चित्तौड़गढ़. विश्व विख्यात चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर विजय स्तंभ के दक्षिण में स्थित समाधीश्वर महादेव का एक प्राचीन मंदिर है. मान्यता है कि यह दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां एक ही मूर्ति में ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप दिए गए हैं. राजा-महाराजा युद्ध पर जाने से पहले यहां पूजा करते थे. करीब 1000 साल पहले इस मंदिर का निर्माण हुआ था. मंदिर में शिवलिंग के पीछे दीवार पर शिव की त्रिमूर्ति है.
भगवान शिव के ये तीन मुख सत सत्यता, रज वैभव और तम क्रोध के घोतक है. कृष्ण कांत शर्मा पुजारी ने बताया कि इस मंदिर का निंर्माण मालवा के राजा भोज ने करवाया था. सन 1427 ई. में चित्तौड़ के महाराणा मोकल ने इसका जीर्णोद्धार करवाया. मंदिर में दो शिलालेख है. एक शिलालेख सन 1150 ई. का है, जिसके अनुसार गुजरात के सोलंकी कुमारपाल का अजमेर के चौहान अनाजी अनंगपाल को परास्त कर चित्तौड़ आना दर्शाया गया है. दूसरा शिलालेख सन 1428 का महाराणा मोकल के सबंध में है.
पढ़ें: Maha Shivratri 2023 : अजमेर में हैं 4 मराठाकालीन शिवालय, श्रद्धालुओं ने अनुभव किए चमत्कार
इस मंदिर को मोकलजी का मंदिर भी कहते है. मंदिर के चारों ओर नागर शैली बनी हुई है. मंदिर वास्तुशास्त्र में निर्मित है. मंदिर की नींव कमल के फूल पर रखी गई है. राजा भोज ने वास्तुकला पर ध्यान दिया. पंडितों और राजपुरोहित से कुंडली बनाई गई. मंदिर के पश्चिम में शिलालेख है. यह मंदिर की रक्षा के लिए परिक्रमा में 24 देवियों की मूर्तियां बनाई गई है.
मान्यता है कि जो भी दंपती किसी अन्य भावनाओं से मंदिर में दर्शन करने आ रहे हैं तो उन्हें शुद्धीकरण के लिए मंदिर की परिक्रमा कर मन-शरीर शुद्ध होने पर ही मंदिर के अंदर दर्शन करना चाहिए. बुरी दृष्टि से बचाने के लिए मंदिर के तीनों प्रवेश द्वार पर विशेष उपाय किए गए हैं. विजय स्तंभ और समाधीश्वर मंदिर के बीच का खुला समतल भाग महाराणाओं और राज्य परिवार का श्मशान स्थल था. जहां अनेक क्षत्राणियों ने जौहर किया था.
पुजारी कृष्ण कांत शर्मा के अनुसार वर्षों से उनका परिवार मंदिर की पूजा-अर्चना करता है. कृष्ण कांत शर्मा ने बताया कि ये देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां एक साथ भगवान ब्रह्मा, शिव और विष्णु की मूर्तियां दिखाई देती हैं. जबकि अन्य मंदिरों में सबकी अलग-अलग मूर्तियां होती हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि यह तीनों ही मूर्तियां एक ही पत्थर में हैं.