चित्तौड़गढ़. समाज जब से अर्थ प्रधान हो गया, हमारे देश की सामाजिक व्यवस्था छिन-भिन्न हो गई. स्थिति यह है कि जिसने जन्म दिया, बुढ़ापे का सहारा मानकर पाला-पोसा, एक मुकाम पर पहुंचाया, वह ही आंखों को खटकने लगा. नतीजा, देश में वृद्धाश्रम की संख्या लगातार बढ़ रही है. ऐसे में मैसूर का कृष्णकुमार समाज के लिए एक आदर्श बनकर आया है. 44 साल के कृष्णकुमार पिछले पांच साल पहले अपनी वृद्ध मां को भारत दर्शन पर लेकर निकले और वह भी स्कूटर पर. अब तक वे अपने पिता की अंतिम निशानी स्कूटर से करीब 73 हजार किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं और अगले साल तक ही उनकी मां सेवा संकल्प यात्रा पूरी होने की संभावना है.
कम्प्यूटर इंजीनियरिंग डिप्लोमाधारी कृष्णकुमार अपनी 73 वर्षीय मां चूडा रत्नम्मा को लेकर चित्तौडग़ढ़ पहुंचे. यहां दुर्ग दर्शन और प्रमुख कृष्णधाम भगवान सांवरिया सेठ के दर्शन के बाद आगे की यात्रा पर रवाना होंगे. कृष्णकुमार के परिवार में 10 सदस्य थे. पिता दक्षिणा मूर्ति अकेले कमाने वाले थे जबकि मां चूडा रत्नम्मा सुबह से रात तक घर के काम में जुटी रहती. रसोई से लेकर परिवार के हर काम को वे अपने हाथ से पूरा करती थी और अपनी इस व्यस्तता के चलते कभी भी घर से बाहर नहीं निकल पाई.
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नौकरी का छोड़ीः कृष्णकुमार बतौर कॉर्पोरेट टीम लीडर की नौकरी पर थे और करीब 13 साल तक बंग्लौर में नौकरी की. माता-पिता दोनों मैसूर में रहते थे. इस बीच, 2015 में अचानक पिता का निधन हो गया और वे अपनी मां को बैंगलोर ले आए. कृष्णकुमार ने शादी नहीं की थी. परिवार में सब अलग-अलग हो गए थे. ऐसे में उनके परिवार में इन दोनों और कोई नहीं था.
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बेंगलुरु में मां से बातचीत के दौरान एक दिन कृष्ण ने किसी मंदिर के दर्शन के बारे में पूछा. मां का जवाब सुनकर कृष्ण हैरान रह गए. मां ने बताया कि पास का मंदिर तक नहीं देखा. यह जवाब सुनकर कृष्णकुमार अंदर तक हिल गए. फैसला किया वे अपनी मां को पूरे देश का भ्रमण करवाएंगे. उनका मानना था कि जिन मां-बाप ने उन्हें जन्म देकर उन्हें यहां तक पहुंचाया, उनके प्रति उसका भी नैतिक फर्ज बनता है. इसके साथ ही वे इस्तीफा देकर घर लौट आए.
पिता की निशानी के साथ निकल पड़े यात्रा परः कृष्ण जनवरी 2018 में अपने पिता की अंतिम निशानी स्कूटर पर अपनी मां को लेकर भारत दर्शन पर निकल गए. अब तक लगभग 73 हजार किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं. कश्मीर से कन्याकुमारी और पूर्वोत्तर के राज्यों को भी नापा. नेपाल, भूटान और बर्मा के प्रमुख स्थानों तक भी गए. कृष्ण के अनुसार वे यात्रा के दौरान निजी घरों में ठहराव नहीं करते. वे मंदिर, मठ या फिर आश्रम में शरण लेते हैं और प्रसाद को भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं. प्रतिदिन 150 से लेकर 175 किलोमीटर की यात्रा करते हैं. अगले पड़ाव पर वे राजस्थान के बचे हिस्से के भ्रमण के बाद गुजरात होते हुए महाराष्ट्र पहुंचेंगे, वहां से कर्नाटक. यह यात्रा अगले साल के अंत तक पूरी होने की संभावना है.