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अस्पताल में अंधविश्वास ! परिजन मटके में ले जाते हैं मृतक की आत्मा

भोपों के जरिए जोत के रूप में घर ले जाते हैं परिजन. किसी घटना या दुर्घटना में घायल लोगों के अस्पताल में मरने वाले की आत्मा का माना जाता है. विचरण गांव से भाव निकालते हुए हॉस्पिटल लाया जाता है भोपों का दल जिस बेड पर हुई मौत, वहीं से जोत उठाई जाती है.

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Published : May 12, 2023, 10:48 AM IST

Updated : May 12, 2023, 11:17 AM IST

चित्तौड़गढ़. इन दिनों सरकारी अस्पताल में यदि आपको भोपे टोने टोटके करते नजर आए तो आश्चर्य न करें.सरकारी अस्पताल में इस प्रकार का नजारा आम हो गई है. इसे अंधविश्वास माने या फिर परंपरा, घटना दुर्घटना में अस्पताल में मरने वाले लोगों की आत्मा को ले जाने का समाज के एक तबके में रिवाज बन गया है. इसमें परिवार के लोग गांव के भोपों को बड़े ही आदर सत्कार के साथ अस्पताल लेकर आते हैं. इसके पीछे माना जाता है कि उनमें आत्मा का वास है. ऐसे में परिवार के लोग उनके जरिए अस्पताल पहुंचते हैं और जिस बेड पर संबंधित व्यक्ति की मौत हुई है, वहां भोपे बकायदा पूरी श्रद्धा भाव के साथ निकालते हुए पहुंचते हैं, जहां कथित रूप से आत्मा का विचरण माना जाता है.

आत्मा को ले जाने वाले लोग शाम को ही अस्पताल पहुंच जाते हैं. जहां संबंधित बेड से कथित रूप से ज्योत के रूप में आत्मा को बाहर ले जाते है. फिर जहां कहीं भी खुली जगह दिखती है वहां संबंधित मृतक के नाम अगरबत्ती और घी का धूप-दीप जलाते हैं. उसके बाद रात भर उनके नाम पर रतजगा (पूरी रात जागकर) के बाद सुबह मृतक के निकट परिजन स्नान ध्यान के बाद भोपों के साथ नारियल और घी का धूप जलाकर भोपों में आत्मा को बुलाया जाता है.

कई बार परिजन ये भोपे लोहे की जंजीर को आत्मा द्वारा कथित रूप से परेशान किए जाने के नाम पर अपने शरीर पर पटकते हैं. धूप में ज्योत प्रकट होने पर भोपों द्वारा आत्मा की उपस्थिति की हरी झंडी दिखाने के साथ ही भभकती ज्योत को नई मटकी में चावल और गेहूं भर कर विराजित किया जाता है. बाद में परिवार के लोग ढोल बजाते हुए ज्योत को आदर सत्कार के साथ अपने घर ले जाते हैं, जहां रातभर परिवार के लोग मटकी में बंद ज्योत को झूला झूलाते हैं. रात्रि जागरण के साथ अल सुबह शुभ मुहूर्त में भोपों के सानिध्य में संबंधित परिवार द्वारा चिन्हित स्थान पर ज्योत मूर्ति या फिर चबूतरे के रूप में स्थापित कर दी जाती है.

बैजनाथिया से ज्योत लेने आए हजारीलाल जटिया के अनुसार उसके साले की कुछ साल पहले दुर्घटना में घायल होने पर जिला चिकित्सालय मौत हो गई थी. देवी देवताओं का ध्यान करने पर परिवार के लोगों की समस्याओं का कारण उनकी आत्मा का भटकना बताया. इसी कारण उन्हें एक जगह स्थापित करने के लिए भोपों के साथ परिवार के लोग जिला चिकित्सालय आए. यहां पूरी रस्म करने के बाद आत्मा को ज्योत के रूप में घर ले जाएंगे. वहां गाजे-बाजे के साथ एक स्थान पर मूर्ति के रूप में ज्योत (आत्मा) को स्थापित कर दिया जाएगा.

पढ़ें खुशखबरी - चित्तौड़गढ़ दुर्ग की प्राचीर अब रात में भी जगमगाएगी, फसाड लाइट लगाने की मिली अनुमति

रास्ते में बिखेरते हैं नारियल और अनाज : वरिष्ठ पत्रकार जेपी दशोरा के अनुसार यह एक अंधविश्वास है लेकिन धीरे-धीरे अब एक परंपरा बन गई है. हालांकि इसका कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं है परंतु गांव में लोग आज भी घटना दुर्घटना में हॉस्पिटल में मौत हुई हो या फिर किसी अन्य स्थान पर वहां पर परिवार के लोग भोपों को लेकर गाजे बाजे के साथ पहुंचते हैं. तथाकथित आत्मा को ज्योत के रूप में अपने घर ले जाते हैं. आत्मा को घर ले जाने के दौरान रास्ते में कई लोग नारियल और गेहूं चावल आदि भी छिटते जाते हैं. इसके पीछे माना जाता है कि आत्मा रास्ता न भटक जाए. इस कारण रास्ता दिखाने के लिए ही अनाज बिखेरना भी रिवाज कि हिस्सा बन गया है. ये रिवाज चित्तौड़गढ़ ही नहीं, पूरे मेवाड़ में जड़े जमा चुका है. खासकर एससी एसटी और ओबीसी वर्ग के लोग इसमें ज्यादा विश्वास रखते हैं. जिसका कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं है और केवल अंधविश्वास है.

