इस संबंध में कोई निर्देश जारी नहीं किए हैं.