चित्तौड़गढ़. सरकार अफीम का इस्तेमाल दवाइयां बनाने में करती है. दुनिया के कई देशों को भारत अफीम निर्यात करता है. नशे के बाजार में भी अफीम की ब्लैक मार्केटिंग और तस्करी होती है. इसीलिए इसे काला सोना कहा जाता है. इसके बावजूद अफीम पैदा करने वाले किसान परेशान हैं.
किसानों को नारकोटिक्स ब्यूरो के जरिए वित्त मंत्रालय प्रतिवर्ष लाइसेंस जारी करता है. इसके लिए वित्त मंत्रालय हर साल नई पॉलिसी जारी करता है. जिसके नियम कायदों के अनुसार ही किसानों को लाइसेंस जारी किया जाता है. इसमें गत वर्ष नियम एवं शर्तों के अनुसार अफीम जमा कराने वाले किसानों को अगले साल के लिए पात्र होने की स्थिति में लाइसेंस का प्रावधान है.
हर साल अफीम नीति, पात्र किसानों को ही लाइसेंस
अमूमन वित्त मंत्रालय की ओर से विजयदशमी से पहले नई अफीम नीति जारी करने के साथ पात्र किसानों को पट्टे जारी कर दिए जाते हैं. हालांकि कुछ साल पहले तक किसानों को 20 -20 आरी तक के लाइसेंस जारी किए जाते थे. लेकिन हर एक किसान को इसके दायरे में लेने के लिए पिछले 3 साल से 6 से लेकर 12 आरी तक के पट्टे जारी किए जा रहे हैं. इसमें किसानों को 56 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर के आधार पर अफीम जमा करानी होती है. इस औसत वाले किसानों को ही लाइसेंस का हकदार माना जाता है.
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दीपावली से पहले बुवाई
लाइसेंस जारी होने के साथ ही किसान दीपावली के आसपास अफीम की बुवाई कर देते हैं. इसके साथ ही किसान की कड़ी परीक्षा शुरू हो जाती है. नीलगाय सहित वन्यजीव फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. ऐसे में बुवाई के बाद से ही किसान पूरे परिवार के साथ खेतों में डेरा डाल देता है. फूल आने तक काश्तकारों के परिवार खेत पर ही मजमा लगाकर रखवाली करते हैं. रात में भी किसान ग्रुपों में इस कीमती फसल की सुरक्षा में लगे रहते हैं.
बुवाई से पैदावार तक खर्चा ही खर्चा
अफीम की बुवाई के साथ ही खर्चे की शुरुआत हो जाती है. अफीम का बीज 2000 से 3000 रुपए के बीच पड़ता है. निराई गुड़ाई के बाद पैदावारी के समय मजदूरी पर हर आरी पर 7000 से 8000 रुपए तक की मजदूरी देनी पड़ती है. जबकि सरकार कौड़ियों के भाव इसकी खरीददारी करती है. किसान को 1500 से 2000 रुपए प्रति किलो की दर पर भुगतान किया जाता है. टॉप ग्रेड की अफीम ही 3000 रुपए तक खरीदी जाती है.
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दाम बढ़ा दें तो तस्करी पर भी शिकंजा
किसानों का कहना है कि सरकार एक तरफ लागत की दोगुनी आमदनी की दिशा में काम करने का दावा कर रही है. जबकि वर्षों से अफीम के दाम जस के तस हैं. यदि प्रति किलो 10000 रुपए तक भाव कर दिया जाए तो तस्करी पर भी काफी हद तक शिकंजा कसा जा सकता है. क्योंकि काश्तकार भी किसी भी प्रकार की जोखिम नहीं उठाना चाहता.
लागत निकालने के लिए किसान कई बार अवैध तरीके से अफीम बेचने को मजबूर हो जाता है. किसानों से ईटीवी भारत की हुई बातचीत के सामने आया कि 2016 से डोडा चूरा की खरीदारी भी रोक दी गई और उसके स्थान पर जलाने का प्रावधान कर दिया गया. सरकार डोडा चूरा की खरीदारी फिर से शुरू कर किसानों को राहत दे सकती है. इससे भी डोडा चूरा की तस्करी काफी हद तक रुक सकती है.