चित्तौड़गढ़. इन दिनों सरकारी अस्पताल में यदि आपको भोपे टोने टोटके करते नजर आए तो आश्चर्य न करें.सरकारी अस्पताल में इस प्रकार का नजारा आम हो गई है. इसे अंधविश्वास माने या फिर परंपरा, घटना दुर्घटना में अस्पताल में मरने वाले लोगों की आत्मा को ले जाने का समाज के एक तबके में रिवाज बन गया है. इसमें परिवार के लोग गांव के भोपों को बड़े ही आदर सत्कार के साथ अस्पताल लेकर आते हैं. इसके पीछे माना जाता है कि उनमें आत्मा का वास है. ऐसे में परिवार के लोग उनके जरिए अस्पताल पहुंचते हैं और जिस बेड पर संबंधित व्यक्ति की मौत हुई है, वहां भोपे बकायदा पूरी श्रद्धा भाव के साथ निकालते हुए पहुंचते हैं, जहां कथित रूप से आत्मा का विचरण माना जाता है.

आत्मा को ले जाने वाले लोग शाम को ही अस्पताल पहुंच जाते हैं. जहां संबंधित बेड से कथित रूप से ज्योत के रूप में आत्मा को बाहर ले जाते है. फिर जहां कहीं भी खुली जगह दिखती है वहां संबंधित मृतक के नाम अगरबत्ती और घी का धूप-दीप जलाते हैं. उसके बाद रात भर उनके नाम पर रतजगा (पूरी रात जागकर) के बाद सुबह मृतक के निकट परिजन स्नान ध्यान के बाद भोपों के साथ नारियल और घी का धूप जलाकर भोपों में आत्मा को बुलाया जाता है.

कई बार परिजन ये भोपे लोहे की जंजीर को आत्मा द्वारा कथित रूप से परेशान किए जाने के नाम पर अपने शरीर पर पटकते हैं. धूप में ज्योत प्रकट होने पर भोपों द्वारा आत्मा की उपस्थिति की हरी झंडी दिखाने के साथ ही भभकती ज्योत को नई मटकी में चावल और गेहूं भर कर विराजित किया जाता है. बाद में परिवार के लोग ढोल बजाते हुए ज्योत को आदर सत्कार के साथ अपने घर ले जाते हैं, जहां रातभर परिवार के लोग मटकी में बंद ज्योत को झूला झूलाते हैं. रात्रि जागरण के साथ अल सुबह शुभ मुहूर्त में भोपों के सानिध्य में संबंधित परिवार द्वारा चिन्हित स्थान पर ज्योत मूर्ति या फिर चबूतरे के रूप में स्थापित कर दी जाती है.

बैजनाथिया से ज्योत लेने आए हजारीलाल जटिया के अनुसार उसके साले की कुछ साल पहले दुर्घटना में घायल होने पर जिला चिकित्सालय मौत हो गई थी. देवी देवताओं का ध्यान करने पर परिवार के लोगों की समस्याओं का कारण उनकी आत्मा का भटकना बताया. इसी कारण उन्हें एक जगह स्थापित करने के लिए भोपों के साथ परिवार के लोग जिला चिकित्सालय आए. यहां पूरी रस्म करने के बाद आत्मा को ज्योत के रूप में घर ले जाएंगे. वहां गाजे-बाजे के साथ एक स्थान पर मूर्ति के रूप में ज्योत (आत्मा) को स्थापित कर दिया जाएगा.

पढ़ें खुशखबरी - चित्तौड़गढ़ दुर्ग की प्राचीर अब रात में भी जगमगाएगी, फसाड लाइट लगाने की मिली अनुमति

रास्ते में बिखेरते हैं नारियल और अनाज : वरिष्ठ पत्रकार जेपी दशोरा के अनुसार यह एक अंधविश्वास है लेकिन धीरे-धीरे अब एक परंपरा बन गई है. हालांकि इसका कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं है परंतु गांव में लोग आज भी घटना दुर्घटना में हॉस्पिटल में मौत हुई हो या फिर किसी अन्य स्थान पर वहां पर परिवार के लोग भोपों को लेकर गाजे बाजे के साथ पहुंचते हैं. तथाकथित आत्मा को ज्योत के रूप में अपने घर ले जाते हैं. आत्मा को घर ले जाने के दौरान रास्ते में कई लोग नारियल और गेहूं चावल आदि भी छिटते जाते हैं. इसके पीछे माना जाता है कि आत्मा रास्ता न भटक जाए. इस कारण रास्ता दिखाने के लिए ही अनाज बिखेरना भी रिवाज कि हिस्सा बन गया है. ये रिवाज चित्तौड़गढ़ ही नहीं, पूरे मेवाड़ में जड़े जमा चुका है. खासकर एससी एसटी और ओबीसी वर्ग के लोग इसमें ज्यादा विश्वास रखते हैं. जिसका कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं है और केवल अंधविश्वास है.

Last Updated : May 12, 2023, 11:17 AM IST

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