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चित्तौड़गढ़ के गुड़ की मिठास दिल्ली-मुंबई तक, केमिकल के बजाय भिंडी के पानी का उपयोग - गुड़ बनाने की चरखियां

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में बड़े स्तर पर होने वाली गन्ने की खेती के कारण यहां गुड़ बनाने का कारोबार भी फल फूल रहा है. प्रदेश के कई हिस्सों में और प्रदेश के बाहर भी इस गुड़ की सप्लाई होती है. चित्तौड़गढ़ में प्रतिदिन 10 टन गुड़ का निर्माण होता है. जानिए इस गुड़ की खासियत...

lady finger water is used in jaggery
भिंडी के पानी से बनने वाला गुड़
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Dec 24, 2023, 2:02 PM IST

भिंडी के पानी से बनने वाला गुड़

चित्तौड़गढ़. पर्यटन के साथ-साथ देसी गुड़ ने भी चित्तौड़गढ़ को एक नई पहचान दी है. सर्दी आने के साथ ही गुड़ बनाने की चरखियां भी तेजी से चलने लगी है. जिले के इस गुड़ की सबसे बड़ी विशेषता है इसमें केमिकल का न होना. इस गुड़ में केमिकल के स्थान पर भिंडी के पानी का उपयोग किया जाता है. यही वजह है कि इस गुड़ की डिमांड बढ़ी है. दिल्ली-मुंबई के लोग भी इसे मंगवाते है और इस मिठास का चस्का लेते हैं.

रोजाना 10 टन गुड़ का निर्माण : जानकारी के मुताबिक जिले में प्रतिदिन करीब 10 टन गुड़ का निर्माण होता है. गुड़ बनाने का यह काम होली तक चलता है. बड़े पैमाने पर देसी गुड़ बनाने के पीछे चित्तौड़गढ़ के आसपास गन्ने की खेती है. इस कारण कच्चे माल की कमी नहीं आती और चरखी दिन भर चलती रहती है. गुड़ बनाने का यह काम मुख्यतः राष्ट्रीय राजमार्गों पर ही होता है. इस कारण रोड से गुजरने वाले लोग भी देसी गुड़ की महक को सूंघकर अपने कदम यहां रोकने से नहीं रोक पाते और गुड़ खरीदे बिना नहीं रह पाते. इन इलाकों में गुड़ की खरीद बड़े लेवल पर होती है.

lady finger water is used in jaggery
चित्तौड़गढ़ के गुड़ की खासियत

लोकल लोग ही बनाते हैं गुड़ : गुड़ बनाने का काम करने वाले देवरी गांव के पूरणमल डांगी बताता है कि उनके दादा ने गुड़ बनाने का काम शुरू किया था, जिसे उसके पिता ने भी बरकरार रखा और अब वह भी इस काम को हैंडल कर रहा है. उसने बताया कि पहले यहां गुड़ बनाने वाले कारीगर बाहरी क्षेत्रों से बुलाने पड़ते थे, लेकिन समय के साथ लोकल लोगों को ट्रेनिंग दी गई. बाहर से आए कारीगरों के साथ उन्हें काम सिखाया गया. आज स्थानीय लोगों से ही गुड़ बनाने का काम करवाया जा रहा है. डांगी के अनुसार पानी से दूर रखो तो यह गुड़ कभी खराब नहीं होता और लंबे समय तक चलता रहता है.

पढ़ें : नए साल से पहले ही लेकसिटी पर्यटकों से गुलजार, अब तक 60 फीसदी होटल बुक

उसने बताया कि हालांकि फैक्ट्री और चरखी से बनने वाले गुड़ की प्रक्रिया में ज्यादा अंतर नहीं होता. फैक्ट्री वाले गन्ने के जूस को क्लीन करने के लिए केमिकल का इस्तेमाल करते हैं, जबकि हम केमिकल के स्थान पर भिंडी के पानी का इस्तेमाल करते हैं. यह वजह है कि इसमें मेहनत भी अधिक लगती है. प्रतिदिन 40 से 45 टीन गुड़ तैयार किया जाता है और प्रत्येक टीन में 20 से 22 किलो गुड़ होता है. सर्दी की शुरुआत से ही चरखी चलना शुरू हो जाती है जो होली तक चलती रहती है. देवरी के साथ-साथ आजोलिया का खेड़ा, निंबाहेड़ा रोड पर भी कई गुड़ बनाने की चरखियां संचालित हैं.

पढ़ें : क्रिसमस 2023 : रंग-बिरंगी रोशनी से सजे अजमेर के प्राचीन चर्च, प्लम केक और रम केक की बढ़ी डिमांड

टीन ही नहीं किलो में भी बिकता है गुड़ : चित्तौड़गढ़ के गुड़ की डिमांड लगातार बढ़ रही है. रोड से गुजरने वाले लोग गुड़ खरीद कर अपने इलाकों में लेकर तो जाते हैं ही, प्रदेश के कोटा व जयपुर सहित कई अन्य इलाकों में भी यहां से सप्लाई पहुंचती है. दिल्ली और मुंबई से भी ऑर्डर आते हैं. वहां के लोग यहां का गुड़ खाना पसंद करते हैं. हर आदमी पूरा टीन नहीं खरीद सकता. ऐसे में यहां 1 किलो, 3 किलो और 5 किलो के प्लास्टिक डिब्बे भी रखे हुए हैं, जिससे व्यक्ति अपनी आवश्यकता के अनुसार देसी गुड़ घर ले जा सकता है.

भिंडी के पानी से बनने वाला गुड़

चित्तौड़गढ़. पर्यटन के साथ-साथ देसी गुड़ ने भी चित्तौड़गढ़ को एक नई पहचान दी है. सर्दी आने के साथ ही गुड़ बनाने की चरखियां भी तेजी से चलने लगी है. जिले के इस गुड़ की सबसे बड़ी विशेषता है इसमें केमिकल का न होना. इस गुड़ में केमिकल के स्थान पर भिंडी के पानी का उपयोग किया जाता है. यही वजह है कि इस गुड़ की डिमांड बढ़ी है. दिल्ली-मुंबई के लोग भी इसे मंगवाते है और इस मिठास का चस्का लेते हैं.

रोजाना 10 टन गुड़ का निर्माण : जानकारी के मुताबिक जिले में प्रतिदिन करीब 10 टन गुड़ का निर्माण होता है. गुड़ बनाने का यह काम होली तक चलता है. बड़े पैमाने पर देसी गुड़ बनाने के पीछे चित्तौड़गढ़ के आसपास गन्ने की खेती है. इस कारण कच्चे माल की कमी नहीं आती और चरखी दिन भर चलती रहती है. गुड़ बनाने का यह काम मुख्यतः राष्ट्रीय राजमार्गों पर ही होता है. इस कारण रोड से गुजरने वाले लोग भी देसी गुड़ की महक को सूंघकर अपने कदम यहां रोकने से नहीं रोक पाते और गुड़ खरीदे बिना नहीं रह पाते. इन इलाकों में गुड़ की खरीद बड़े लेवल पर होती है.

lady finger water is used in jaggery
चित्तौड़गढ़ के गुड़ की खासियत

लोकल लोग ही बनाते हैं गुड़ : गुड़ बनाने का काम करने वाले देवरी गांव के पूरणमल डांगी बताता है कि उनके दादा ने गुड़ बनाने का काम शुरू किया था, जिसे उसके पिता ने भी बरकरार रखा और अब वह भी इस काम को हैंडल कर रहा है. उसने बताया कि पहले यहां गुड़ बनाने वाले कारीगर बाहरी क्षेत्रों से बुलाने पड़ते थे, लेकिन समय के साथ लोकल लोगों को ट्रेनिंग दी गई. बाहर से आए कारीगरों के साथ उन्हें काम सिखाया गया. आज स्थानीय लोगों से ही गुड़ बनाने का काम करवाया जा रहा है. डांगी के अनुसार पानी से दूर रखो तो यह गुड़ कभी खराब नहीं होता और लंबे समय तक चलता रहता है.

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उसने बताया कि हालांकि फैक्ट्री और चरखी से बनने वाले गुड़ की प्रक्रिया में ज्यादा अंतर नहीं होता. फैक्ट्री वाले गन्ने के जूस को क्लीन करने के लिए केमिकल का इस्तेमाल करते हैं, जबकि हम केमिकल के स्थान पर भिंडी के पानी का इस्तेमाल करते हैं. यह वजह है कि इसमें मेहनत भी अधिक लगती है. प्रतिदिन 40 से 45 टीन गुड़ तैयार किया जाता है और प्रत्येक टीन में 20 से 22 किलो गुड़ होता है. सर्दी की शुरुआत से ही चरखी चलना शुरू हो जाती है जो होली तक चलती रहती है. देवरी के साथ-साथ आजोलिया का खेड़ा, निंबाहेड़ा रोड पर भी कई गुड़ बनाने की चरखियां संचालित हैं.

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टीन ही नहीं किलो में भी बिकता है गुड़ : चित्तौड़गढ़ के गुड़ की डिमांड लगातार बढ़ रही है. रोड से गुजरने वाले लोग गुड़ खरीद कर अपने इलाकों में लेकर तो जाते हैं ही, प्रदेश के कोटा व जयपुर सहित कई अन्य इलाकों में भी यहां से सप्लाई पहुंचती है. दिल्ली और मुंबई से भी ऑर्डर आते हैं. वहां के लोग यहां का गुड़ खाना पसंद करते हैं. हर आदमी पूरा टीन नहीं खरीद सकता. ऐसे में यहां 1 किलो, 3 किलो और 5 किलो के प्लास्टिक डिब्बे भी रखे हुए हैं, जिससे व्यक्ति अपनी आवश्यकता के अनुसार देसी गुड़ घर ले जा सकता है.

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